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माँ की सीख - कहानी Riya Sharma

मां की शिक्षा ईशा एक बहुत ही समझदार और आज्ञाकारी लड़की है। करीबन 10 दिन पहले जब वह उठी तो उसने सोचा कि वह अपनी सहेली के घर चली जाए ।वह तैयार होकर घर से निकल ही रही थी कि उसने देखा कि घर में कोई नहीं है। जिसे वह बता कर जा सके। पापा दफ्तर गए थे , मां घर के काम से बाहर गई थी, और छोटा भाई सो रहा था। इसीलिए वह बिना बताए ही चली गई। उसकी मां जब घर आई तो ईशा को घर पर ना पाकर मां चिंतित हो गई । उसकी मां ने आस-पड़ोस में पूछा ।मगर जब ईशा का किसी को कुछ न पता था। तो उन्होंने ईशा के पापा को फोन किया। पापा घर आए और गली मोहल्ले में, पास के बाजारों में ढूंढा । मगर ईशा का किसी को कुछ भी नहीं पता था। 8 घंटे बाद जब इंशा की मां और पापा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने जा ही रहे थे कि ईशा आ गई । ईशा को देखकर मा फूट-फूट कर रोने लगी और पापा की भी आंखें नम थी ‌। मां ने कहा कि बेटा तुम ठीक हो ना मेरी बच्ची इतनी देर कहाँ थी। इतना कहते- कहते माँ की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने ईशा को गले लगा लिया ।    बिना बताए घर से जाने पर मां ने  ईशा  पर गुस्सा भी किया और उसे घर का काम करने की सजा भी द

माँ री बिलोवणी

माँ पन्ना धाय मेरी माँ माँ री बिलोवणी मिक्सी चलाकै मक्खन निकाळण मैं  देर तो कोनी लागै पण कानां मेैं गूँजै है,  माँ री बिलोवणी री झगर-मगर।  बासी बुहारी काड कै, पीस्या करती गीहूं,बाजरो,   दळ कै मूंग,मोठ अर चणा,  माँ बैठ ज्याया करती  बिलोवण तांई।।  कितणो जरूरी काम होया करतो   सुंवारै-सुंवारै छा बिलोवणो। झगर-मगर री अवाज सूं खुल ज्याया करती नींद।  आपरै सागै लेगी माँ बिलोवणी  अर म्हारी मीठी नींद संभळागी संस्कार  जिम्मेदारी निभावण रा।  सुनीता बिश्नोलिया © ® 

माँ पन्नाधाय

माँ पन्ना धाय  एक माँ ऎसी भी  मेरी माँ माँ री बिलोवणी माँ पन्नाधाय  काळजै री कोर नै माता,                देख-देख मुस्कावै है, छाती सूँ दूध री नदी बह्वै,            टाबर सूँ जद बतळावै है। कान्हा री सी देख कै सूरत,            मायड़ यूँ इतरावै है, सोच काल री बात मावड़ी,          आँख्यां आँसू ल्यावै है।  फर्ज पै वारूं म्हारा पूत नै ,          हिवड़ा रो दरद लुकोवै है, घर मै बळतो 'दिवला नै  खुद           आज बुझाणव जावै है। लाड लड़ावै घणा बावली,            नयो लेख लिखण नै जावै है, प्रेम रो सागर छलकावै माँ,           धन ममता रो झळकावै है। सुनीता बिश्नोलिया 

#मातृ दिवस #मेरी_ माँ #माँ #mother's day

माँ की अधूरी इच्छा  माँ पेटी खोलकर दिखाओ ना  माँ क्या है इसमें  कितनी बार कहती थी मैं  माँ पेटी खोलती भी थी पर..  पेटी में बिछा लाल कपड़ा  कभी नहीं हटाती हमारे सामने  बहुत उत्सुकता थी,  लाल कपड़े के रहस्य को जानने की।  माँ कहती बहुत क़ीमती समान है  तुम्हारे काम का नहीं  मेरे बाद तुम्हीं को मिलेगी  मेरी पेटी की चाबी।  और एक दिन पेटी की चाबी रखकर  माँ विलीन हो गई उस अनंत में  जहाँ से कोई वापस नहीं लौटता।  संभालाई गई हमें पेटी की चाबी  कांपते हाथों से खोली थी पेटी और पाकर वो अनमोल खज़ाना  बहुत लड़े, बहुत रोए थे हम  अपना-अपना हक जताते हुए  हमारे छोटे-छोटे कपड़े,  हल्दी से मांडे हुए पोतड़े  और... और एक अँग्रेजी-हिंदी  सीखने की छोटी सी किताब....  माँ हमें पढ़ाने के  कितने जतन करती थीं।  सुबह जल्दी जगाना  और ना पढ़ने पर डांटते हुए  पढ़ाई का महत्त्व बताना  ओह! माँ हम पढ़ते रहे...  और पढ़ने की आपकी  इस इच्छा को  समझ भी ना सके  माँ आपके चेहरे पर  भी हँसी का लाल कपड़ा बिछा था  इसलिए आपके मन की पेटी  सामने होते हुए

