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संदेश

हिंदी कविता - - जीवन.... आ हँस लें

हम भी हँस लें...  photo - Rajesh Jamal  रंगी इस दुनिया के रंग में      रंग लें खुद को यार ज़रा सा  हम पर हँसती इस दुनिया पर       हम भी हँस लें यार जरा सा। गुब्बारे से इस जीवन का     क्या परिचय है बचपन से,  आ संग उड़ लें हम दो पँछी         कर जीवन से प्यार ज़रा सा। the_stolen _camera  कटा दिन पूछ मत तुझ बिन, शाम तक आँख भर आई सड़कों पर ही रहना हमको         क्या यही भाग में अपने है,  आ हम भी मेहनत से पा लें           हो सपनों का संसार ज़रा सा।              मस्त-मगन सब है दुनिया में    हम जैसों की बात कहाँ,  आजा हम भी मन की कर लें    अपना भी अधिकार जरा सा।  सुनीता बिश्नोलिया © ® 

सुप्रभात # good morning

सुप्रभात #सुप्रभात.. सुप्रभात #good morning  अंगड़ाई सूरज ने ली,            कर खोल रहा धीरे धीरे, चली यामिनी वसन,             खग-कलरव यमुना तीरे। good morning सुप्रभात  सुनीता बिश्नोलिया © ® सुनें like and subscribe 

शुभ रात्रि

शुभ रात्रि रात चाँदनी गा रही, मीठे मधुरिम गीत खिला - खिला चंदा गगन,  रजनी का मनमीत ।। सुनीता बिश्नोलिया © ® 

चौथा और पाँचवां नवरात्र -

चौथा #चतुर्थ नवरात्र  नवरात्र-पूजन के चौथे दिन माँ दुर्गा के कुष्माण्डा स्वरूप की आराधना की जाती है। कहते हैं जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः माँ कुष्मांडा ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं।  जहाँ किसी के सूर्य के पास  जाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती वहीं माँ की क्षमता है कि वो सूर्यमंडल के भीतर निवास करती हैं के । इसी कारण सूर्य के तेज के प्रभाव sसे ही  इनके शरीर की कांति और प्रभा दैदीप्यमान हैं।   सिंह की सवारी करने वाली, अष्टभुजाधारी माँ के सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है।   इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशमान हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इनका तेज, इन्हीं की छाया है।  Navratri 2020  नवरात्रि का पाँचवा दिन-- स्कंदमाता : (Skandmata)  नवरात्रि के पांचवें दिन दुर्गा के स्कंदमाता स्वरुप की पूजा की जाती है। मान्‍यता है कि वात्सल्य की मूर्ति स्क

हिंदी कविता : विरह गीत

प्रीत की पाती हिंदी कविता विरह गीत राजस्थानी विरह गीत कटा दिन पूछ मत तुझ बिन,शाम तक आँख भर आई।  तुम्हारी याद में साजन,नहीं मैं रात भर सोई।  बड़ी उलझन में थी प्रियवर ,कौन सी बात भूलूँ मैं -  खुली आँखों में भर तुझको,सपन में मैं रही खोई।  तेरी बातों ने जादूगर,मुझे कुछ एेसा भरमाया  ये शीतल चाँद भी मुझको,अब सूरज नजर आया।  गया किस ओर बेदर्दी,खबर भी ली नहीं अब तक- मेरी मन-वेदना निष्ठुर, समझ तू क्यों नहीं पाया।।  तेरे खातिर सजन मैंने,कभी दुनिया थी ठुकराई,  खुली आँखों में भर...  रेशमी बाल मेरे अब,चमकते चांदी की तरहा,  कहाँ तू खो गया जाने,छोड़ मुझको यहाँ तन्हा, प्रीत की उम्र अब बीती,प्रेम की रीत है बाकी- दीप जीवन का बुझने से,पहले एक बार तो घर आ।। नहीं शिकवा-शिकायत है, तेरी बस याद है आई,  खुली आँखों में भर....  साथ तेरे गुजरती थी,सुहानी-साँझ हर प्रियतम  जहाँ पर बैठकर सपने,सुहाने देखते थे हम ।  उसी पीपल की छाया में,आज भी भूलकर सुध-बु़ध- राह तेरी निहारूँ मैं, अब तो आजा मेरे हमदम।  आखिरी वक्त है शायद, अब तो आँखे भी पथराई़,  खुली आँखों में भर....  शा

