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संदेश

राम,लक्ष्मण...

#राम,सीता,लक्ष्मण,हनुमान,,रावन राम-नाम मुख से रटें , करते करते काले काम, पाप आचरण खुद करें,करें ईश्वर को बदनाम। कोमल सीता सी नहीं , रही आज की नार। दुष्टों का बिजली सी वो, करती हैं प्रतिकार। तलवारें भी तन रहीं, भाई-भाई के बीच राम-लखन को कोसता,तरकश हरदम खींच। भक्ति में डूबा नहीं, आज भक्त हनुमान। ईश्वर से पहले माँगता, कार्य पूर्ति प्रमाण। स्वर्ण महल चहूँ ओर है,रावण के भी आज मित्र मण्डली छुपा रही,उसके हर एक राज। #सुनीता बिश्नोलिया © #जयपुर (राजस्थान)

योग-संगम

#योग संगम दोहा- 1.भारत भू में योग की, बड़ी पुरानी रीत, भूल चला क्यों देश ये,सिखलाए जो प्रीत।। 2.नित्य योग सब कीजिए,दूर भगाएँ रोग। मन पर काबू पाइए, दूर हटेंगे भोग।। 3.संगम साथी आइये,मिल सीखेंगे योग, योग-गुरु कई हैं वहाँ,बड़ा अजब संजोग।। मुक्तक- 1.योग भारत की भूमि से,फैला है पूरी दुनिया में, योग के नाम से भारत,जाना जाता है दुनिया में। ऋषि-मुनियों की ये भूमि,योग-भूमि भी कहलाती, योग-मुनि देश भारत के,पूजे जाते हैं दुनिया में। 2.योग कर लो जहां वालो,ये न बेकार जाता है, ये जो चंचल है मनअपना,योग स्थिर बनाता है। नित्य जो योग करता है,होती रौनक हैचेहरे पर, योग काया के कष्टों को,जड़ से मिटाता है। 3.योग-संगम की शाला में,योग का पाठ सीखेंगे, योग नित-नेम से करके,स्वयं को स्वस्थ रखेंगे। योग शाला में चलते हैं,ऋषि-मुनियों से मिलते हैं, चलो संगम के साथी सब कदम मिलकर के रखेंगे। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दया

दया #आँखों देखी... सिरहाने फ़क़ीर के, एक भूखा कुत्ता भी सोया है, मार खाके इन्सान की, आज वो बहुत रोया है। दोनों की आँखों में नींद तो नहीं पर पड़े रहने के सिवा कोई काम भी तो नहीं.. पैरों से लाचार फ़क़ीर पर किसी को दया नहीं आई थी। वो कुत्ता भी बहुत अलसाया था नींद उसे भी कैसे आती शायद उसने भी कुछ कहाँ खाया था। यों तो सारी कायनात जागती है उस चौराहे पर रात भर लेकिन उस फ़कीर की तो अपनी ही दुनिया है । जिस घर के पीछे कोने में वो भिखारी पड़ा है, उसी घर के नीचे साईकिल की दुकान है, साईकिलवाले का भी यहीं छोटा सा मकान है। उस घर से आती प्रेशर कूकर की सीटी सुन सुन साईकिलवाल सामान समेट चल दिया, पीछे दो ठंडी आहें छोड़कर.... रात बढ़ने के साथ कुत्ते और फ़क़ीर की उम्मीद भी साथ छोडती है... आज फिर वही भूख..वही तड़प..बेबसी, वो कुत्ते को सहलाने लगा, उसकी भूख का कारण खुद को बतलाने लगा। खुद पर चाहे किसी को दया नहीं आई पर वो उस श्वान पर दया और प्रेम लुटाने लगा। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे, राम ,सपना,जगाने की जरुरत है,जख्म,

दोहे लेकर पत्थर हाथ में,हिंसक हुआ समाज, धर्मों में मानव बंटा,लुटी देश की लाज। हिंसा की राहें तजें, तजिए सब हथियार, मौन की शक्ति देखिए,भरे दिलों में प्यार।। अपने हाथों पर सदा,कर लीजे विशवास, हाथों के हथियार से, छूना है आकाश। सबकी काया एक सी,अलग न कोई भाय, दाता के दर पर सभी,आये ज्यों ही जाय। जालिम जिद के कारणे,जलते ज़िंदा लोग, खुद के ही नुकसान का,लगा जीव को रोग। #सुनीता बिश्नोलिया #सपना आँखों का हर सपना ही सदा पूरा तो नहीं होता, जिद कर लो तो कोई सपना अधूरा भी नहीं रहता। उम्मीद-आशा और विश्वास हो अपने कर्मों पर, कोई लक्ष्य अपनी पहुँच से दूर तो नहीं होता। आजाद भारत का सपना देखा था उन सपूतों ने छोड़ देते वो हिम्मत तो देश आजाद नहीं होता। शिक्षा के उजाले का स्वप्न सलोना ले नयन में, लेकर के कटोरे निकले हैं हाथों बस्ता नहीं होता। किसी के तोड़ता है सपनों के महल अपनी खुदगर्जी में, दूजों के सपनों के टूटने का दर्द उनको जरा सा नहीं होता। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर सो रहे इस ज़माने को,जगाने की जरुरत है, नकल कर पढ़ने वालों को,सुधरने की जरुरत है। पैसों से खेलता है जो, हिमाक़त देखिए उनकी, फिरता