मत कर माया को अहंकार मत कर काया को अभिमान कबीर Kaya dhul ho jasi - - #Kabir

कबीर.. मत कर माया को अहंकार           मत कर काया को अभिमान जीवन नश्वर है संसार में जो आया है उसे एक दिन जाना है। तेरे मेरे के मोह जाल में पड़ मनुष्य एक दूसरे से लड़ता है झगड़ता है।   जीवन के समस्त सुख और भोग - विलास में डूबे रहने के लिए वो अपनों को भी धोखा देने से बाज नहीं आता।     जैसे -  संसार में तनुधारियों का चार दिन का मेल है  इस मेल के ही मोह से जाता बिगड़ सब खेल है।   कबीरदास का  भी जीवन के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण था कि          पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।               एक दिन छिप जाएगा,ज्यों तारा प्रभात।।  अर्थात्‌  मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले  भांति क्षणभंगुर है जैसे पानी का बुलबुला पानी पर क्षणिक बनता है वो या तो स्वयं मिट जाता है या एक फूंक से मिट जाता है वैसे ही    मनुष्य का शरीर, मनुष्य का जीवन भी क्षणभंगुर और नाशवान है। ।  अर्थात्‌ जिस प्रकार पूरी रात जगमगाने के बाद सुबह होते ही तारे छिप जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य शरीर भी निश्चित अवधि व्याधि अथवा किसी दुर्घटना के कारण एक दिन नष्ट हो जाएगी। इसीलिए कबीर का कहना. मानते हुए हमें

लघु कथा लेखन

लघु कथा लेखन  लघु कथा लेखन  लघु अर्थात 'संक्षिप्त   लघु कथा साहित्य की प्रचलित और लोकप्रिय विधा है।  देखा जाए तो यह उपन्यास का ही लघु संस्करण है।   हालांकि 'लघु' का मतलब संक्षिप्त होता है किंतु संक्षिप्त' होने के बावजूद भी पाठक  पर इसका प्रभाव दीर्घकालीन  होना आवश्यक है अर्थात लघु कथा गागर में सागर भरने वाली अनुपम विधा है।   किसी उपन्यास के समान इसमें भी पात्र कथानक, द्वंद समायोजन तथा समाधान जैसे तत्व विद्यमान होते हैं।   लघुकथा कल्पना प्रधान कृति है परंतु इसके प्रेरणा जीवन  की वास्तविकता तथा आसपास की घटनाओं से ही मिल जाती है।      अर्थात हम कह सकते हैं कि लघु कथाएं सीमित शब्दों में बहुत कुछ कह देने की योग्यता रखती  हैं तथा पाठकों के अंतर्मन पर पहुंचकर अपना संदेश उन तक पहुंचाती है और यही लघुकथा का  मुख्य उद्देश्य है।   अतः लघुकथा का वास्तविक उद्देश्य तभी सार्थक है जबइसे  पढ़कर   पाठक प्रभावी तथा संतुष्ट हो जाए।   ***लघु कथा लेखन के दौरान ध्यान रखने योग्य जरूरी बातें ----- ** अच्छी लघुकथा लिखने के लिए लेखक को एक अच्छा पाठक होना भी जरूरी

इंसानों की बस्ती में --मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरों से डरता हूँ मैं माँ

मैं कभी बतलाता नहीं, पर अँधेरों से डरता हूँ मैं माँ....  इंसानों की बस्ती में         कल शाम से ही वो हैरान परेशान सा भाग रहा है इधर-उधर।  नहीं सोया वो पूरी रात, उसके करुणक्रंदन ने नहीं सोने दिया मुझे भी।  उसका रोना सुनकर आँखें भीगती रही मेरी भी आँखें पूरी रात।     कोशिश बहुत की मैंने सोने की पर... रह- रह कर उसके रोने की आवाज़ के बीच बदलती रही करवट। बहुत कोशिश की उसकी आवाज़ को अपने कानों से दूर रखने की।  पर चलचित्र की भाँति चलने लगे उसके पिछले कुछ महीने।         चार बच्चों में से जीवित बचे ये दोनों बच्चे माँ की आँखों के तारे थे।         बहुत नटखट बहुत शरारती । माँ भी अपने बच्चों की निगरानी में इतनी चौकस कि किसी को हाथ भी नहीं लगाने देती।        अगर गलती से कोई उनकी तरफ़ आ भी जाता तो उसकी खैर नहीं।      अपने बच्चों पर वात्सल्य लुटाती उस माँ के बारे में सोचती हूँ तो गंगा-जमुना बह निकलती है आँखों से।        काँप जाती हूँ उसकी मन:स्थिति के बारे में सोचकर। वो माँ कैसे रह रही होगी अपने बच्चे से अलग होकर, कितना तड़पती होग

बेसहारों का सहारा बन

बेसहारों का सहारा बन  सहारा बन ऐ साथी तू ,घूमते बेसहारों का, फाँकते धूल सड़कों की,उन किस्मत के मारों का। साथी सुनना जरा उनकी,नहीं मिलती जिन्हें मंजिल, राह उनको दिखाना तू,बोझ सहना बिचारों का। नहीं किस्मत को वो कोसें ,सोई किस्मत जगा देना, जरुरत है उन्हें अपनी, साथ हमको हमारों का। नहीं दुनिया है छोटी सी,कोई उनको बता देना, पता देना कभी उनको जहां के हर नजारों का। सहारा चाहिए उनको, न तू बदले में कुछ लेना, उनको लड़ना सिखा देना,दिखा सपना बहारों का। सुनीता बिश्नोलिया