तृतीय (#तीसरा) नवरात्रि

नवरात्रि के तीसरे  दिन  नरात्रि के तीसरे  दिन: माँ  चंद्रघंटा की पूजा- आराधना की जाती है। अर्थात् नवरात्रि के तीसरे दिन की पूजा अर्चना माँ चंद्रघंटा को समर्पित है।  कहते हैं कि माँ दुर्गा ने यह अवतार असुरों का संहार करने हेतु लिया।  AM (IST) शारदीय नवरात्रि  प्रथम नवरात्रि  दूसरा द्वितीय नवरात्र द्वितीय नवरात्रि नवरात्रि का तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा की पूजन विधि :- नवरात्रि के तृतीय दिवस यानि तीसरे नवरात्र के दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है माँ चंद्रघंटा को परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है. इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है. इसीलिए इन्हें माँ चंद्रघंटा कहा जाता है। माँ के शरीर का रंग स्वर्ण के समान है. मां चंद्रघंटा देवी के दस हाथ हैं. इनके हाथों में शस्त्र-अस्त्र विभूषित हैं  तथा माँ सिंह की सवारी करती है।   नवरात्र में माँ चंद्रघंटा के पूजन का विशेष महत्व माना गया है कहते हैं नवरात्रि में जो भी माँ चंद्रघंटा का पूजन विधि पूर्वक करता है उसे अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। माँ चंद्रघंटा का पूजन और आराधना करने वाले हर व्यक्ति क

द्वितीय नवरात्रि

जय माँ ब्रह्मचारिणी              शारदीय नवरात्र प्रथम नवरात्र आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। माँ के  दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है। पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर में पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर  तपस्या की।   कहते हैं कि उन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल कंद- मूल फल  खाकर व्यतीत किए और सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। तथा कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आसमान के नीचे धूप-वर्षा आदि भयानक कष्ट सहे।इस दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी कहा  गया ।  घोर तपस्या के कारण देवी ब्रह्मचारिणी  का की काया  क्षीण हो चुकी थी ,उनकी यह दशा उनकी माता मैना से देखी न  गई और उन्होंने पुत्री को इस कठिन तपस्या से विरक्त करने हेतु  लिए आवाज़ दी 'उ मा'।तभी से  देवी ब्रह्मचारिणी को  उमा भी कहा जाने लगा ।  तीनों लोकों में आजतक किसी  ने  इस प्रक

माँ शैलपुत्री - प्रथम नवरात्रि

माँ शैलपुत्री - प्रथम नवरात्रि  वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् || शारदीय नवरात्र   नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के शैलपुत्री की आराधना की जाती है। माँ शैलपुत्री, माता दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं तथा इनका नाम था सती। कहा जाता है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ किया उन्होंने इस यज्ञ में भगवान शंकर को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया । सती भी यज्ञ में जाना चाहती थी। शंकर बिना निमंत्रण वहाँ नहीं जाना चाहते थे इसलिए उन्होंने सती को समझाया कि बिना निमंत्रण यज्ञ में जाना उचित नहीं।   यज्ञ में जाने हेतु सती की प्रबल इच्छा देखकर भगवान ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो माँ का स्नेह मिला किन्तु बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव के साथ ही भगवान शिव के प्रति भी तिरस्कार का भाव था । दक्ष ने भी उन्हें तिरस्कृत किया। परिजनों के इस व्यवहार  से सती बहुत क्षुब्ध हुई ।    वो अपने पति भगवान शंकर का अपमान नहीं कर सकीं और योगाग्नि द्वा

