#अहंकार लोभ-मोह-मद-अहंकार में डूब रहा इंसान, तृष्णा की तृप्ति के हेतु करता धरती को शमशान । स्वर्ण महल में रहते सारे अहंकार के मारे, अहंकार के कारण इनके गूंज रहे जयकारे। अपने अहम् में जीते हैं सब खुद को कहें खुदा रे पर अहंकार से कोई न जीता बड़े-बड़े भी हारे। क्या मिट्टी की काया को कोई संग में ले जा पाया, सृष्टि के नियम के आगे 'दंभ ' रावण का भी ना टिक पाया। सागर की उत्ताल-तरंगे, अहं में गरज रहीं थीं, राम के क्रोध के कारण अब चरणों में आन गिरी थीं। भूल गया जमीं अपनी को अहंकार में पड़कर, अहंकार के कारण फिर वो आन गिरा जमीं पर । धन की गांठ न संग जाएगी सुन ओ!अहं के मारे झूठी शान में बजते रहते थोथे चने बिचारे। त्याग तू मन जा मैल समझ जा ओ!मानुष दुखियारे, अहंकार से कोई ना जीता बड़े-बड़े भी हारे। #सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia