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अहंकार

#अहंकार लोभ-मोह-मद-अहंकार में डूब रहा इंसान, तृष्णा की तृप्ति के  हेतु करता धरती को शमशान । स्वर्ण महल में रहते सारे अहंकार के मारे, अहंकार के कारण इनके गूंज रहे जयकारे। अपने अहम् में जीते हैं सब खुद को कहें खुदा रे पर अहंकार से कोई  न जीता बड़े-बड़े भी हारे। क्या मिट्टी की काया को कोई संग में ले जा पाया, सृष्टि के नियम के आगे  'दंभ ' रावण का भी ना टिक पाया। सागर की उत्ताल-तरंगे, अहं में गरज रहीं थीं, राम के क्रोध के कारण अब चरणों में आन गिरी थीं। भूल गया जमीं अपनी को अहंकार  में पड़कर, अहंकार के कारण फिर वो आन गिरा जमीं पर । धन  की गांठ  न संग जाएगी सुन ओ!अहं के मारे झूठी  शान में बजते रहते थोथे चने बिचारे। त्याग तू मन जा मैल समझ जा ओ!मानुष दुखियारे, अहंकार से कोई ना जीता बड़े-बड़े भी  हारे। #सुनीता बिश्नोलिया

छोटू

#छोटू 'छोटू...चाय नहीं बनी बेटा'..'अभी लाया' मास्टर जी कहते हुए छोटू चाय का कप लेकर आता है और मास्टर जी को पकड़ाता है। चाय पीते हुए मास्टर जी कहते हैं..छोटू जल्दी चल देर हो जाएगी..मोहन भेज इसे ..मास्टरजी मैंने कहाँ रोका है..मैंने तो इसे पाँच बजे ही जगा कर पढने बिठा दिया था...और बाद में होटल के काम में मदद  की है इसने ...अब देखिए ये तैयार है ।छोटू बस्ता लेकर आ जाता है...चलें मास्टर जी..नहीं तो मोहन भैया को कोई काम याद आ जाएगा..।मास्टर जी ने छोटू का कान पकड़ते हुए कहा...नहीं बेटा मेरा मोहन ऐसा नहीं है क्योकि ये भी कभी छोटू था ...बड़ा तो आज हुआ है..मन से बड़ा,ये अपनी होटल पर हर दूसरे साल एक छोटू को ले आता  है...ये उसे पढ़ाता-लिखाता है..जैसे तुझे। मास्टर जी मुझे बहुत ख़ुशी होती है...जब मेरा हर छोटू यहाँ काम के साथ पढ़-लिख कर बड़ा होता है...पता है मास्टर जी मुझ अनाथ के कितने भाई हैं..अब....सब मोहन भईया-मोहन भईया कहते रहते हैं,किसी भी होटल का छोटू आज तक बड़ा नहीं हुआ एक जाता है दूसरा आ जाता है पर देखो मैं बड़ा हो गया मेरा हर छोटू यहीं पढ़ कर बड़ा भी होता है पाँव पर भी खड़ा होता है ।मेर

भिक्षा

#भिक्षा (आस-बिखरे सत्य से समेटे कुछ आखर..) विनय की माँ फेरों से ठीक पहले विनय और उसके पिताजी पर चिल्लाती है.. मैंने  आपसे पहले ही कहा था कि ये लड़की मेरे बेटे के लिए ठीक नहीं...इसका चरित्र..इतना सुनते ही राधा बहन अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए बोली...ले जाओ बारात वापस लेकिन..अब अगर एक शब्द भी मेरी बेटी के खिलाफ निकाला तो तुम लोगों की खैर नहीं...तुम्हारी माँगे पूरी नहीं करेंगे तो तुम मेरी बेटी पर कलंक लगाओगे...मुझे किसी बात का डर नहीं जाओ जहाँ भी मेरी बेटी की तस्वीर छापनी है छपवा दो...और सुमन के पिताजी ने कहा..मुझे अपनी सुमन पर विश्वास है..किसी और के विश्वास की जरूरत नहीं....तुम जैसे लालची लोगों से मुझे अपनी बेटी के लिए चरित्र प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं...जाओ वरना अब पुलिस ही तुम लोगों  को ले जाएगी। आँखों में आँसू लिए ..माता-पिता के डर से चुपचाप बैठी सुमन को भी माँ की बातों से  जोश आ गया और वो भी खड़ी होकर बोलने लगी...विनय चले जाओ यहाँ से..मुझसे गलती हुई जो मैंने तुम से प्यार किया....मेरे माता-पिता ना चाहते हुए भी इस रिश्ते के लिए तैयार हुए....और तुम लोग क्या निकले...लालची- लोभी भि

मंजिल

#मंजिल मंजिल को पाने को राही,ठोकर तो खानी ही होगी, कठिन मार्ग है पहले खुद को,राहें तो बनानी ही होगी। मुश्किल देख राह से मुड़ना,है बहुत बड़ी कमजोरी, मुश्किल को ठोकर मार हटाना,काम नहीं है भारी। बाधाओं को बना कभी मत,अपनी राह का रोड़ा, मानव ने अपनी शक्ति से,है ह्रदय अचल का तोड़ा। खुद से चलकर मंजिल ना कभी, दर पे तेरे आएगी, राह सुझा खुद तुझको मंजिल,दे आवाज बुलाएगी। प्यास तेरी को तृप्त है करने,कूप  कभी ना आएगा, आलस त्याग निकल राहों पर,निश्चय मंजिल पाएगा। अर्जुन ने लक्ष्य को पाने को,ना अपना ध्यान हटाया था, अपने विवेक से अर्जुन ने तब, लक्ष्य अपना पाया था। यों अंतर्द्वंद से ना जूझो,खुद पर विश्वास अटल रखो, खुद चूमेगी मंजिल कदम तेरे,धैर्य जरा सा तुम रखो। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

मासूमों की पीड़ा

#आज भी वो बच्चा सोचा था आज कुछ शांत होकर चाय पी जाएगी, ना भागम-भाग ही होगी, ना काम की चिंता ही सताएगी। सुबह के पाँच बचे हैं, अखबार का इंतजार और हाथ में चाय का प्याला, सुबह-सुबह फिर वो दृश्य, मेरी सुबह को फीकी कर गया, अधखुली आँखों में दर्द भर गया। आज फिर वो नन्हा कूड़े में हाथ मार रहा है, कचरा बीनते बीनते ही शायद अपना बचपन संवार रहा  है। अल सुबह ह्रदय पे घाव गहरा दे गया वो कचरा उठाता बालक, समाज के कटु सत्य से परिचय करा गया। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर