कबीर.. मत कर माया को अहंकार
मत कर काया को अभिमान
जीवन नश्वर है संसार में जो आया है उसे एक दिन जाना है। तेरे मेरे के मोह जाल में पड़ मनुष्य एक दूसरे से लड़ता है झगड़ता है।
जीवन के समस्त सुख और भोग - विलास में डूबे रहने के लिए वो अपनों को भी धोखा देने से बाज नहीं आता।
जैसे -
संसार में तनुधारियों का चार दिन का मेल है
इस मेल के ही मोह से जाता बिगड़ सब खेल है।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिन छिप जाएगा,ज्यों तारा प्रभात।।
अर्थात्
मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले भांति क्षणभंगुर है जैसे पानी का बुलबुला पानी पर क्षणिक बनता है वो या तो स्वयं मिट जाता है या एक फूंक से मिट जाता है वैसे ही
अर्थात् जिस प्रकार पूरी रात जगमगाने के बाद सुबह होते ही तारे छिप जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य शरीर भी निश्चित अवधि व्याधि अथवा किसी दुर्घटना के कारण एक दिन नष्ट हो जाएगी।
इसीलिए कबीर का कहना. मानते हुए हमें मृत्यु का सत्य तो स्वीकार करना चाहिए पर इससे लड़ना भी चाहिए।
जीवन के इस सत्य को, कर मानव स्वीकार।
माना मृत्यु अटल है, यों ना जीवन हार।
सुनीता बिश्नोलिया
सिर्फ स्वयं के लिए नहीं दुनिया में सभी को सुख प्राप्त हो सभी स्वस्थत हों सभी मस्त हों इसलिए दूर से ही सभी की मदद करने की कोशिश करनी चाहिए वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का पालन करना चाहिए
साँस-साँस की आस में, मन-मानस हो पास।
दूरी से कड़ियाँ जुड़े, सब अपने सब खास।।
सुनीता बिश्नोलिया
याद रखना चाहिए कबीर के इस भजन को जिसमें जीवन अहंकार, लोभ, मोह, माया से दूर रहकर मृत्यु के शाश्वत सत्य को स्वीकर करना चाहिए..
मत कर माया को अहंकार
मत कर काया को अभिमान
काया गार से कांची
मत कर माया को अहंकार
मत कर काया को अभिमान
काया गार से कांची
हो काया गार से कांची
रे जैसे ओस रा मोती
झोंका पवन का लग जाए
झपका पवन का लग जाए
काया धूल हो जासी
काया तेरी धूल हो जासी
ऐसा सख्त था महाराज
जिनका मुल्कों में राज
जिन घर झूलता हाथी
जिन घर झूलता हाथी
हो जिन घर झूलता हाथी
उन घर दिया ना बाती
झोंका पवन का लग जाए
झपका पवन का लग जाए
काया धूल हो जासी
काया तेरी धूल हो जासी
खूट गया सिन्दड़ा रो तेल
बिखर गया सब निज खेल
बुझ गयी दिया की बाती
हो बुझ गयी दिया की बाती
रे जैसे ओस रा मोती
झोंका पवन का लग जाए
झपका पवन का लग जाए
काया धूल हो जासी
काया तेरी धूल हो जासी
झूठा माई थारो बाप
झूठा सकल परिवार
झूठी कूटता छाती
झूठी कूटता छाती
हो झूठी कूटता छाती
रे जैसे ओस रा मोती
बोल्या भवानी हो नाथ
गुरुजी ने सर पे धरया हाथ
जिनसे मुक्ति मिल जासी
जिनसे मुक्ति मिल जासी
बोल्या भवानी हो नाथ
गुरुजी ने सिर पे धरया हाथ
जिनसे मुक्ति हो जासी
जिनसे मुक्ति हो जासी
हो जिनसे मुक्ति मिल जासी
रे जैसे ओस रा मोती
झोंका… झोंका…
मत कर माया को अहंकार
मत कर काया को अभिमान
काया गार से कांची
हो काया गार से कांची
रे जैसे ओस रा मोती
झोंका पवन का लग जाए
झपका पवन का लग जाए
काया धूल हो जासी
काया तेरी धूल हो जासी
काया तेरी धूल हो जासी
काया तेरी धूल हो जासी
काया धूल हो जासी
कबीरदास__
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