धरती

#धरती तपती धरती पर ओ ! बादल नेह- नीर बरसा दे, नादान मनुज की नासमझी की,धरती को तू ना सजा दे। सूरज आग उगलता मानव,तेरी ही लोलुपता से सम्पूर्ण पृथ्वी है संकट में मानव,तेरी हो नादानी से। वृक्ष बिना माँ धरती का बोलो, कैसे हो श्रृंगार, जल संचय करो धरा की, सुन लो करुण पुकार अभी समय है, अरे बावले,धरा का तू न दोहन कर, महलों में रहने की खातिर,ना पेड़ काट प्रदूषण कर। धूम्र के गुंबद,ग्राम-शहर में,धरती को मैला करते, देन धरा की कहके ये पर्वत को,थोथा करते। गर्म हवा के झोंको से,जल संचय ना हो पाते , हिम पिघल -पिघल ,तांडव लीला कर जाते। तो,तप्त धरा पे ओ!बादल ,नेह-मेह बरसा दे, रुदन करती अचला पे तू,प्रेम सुधा बरसा दे। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#पर्यावरण

#पर्यावरण माननीय पार्षद महोदय मंच से उतरे इतने में एक दस वर्षीय बालक उनके पास पहुँच गया और निडर होकर बोला,सर आपके विचार बहुत ही सुन्दर हैं।वास्तव में आप देश के सच्चे सेवक हैं आप को प्रकृति और पर्यावरण की बहुत चिंता है...हम बच्चे आप से बहुत कुछ सीख सकते हैं। पार्षद जी खुश होकर बोले शाबास बेटा..हम जनता और प्रकृति के भलाई करते हैं तो हमें भी सच्चा सुख मिलता है।हमारी बातों को याद रखना और अपने आस-पास रहने वालों और अपने मित्रों को समझाना की पर्यावरण की रक्षा करना हमारा धर्म है। बच्चा कहता है जी धन्यवाद सर मैं आपकी बात अवश्य याद रखूँगा...किन्तु अब आपकी सभा के कारण हमारे उद्यान का जो नुकसान हुआ है उसे ठीक करवा दीजिए..क्या मतलब पार्षद महोदय पूछते हैं। बच्चे ने कहा सर आपकी बातें सुनने बहुत ज्यादा लोग आए सब आकर उद्यान में हर कहीं बैठ गए..देखिए काफी संख्या में छोटे पेड़-पौधे तोड़ गए,देखिए कितने फूल..पत्तियों को नुकसान पहुँचा गए हैं। और सर आपके देर से आने के कारण सभी ने चाय-नाश्ता भी यहीं किया..वो सारा कूड़ा भी यहीं फैला गए...उन्होंने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया..सर आपके भाषण के लिए जो मंच बना

वैश्विक ताप-कारण और निवारण

वैश्विक ताप--कारण और निवारण माँ वसुधा पर फ़ैल रहा है,आज धुँआ विषैला, हाय!तड़पती माँ का तन भी हुआ बड़ा मटमैला। जी हाँ आज वसुधा जल रही है ताप से,और मैली हो गई है हमारी ही गलतियों से। सारा संसार जल रहा है,गर्मी,धूप ,धुआँ ,प्रदूषण से। कारण है स्वयं हम हमारी आपसी प्रतियोगिता, भोग की इच्छा अर्थात उपभोक्तावाद। हर मनुष्य के मन में संसार की हर सुख सुविधा पाने की इच्छा..लालच। जितनी इच्छाएँ उतना ही उपभोग,अत्यधिक उपभोग से संसाधनों का दोहन,नित नई फैक्ट्री ,फिर धूम्र का गुब्बार। बढ़ती जनसंख्या का अपने स्वार्थसिद्धि हेतु संसाधनों का दुरुपयोग,पेड़ों की अंधाधुंध कटाई परिणामस्वरूप सिमटते ग्राम और बढ़ते शहर। कुटीर उद्योगों की समाप्ति और पूर्ण मशीनीकरण के कारण बिजली चालित उपकरणों पर निर्भरता जिससे बढ़ता ताप। आधुनिकता के कारण पैदल चलना बंद और पेट्रोल डीजल चलित वाहनों से बढ़ता प्रदूषण। विश्व के सभी देशों में बढती आपसी प्रतिस्पर्धा और एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ , युद्ध के खतरे तथा अपनी शक्ति बढाने हेतु हथियारों का निर्माण और उपयोग। बढ़ता परमाणु परीक्षण ,बढ़ता आतंकवाद जिसके कारण हथियारों का दुरूपयोग और बढ़ता युद्ध