बुआ की बातों के गुलदस्ते के चुनिंदा फूल.. बुआ कहती थी - 1 बुआ कहती थी...1 दादी और बुआ आज अन्य दिनों से जल्दी उठ गई थीं क्योंकि आज गूगा जी का त्योहार था। दोनों ने मिलकर जल्दी-जल्दी गूगा जी को धोकने के लिए गुलगुले-पकोड़े, खीर आदि बना लिए थे क्योंकि धोक लगाने के बाद दादी को खेत में जाना था। दादी और बुआ ने मिलकर पूजा की और बाद में बच्चों को यानि छोटी बुआ, पिताजी और ताऊजी आदि को आवाज लगाई। पिताजी को छोड़कर सारे बच्चे वहाँ आ गए और गूगा जी को धोक खाकर खाना खाने बैठ गए। बुआ पिताजी को आवाज लगाती रही पर पिताजी कहीं नहीं मिले। अचानक बुआ जी और दादी को लगा कि गुलगुले पकौड़े इतने कम कैसे हो गए। पिताजी का घर पर न मिलना और गुलगुले पकौड़े कम देखकर बुआ जी ने माथा पीट लिया और भागकर कमरे में गई और अपनी खाट की गुदड़ी हटाकर देखी और एक पर्ची हाथ में लेकर बाहर आई। बाहर आकर दादी के हाथ में काग़ज़ देती हुई बोली, 'माँ आज थारो लाडलो लोहाघर जी (लोहार्गल) गयो, बापूजी जी नै थे बता ज्यो।' 'हे राम जी! एक तो हो अब यो दूसरो भी... सिर पीटती हुई दादी बोली,एे! बाई बेरो पाड़ कुण कै
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