शारदीय नवरात्र - माँ दुर्गा

शारदीय नवरात्र 17 अक्‍टूबर से या देवी  सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।            नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।'  Photo- #Dainik Bhaskar #दैनिक भास्कर  #मधुरिमा         ' या देवी  सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।            नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।'                 चैत्र और आश्विन माह अर्थात्‌ नवरात्र के पावन महीने क्योंकि इन्हीं दोनों महीनों में आते हैं माता दुर्गा की आराधना और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्व नवरात्र अर्थात्‌ वर्ष में दो बार मनाए जाते हैं नवरात्र। चैत्र मास में मनाए जाने वाले नवरात्र चैत्र नवरात्र कहलाते हैं तथा आश्विन माह में मनाए जाने वाले नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाते हैं।    नवरात्र अर्थात्‌ नौ रातें। पुराणों के अनुसार, नवरात्रि माँ दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्र के पावन नौ दिनों तक माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। माँ दुर्गा भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं।  माँ दुर्गा के कुछ रूप स्नेहशील भी हैं तो कुछ ममतामय और कुछ हिंसक और डरावने भी। माँ दुर्गा का सबसे सुंदर और शांत रूप है गौर

राजस्थानी भाषा में विरह का गीत - मारू नै मत और बिसराओ

क्यों रात के अंधेरे में जला देती हैं लड़कियाँ बाट जौऊँ, पिया आओ ,  मारू  नै मत और बिसराओ बाट जौऊँ, पिया आओ,  मारू नै मत और बिसराओ।  नैण रोवैं, बाट जोवैं घड़ी भर नैण ना सोवैं। ओळ्यूं थारी घणी आवै पीड़ नैणां मैं दिख जावै  बात नैणां री सुण ज्याओ,  मारू नै मत और बिसराओ।  छाई मन मैं उदासी है,  आँख्यां दर्सण री प्यासी हैं।  मिटै मनड़ै री जद पीड़ा थै हर ल्यो जीव रा दुखड़ा बात म्हारी मान ज्याओ,  मारू नै मत और बिसराओ।  ढोला जी.... मारू नै मत और तरसाओ जमानो बोल बोलै है, प्रेम नैणां रो तोलै है रात आँख्यां मैं काटूँ हूँ आँसू पळकां मैं डाटूँ हूँ। बैरी दुनिया नै बतळाओ,   मारू नै मत और बिसराओ।    बाट जौऊँ पिया आओ,  मारू नै मत और बिसराओ। पखेरू सा प्राण कळपै,  मीन ज्यूं जळ बिना तड़पै पिया मैं प्रीत सूं हारी, बंधी बचनां सूं मैं न्यारी। न जी नै ओर तड़पाते  मारू नै मत और बिसराओ।   ढोल जी.. मारू नै मत और तरसाओ  घणी पीड़ा जिया मैं है तेरो घर इण हिया मैं है  आज ना ओठ खोलूं मैं न मुख सूं बोल-बोलूं मैं  गजब मत और थे ढाओ  मारू नै मत और बिसराओ। बाट जौऊँ पिया आओ।।  कौन कहलाता है

सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला'

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म 1899 ई. में  बंगाल में महिषादल गांव में। उनके पूर्वक उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला गांव के मूल निवासी थे। निराला का मूल नाम ' सूर्य कुमार' था।   जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला '।   क्यों रात के अंधेरे में जला दी जाती हैं लड़कियाँ इनकी पत्नी मनोहरा देवी एक विदुषी महिला थीं। 1918  में पत्नी का देहांत हो गया। कुछ समय पश्चात पिता, चाचा, चचेरे भाई की भी मृत्यु हो गई। किंतु विवाहित पुत्री सरोज की मृत्यु ने निराला को भीतर तक झकझोर दिया। ' निराला ने पुत्री की याद में लिखी' सरोज स्मृति'।  उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेष रुप से कविता के कारण ही है। इनकी 'परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा , नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज आदि रचनाएँ प्रसिद्ध हैं।  छायावादी होने के साथ ही निराला प्रग