"मैम स्कूल कब खुलेगा, हमें स्कूल आना है।
आपसे मिलना है, फ्रेंडस से मिलना है। "
"मैम प्लीज एक बार स्कूल दिखा दीजिए।"
प्लीज मैम हमारी क्लास दिखा दीजिए.. प्लीज.. प्लीज।"
ऑनलाइन पढ़ाते हुए बच्चों का स्कूल आने के लिए इस तरह मचलना देखकर चाहते हुए भी उन्हें स्कूल नहीं बुला पाते थे । हाँ लेपटॉप के साथ ही क्लास को मोबाइल से जोड़कर बच्चों को दूर से ही विद्यालय का भ्रमण अवश्य करवा दिया करते थे । बच्चों की खास फरमाइश पर उन्हें स्कूल के पसंदीदा स्थान दिखाकर उनके चेहरे पर मुस्कराहट बिखरने में तब भी शिक्षकों ने कसर नहीं छोड़ी और अब जब बच्चे स्कूल आने लगे हैं तब भी शिक्षक दोगुनी ऊर्जा से जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं।
स्कूल स्टाफ हो या छात्र सभी को थर्मल स्क्रीनिंग और हैंड सेनेटाइज करने के बाद ही स्कूल में प्रवेश की अनुमति दी जाती है।
स्कूल के मुख्य गेट पर खड़े गार्ड से लेकर शिक्षक तक सभी मास्क पहने हुए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं।
अधिकांश बच्चे अब स्कूल आने लगे हैं। स्कूल आकर जहाँ छात्र बेहद खुश है वही स्कूल में भी खुशी का माहौल का माहौल है।
बच्चों को विद्यालय भेजने में अभिभावकों के मन में कुछ शंका और डर अवश्य था। किंतु घर में रहने के कारण बच्चों के आलस्य एवं शिक्षा के प्रति उदासीनता और लापरवाही दूर करने के लिए करीब दो साल बाद अभिभावक भी बच्चों को खुशी-खुशी स्कूल भेज रहे हैं। हालांकि स्कूल भेजने से पहले माता-पिता अपनी हर शंका का निवारण अवश्य करने चाहते हैं और विद्यालय प्रांगण में पहुँचते ही वे सकारात्मक ऊर्जा समेटकर उसी सकारात्मकता को बच्चों के ह्रदय में भर कर विद्यालय भेजते हैं।
ऑनलाइन क्लास में पिंजरे में बंद पंछियों की तरह फड़फड़ाते बच्चों के चेहरों पर स्कूल प्रांगण में पहुँचते ही खुशी, उत्साह और उमंग देखकर हृदय में वात्सल्य की लहरें हिलोरें लेने लगती हैं।
अब बच्चों का हर दिन स्कूल आना किसी विशेष अवसर से कम नहीं। हर दिन नई नए सिरे से स्कूल में तैयारियां और बच्चों के आगमन की प्रतीक्षा में पलक-पावड़े बिछाए कोविड प्रोटोकॉल का पूरी पालन करते एवं करवाते हम शिक्षक।
कई दिनों बाद घर से निकले बच्चे कुछ घबराए-सहमे जरूर होते हैं पर शिक्षक के मीठे बोल उनके लिए प्यार भरी थपकी का काम करते हैं जिससे वे निश्चिंत होकर कक्षा में बैठ कर पढ़ते हैं। हाथों को बार-बार सेनेटाइज करना और दोस्तों से निश्चित दूरी पर बैठने के नियमों का पालन करना बच्चों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।पर कक्षाओं और कॉरिडोर को कई बार सेनेटाइज होते देखकर उनकी आँखों में दुर्दमनीय कौतुहल दिखाई पड़ता है।
आजकल कम बोलते हैं बच्चे और ना ही उन्हें शरारतें करने का मौका ही मिलता है क्योंकि कक्षा को क्षणभर भी खाली नहीं छोड़ा जाता। एक शिक्षक तभी कक्षा से बाहर निकलता है जब कक्षा में दूसरा शिक्षक आ जाता है। अतः अभिभावकों को छात्रों की सुरक्षा के प्रति निश्चिंत हो जाना चाहिए।
लंबे समय बाद छात्रों का स्कूल आना जहाँ खुशी की बात है वहीं ये छात्रों और अध्यापकों दोनों ही के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
सबसे बड़ी चुनौती तो छात्रों के कॉपी के कार्य को लेकर ही देखी गई है।जहाँ अध्यापकों का दिया गया कार्य बच्चे कक्षा में पूरा कर लिया करते थे वहीं कुछ छात्र कार्य के प्रति लापरवाह हो गए हैं। इसलिए उन्हें वो कार्य पुनः करवाने की जिम्मेदारी को भी हम अध्यापक उठा रहे हैं। जहाँ कुछ छात्र कार्य करने एवं प्रश्नों के उत्तर देने में तत्परता दिखाते हैं वहीं कुछ छात्र बिल्कुल शांत और शून्य। इस तरह के छात्रों की पढ़ाई एवं कक्षा के क्रिया कलापों में पुनः रुचि उत्पन्न कर हम शिक्षक छात्रों के ह्रदय से भय दूर कर देते हैं।
कई बार तो मास्क भी बच्चों के असमंजस और परेशानी का कारण बनता हुआ दिखाई देता पर चाहते हुए भी वो मास्क नहीं उतारते हैं।
वास्तव में सारे दिन मास्क लगाकर पढ़ाई करना छात्रों के लिए चुनौती से कम नहीं। इसलिए छात्रों को इतनी दूर-दूर बिठाया जाता है ताकि कम से कम प्रश्न का उत्तर देते हुए छात्र मास्क को नीचे कर सके।
लंच के समय बच्चों के चेहरों के हाव भाव देखकर मन उदास हो जाता है क्योंकि अब ये बच्चे साथ बैठकर लंच जो नहीं कर पाते।
"मैम केंटीन कब खुलेगी, प्ले ग्राऊंड में कब जाएंगे...! "
स्कूल खुल गए हैं तो ये सब भी शीघ्र ही खुलेंगे
, इसी आशा के साथ मैं मुस्कराकर उत्तर देती हूँ " जल्दी ही।"
सुनीता बिश्नोलिया
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