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धरती धोरां री

धरती धोरां री
    
हर वर्ष  'शिक्षक दिवस' से पूर्व शैक्षणिक भ्रमण हेतु छात्रों को ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन हेतु जाया करते हैं पिछले दो सालों से कहीं जाना नहीं हो रहा। इसीलिए भ्रमण की यादें. जब निकल पड़ा था हमारा कारवां कुछ नए अनुभव समेटने । उद्देश्य छात्रों को गाँवों से जोड़ने,प्रकृति के अंचल में समाप्त होते रेतीले धोरों में खुले आसमान के नीचे स्वच्छंद इस पेड़ से उड़ते पक्षियों को निहारने की सुखानुभूति प्रदान करना।
    #कुछ छात्रों का रेतीले टीलों पर दौड़कर चढ़ जाना कुछ का धीरे -धीरे लक्ष्य प्राप्त करना और कुछ का मार्ग में ही पस्त हो जाना। आस-पास में बकरी और गायों को चराने वाले बच्चों,महिलाओं को बिना किसी परेशानी के पहाड़ी की चोटी पर चढ़ता देखकर पहाड़ तो नहीं पर पुनः रेत के टीलों पर चढ़ने का प्रयास कर सफलता प्राप्त करने की खुशी से झूमते बच्चों को देखकर प्रसन्नता का अनुभव तो हुआ किन्तु उनकी..हमारी जीवन शैली पर प्रश्न चिन्ह लगता दिखाई दिया
    #कुछ दृश्य मन को आनन्दित करनेवाले थे तो कुछ दृश्यों ने मन में आक्रोश भर दिया। मेरा मानना है अगर हम गाँवों को कुछ अच्छा नहीं दे सकते तो हमें उन्हें अपने मन की अपने शहरों की,अपने बस्तों की बुराई देने का कोई अधिकार नहीं । 
इस बात से कौन अंजान है कि स्थापत्य कला प्रेम के कारण राजस्थान में ऐतिहासिक धरोहर देखने हम भारतीयों के अलावा विश्व से कितने पर्यटक आते हैं। पिछले वर्ष हमारी बस के ड्राइवर के द्वारा छात्रों को बस में वितरित खाने और पानी की बोतलों के कूड़े को बाहर डालने के प्रयास मात्र से हम अध्यापिकाएं लड़ पड़ी थीं जिसके कारण बस संचालक और ड्राइवर को माफी मांगनी पड़ी तथा कभी ऐसा न करने की शपथ खानी पड़ी। किन्तु आज रास्ते में हमारे आगे कुछ चलती  प्राइवेट बसों में से रास्ते मे कूड़े के बड़े-बड़े ये थैले फैंकते देखकर उन बस संचालकों के लिए मन धिक्कार कर उठा । 
      इन सारे अच्छे बुरे अनुभवों को समेटते हुए छात्र स्मृति-पोटली से नई-पुरानी बातें करते हुए #हाड़ी रानी बावड़ी देखने को भी उत्सुक पहुँच गए गंतव्य पर लेकिन हाड़ी रानी बावड़ी के बाहर का दृश्य देखकर छात्रों ने हमसे नजरें चुराने का प्रयास किया और हम भी ये दृश्य देखकर शर्मिंदा तो हुए ही किन्तु आश्चर्य, वेदना और सरकारी तंत्र की लचर व्यवस्था के प्रति क्रोध से तमतमा उठे।
  उफ्फ! ऐसा है सुख-सुविधा सम्पन्न मेरा भारत देश !!!! जहाँ बेटियाँ और बहनें खुले में स्नान कर रही हैं और कुछ लोलुप निगाहें न जाने उन्हें कब से तक रहीं हैं या रोज उस समय का इंतजार कर बैठ जाते हैं दीवारों छतों और इधर-उधर अपनी चक्षु-प्यास बुझाने ओह्ह!! हाड़ी रानी बावड़ी के बाहर लगे हेंडपम्प पर महिलाओं को खुले में स्नान करते देख जलसों और यात्राओं,महिलाओं और जन आवास, के नाम पर करोड़ों खर्च करने वाली अफसरशाही और सरकारी तंत्र से घृणा हो उठी। जनता के समक्ष विकास के खोखले दावे पेश करने वालों की नजरों को ऐसे दृश्य क्यों दिखाई नहीं देते।
    शायद सामाजिक संस्थाओं की दृष्टि भी अभी तक उन मजबूर बेघर महिलाओं पर नहीं पड़ी।
   क्या बड़े बड़े वादों के नाम पर गरीब जन हेतु ये कार्य किये जा रहे हैं ? क्या समाज मे स्त्रियों के प्रति अपराधों के बढ़ने का ये कारण नहीं ?  ये किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर नहीं वरन हमारे तथाकथित  सभ्य कहे जाने वाले समाज के ऊपर लगा काला दाग है हर कोई इस दाग को हटाने का वादा करता है किंतु भूल जाता है। मुझे लगता है दानदाताओं को  भी अपने स्तर पर इस हेतु कदम उठाना चाहिए।
छात्रों के साथ बावड़ी पर बैठकर हमने विभिन्न विषयों पर बहुत चर्चा की किन्तु कुछ छात्र बहुत अच्छे पाठक होते हैं उन्हीने मेरे मुख पर उन बेघर-बेसहारों और खासकर महिलाओं के प्रति उभरे हुए दर्द को पढ़ लिया और आपस मे चर्चा करने लगे..
हाड़ी रानी का कुंड 
सुनीता बिश्नोलिया©

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