#तरला_दलाल
- #हुमा_कुरैशी
#पीयूष_गुप्ता
#तरला_दलाल
#अमर_उजाला
माँ कहती थी कि इतनी सिलाई तो आनी चाहिए कि जरूरत पड़ने पर कम से कम अपने कपड़े सिल सकें या कपड़ों को टांका लगा सकें।इसी कारण बारहवीं कक्षा के पेपर होते ही छुट्टियों में माँ ने सिलाई सीखने भेजना शुरू कर दिया।
सिलाई में कोई रुचि तो नहीं थी फिर भी छुट्टियों में बोर होने से अच्छा सिलाई सीखने जाना उचित जानकर हम कई सहेलियाँ जाने साथ जाने लगीं।
सिलाई के लिए जहाँ हम जाने लगे वहाँ का नज़ारा देखकर दंग रह गए। हमारी टीचर सिर्फ सिलाई ही नहीं सिखाती थी बल्कि वो तो ऑलराउंडर निकली।
वो एक तरफ सिलाई दूसरी तरफ पेंटिग, तीसरी तरफ सॉफ्ट टाॅय,चौथी तरफ मेंहदी तो पाँचवी तरफ खाना बनाना...आदि.. आदि सिखाया करती थी ।
हममें से किसी भी सहेली का सिलाई सीखने की तरफ ध्यान नहीं था। हमें तो पेंटिंग और सॉफ्ट टाॅय अपनी तरफ बुलाने लगे बन।
सब ने निश्चय किया कि सिलाई की जगह पेंटिंग सीखी जाए। सबको पता था सिलाई की फीस एडवांस दे चुके हैं इसलिए किसी की माँ इसके लिए तैयार नहीं होंगी।
बड़ी मुश्किल से हमने टीचर को एडवांस दी गई फीस से पेंटिंग सिखाने के लिए पटाया। वो मान तो गई पर पेंटिंग की फीस ज्यादा थी और सामान भी बहुत महँगा था।
माँओं को पता ना चले इसलिए उनसे पैसे मांग सकते नहीं थे। बड़ी मुश्किल से सबने अपने-अपने घर में बहन -भाभी आदि को राज़दार बनाकर उन्हीं से थोड़े पैसे भी लिए।
इस तरह हम ऑइल,फाॅयल, फैब्रिक.. आदि कई तरह की पेंटिंग सीखने लगे लेकिन टीचर की रसोई से आती रोज नए पकवान की खुशबु हमारे मन को रसोई में ले जाकर खड़ा कर देती। हमारा तो रसोई की तरफ झाँकना भी मना था क्योंकि रसोई में टीचर की कुकिंग क्लास चल रही होती।
हम सहेलियों ने तो ठान लिया था कि एक बार टीचर की रसोई का दौरा जरूर करेंगे पर कैसे..? लेकिन मौका नहीं मिला..
टीचर का 5-6 साल का छोटा बेटा अक्सर हमारे पास आकर बैठ जाया करता था। हम उससे खूब बातें करते। बातों ही बातों में हम टीचर के खाने की खूब तारीफ करते.. एक दिन उसने अपनी मम्मी यानी हमारी टीचर के स्वादिष्ट खाने का राज़ हमारे सामने खोल दिया.. और वो राज़ था
#तरला_दलाल की रेसिपी बुक। अब मेरे कहने का मतलब है कि तरला दलाल की रेसिपी बुक को पढ़कर हमारी टीचर कुकिंग क्लास चला रही थी.. और वास्तव में हमारी टीचर अन्य कलाओं की तरह कुकिंग में भी एक्सपर्ट थी वो बहुत ही अच्छा खाना बनाना सिखाती थी ।
इसी तरह तरला दलाल की रेसिपी बुक पढ़कर जाने देश की कितनी महिलाएं खुद अच्छा खाना बनाती और कितनी महिलाएँ कुकिंग क्लास चलाती।
@तरला_दलाल का नाम तो सुना हुआ था इस तरह हमने पहली बार तरला दलाल की #रेसिपी_बुक देखी और कुछ सहेलियों ने यह किताब खरीद ली। शादी से पहले तो नहीं पर शादी के बाद पटना जाकर मैंने भी तरला जी की किताब खरीद ली। वास्तव में तरला जी एक प्रेरक व्यक्तित्व है।
अभी कल ही मैने #पीयूष_गुप्ता के निर्देशन में
तरला दलाल के जीवन पर आधारित फिल्म देखी।
तरला के रोल में #हुमा_कुरैशी ने बहुत शानदार अभिनय किया। तरला के पति के रोल में शारिब हाशमी, पड़ोसन भारती आचरेकर जी का अभिनय भी प्रभावी रहा।
अपनी प्रोफेसर की चाल और उनके आत्मविश्वास को देखकर #तरला उनसे बहुत प्रभावित हुई।
कॉलेज में पढ़ रही #तरला के मन में उन्हीं को देखकर जीवन में कुछ करने की इच्छा जागृत हुई।किंतु वो स्वयं भी इस बात को नहीं जानती थी कि आखिर उसे करना क्या है ।
मध्यम वर्गीय परिवार की तरला की शादी नलिन दलाल(शारिब हाशमी) से हुई।
शादी के बाद बारह वर्ष तो तरला ने बच्चों के पालन-पोषण में ही बिताए। लेकिन कुछ करने, कुछ बनने की टीस उनके मन को सालती रही।
जब तरला को अपने पति के नॉनवेज खाने की आदत के बारे में पता चला तो उन्होंने वेज खाने को नॉनवेज खाने की तरह बनाना शुरू किया। अपनी पड़ोसन की तारीफ और प्रेरणा से तरला का ने कॉलोनी से की लड़कियों को कुकिंग सिखाना शुरू किया।इसी बीच पति की नौकरी चली गई और कुकिंग क्लास हो चाहे #रेसिपी_बुक का प्रकाशन हर कदम पर उनके पति ने उनका साथ दिया।
अपनी किताब से प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी #तरला कुकिंग और टी.वी शो के बीच इतनी उलझ गई कि चाहकर भी वो गृहस्थी में पहले जितना ध्यान नहीं दे पाती थी..
कहते हैं ना पत्नी की प्रसिद्धि से कभी कभार पति मन ही मन कुंठित हो उठता है... कुछ ऐसा ही हुआ तरला दलाल के साथ..फिर भी तरला बहुत आगे बढ़ी.. .. कैसे..? आप भी फिल्म देखिए और तरला दलाल की सफलता के राज को जानिए।
सुनीता बिश्नोलिया
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