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लघु कथा लेखन

लघु कथा लेखन 


लघु कथा लेखन

 लघु अर्थात 'संक्षिप्त 
 लघु कथा साहित्य की प्रचलित और लोकप्रिय विधा है। 
देखा जाए तो यह उपन्यास का ही लघु संस्करण है। 
 हालांकि 'लघु' का मतलब संक्षिप्त होता है किंतु संक्षिप्त' होने के बावजूद भी पाठक  पर इसका प्रभाव दीर्घकालीन  होना आवश्यक है अर्थात लघु कथा गागर में सागर भरने वाली अनुपम विधा है। 
 किसी उपन्यास के समान इसमें भी पात्र कथानक, द्वंद समायोजन तथा समाधान जैसे तत्व विद्यमान होते हैं। 
 लघुकथा कल्पना प्रधान कृति है परंतु इसके प्रेरणा जीवन  की वास्तविकता तथा आसपास की घटनाओं से ही मिल जाती है। 
    अर्थात हम कह सकते हैं कि लघु कथाएं सीमित शब्दों में बहुत कुछ कह देने की योग्यता रखती  हैं तथा पाठकों के अंतर्मन पर पहुंचकर अपना संदेश उन तक पहुंचाती है और यही लघुकथा का  मुख्य उद्देश्य है। 
 अतः लघुकथा का वास्तविक उद्देश्य तभी सार्थक है जबइसे  पढ़कर   पाठक प्रभावी तथा संतुष्ट हो जाए। 

 ***लघु कथा लेखन के दौरान ध्यान रखने योग्य जरूरी बातें -----
** अच्छी लघुकथा लिखने के लिए लेखक को एक अच्छा पाठक होना भी जरूरी है ताकि वह अच्छी लघुकथा लिख सके। 
* लघु कथा लिखने के लिए सबसे पहले लेखक को कहानी की रूपरेखा तैयार कर लेनी चाहिए। 
1.पात्र ---किसी भी लघु कथा में  बहुत ज्यादा पात्र नहीं होने चाहिए। 
किसी भी लघुकथा में  3 -4 पात्र ही लेने चाहिए जिससे उन पात्रों  पर  आधारित वह लघु कथा प्रभावी हो  सके तथा  कहानी  के  पात्र  भी बहुत ही प्रभावशाली हों
  जिससे उनका पाठक के  ह्रदय में  दीर्घकालीन प्रभाव पड़े। 
2.समायोजन - इसमें  दृश्य को  जीवंत किया जाता है जिससे पाठक के मस्तिष्क पर स्थायी अथवा दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है। 
3.  लघु कथा का अंत बिल्कुल सीधा-साधा ना करके इसके अंत में विस्मयकारी मोड़ से कथा  को जीवंत बना देना चाहिए  तथा कथा का कथानक आकर्षक होना आवश्यक है। 
4.द्वंदव -  पाठकों की रुचि,घटनाओं से  पाठकों का जुड़ाव  तथा अभिरुचि को ध्यान में रखते हुए लेखक को कथा में घटने वाली घटनाओं से  माध्यम से पाठकों की अभिरुचि को  जागृत  करने प्रयास करने का  प्रयास करना चाहिए। 
5. समाधान - यह जरूरी नहीं कि लघुकथा का अंत परंपरागत कथाओं के अंत की तरह सुखांत ही हो
 यहॉँ  लेखक को ध्यान में रखना चाहिए कि एक अच्छी कहानी के तत्वों को लेखक ध्यान रखें तथा एक निष्कर्ष पर पहुँचे 

तथा तथा उस निष्कर्ष की  सृष्टि है उसे सुनिश्चित कर लेना चाहिए इस तरह से कहानी को एक नए जरा अच्छे अंक के साथ समाप्त किया जाना चाहिए। 
 लघुकथा पाठकों के मन मस्तिष्क  मत को उद्वेलित करने के साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से समाधान के लिए भी प्रेरित करती हैं। 
6. लघुकथा को शीर्षक देने  क़े  लिए कुछ देने से पहले आपसे नाम देने से पहले बहुत ही ध्यान रखना चाहिए तथा शीर्षक के अनुसार कथा की समाप्ति भी प्रभावशाली ढंग से होनी चाहिए। इसके लिए हमें यह ध्यान रखना होगा कि लघु कथा का शीर्षक समुचित कहानी का प्रतिनिधित्व करता हो। अतः इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि यह जो शीर्षक है वह समुचित कहानी का प्रतिनिधि रखने वाला हो। 

8. लघु कथा लेखन में पारंगत होने के लिए अधिक अधिक अभ्यास करना चाहिए कल्पना को  कथा के रूप में पिरोने के लिए  अपने आसपास के पारंपरिक एवं  वास्तविक दृश्य से प्रेरणा लेनी चाहिए लेखक को चाहिए कि जीवन की वास्तविकता को कल्पना के रंगों में रंग कर उन्हें नया अर्थात कथा का रूप देl


लघुकथा -आदर्श 
आदर्श 
 "दिखा क्या चुराया है तूने! खोल..खोलती है कि नहीं मुट्ठी !कहती हुई मालकिन शकुंतलता ने, अपने किए पर शर्मिंदा होकर सिसकती सात साल की लच्छी का हाथ कस कर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके जोरदार थप्पड़ मारते हुए कहा राधा देख तेरी बेटी को "तू चाहती थी कि  यह पढ़-लिखकर तेरा सहारा बने पर देख ये तो कुछ और ही सीख रही है,  चोट्टी कहीं की...हे राम कैसी ढीठ है। देखो मुट्ठी नहीं खोल रही ! " 
         बेटी को मालकिन से पिटते और आँखों से लगातार आँसू बहाते देखकर राधा की आँखें भी छलक पड़ी, पर वो कुछ नहीं कह पाई  । 
       "ये तो तेरी माँ मेरे घर काम करती है,अगर तुम राधा की बेटी न होती तो मैं तुम्हें देख लेती ! तू मुट्ठी खोलती है कि नहीं ? राधा कल भी ये तेरे साथ आई थी और कल ही मेरे सौ रुपए खो गए थे वो भी इसने ही चुराए होंगे।"
        इतना सुनते ही लच्छी ने मुट्ठी खोल दी, छोटी सी मुट्ठी में निकले  दो बादाम,मालकिन को खुली मुट्ठी दिखाते हुए लच्छी  जल्दी सी बोली .."नहीं मैम साहब मैंने पैसे नहीं चुराए, आप भईया से  कह रहे थे ना, रोज बादाम खाने से दिमाग तेज होता है इसलिए मैंने बादाम  लिए हैं। मैं बड़ी होकर आपकी तरह बहुत तेज दिमाग वाली टीचर बनना चाहती हूँ ।मैं भी आपकी जैसे बच्चों को अच्छी-अच्छी बातें सिखाऊंगी
फिर माँ को काम पर नहीं जाना पड़ेगा ।" 
  सुनते ही माँ ने लच्छी को गले से लगा लिया और शकुंतला ये सोच कर आत्मग्लानि में डूबी जारही थी......मेरे जैसी?

सुनीता बिश्नोलिया
     जयपुर 

 









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