सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कोहरा

#कोहरा कंप-कंपाती  सर्दी में  वो,       वो सुबहा सजीली आई , कोहरे की साड़ी बाला ने,             अंधियारे खेतों पर लहराई । हर डाली पर तितली सा कोहरा,              ओस की तरह छिटकता, उस 'आँचल' के स्पर्श से पादप,              'अलसा ' अँगड़ाई लेता।                 कोहरे से लिपटे खेतों में ,            कोई मस्त मगन हो गाता। देख के  बाली गेहूं की ,           खुशियों से वो भर जाता ।                  सर्दी और कोहरे की सुबहा,          जोश ह्रदय में भरती, साम्राज्य धुंध का फ़ैल रहा,           फसलें नव-जीवन पाती। #सुनीता बिश्नोलिया

#विडम्बना

जयपुर से दिल्ली की यात्रा..दिल्ली में स्वागत किया स्वच्छता अभियान को मुँह चिढ़ाते दृश्य ने...दिल्ली देश का दिल..राजधानी,मन सन्न रह गया गंदगी के ढेर देख कर। हादसों को निमन्त्रण देता बड़ा सा टूटा हुआ वृक्ष...झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोगों के इधर उधर  भागते बच्चे..रेलवे ट्रेक के पास सूखते ,हवा से इधर-उधर लहराते कपड़े उफ़ ! क्या ये है स्वच्छ भारत की तस्वीर...ये तो स्वच्छता की ओर एक कदम भी बढ़ा हुआ नहीं लग रहा...वही..गरीब वही गरीबी.. कहाँ रह गई सम्पन्नता ..किसके हिस्से आई है दौलत..क्या इनके हिस्से यही रेलवे ट्रेक हैं...यहीं नित्य क्रियाओं से निवृति....गंदगी फ़ैलाने का कारण...स्वयं के लिए समस्याएँ..स्वयं के परिवार को सदेव बुरी नजरों से बचाने का प्रयास करते लोग..और इनके हित में कार्य करने का दावा करने वाले ..शायद भोग और ऊँचे बोल- बोलकर ही सुख पाते हैं। कहते हैं स्वच्छता अभियान जोरों-शोरों से चल रहा है..हाँ अवश्य चल रहा है, किन्तु कागजों मे कुछ लोगों ने तो जैसे ठान लिया है ,स्वच्छता अभियान पर ही झाड़ू फेरना है..यहाँ आम जन सहभागिता भी.दिखाई नहीं देती कि सरकार का सहयोग करके ही लक्ष्य प्राप्ति हे

# फ़िज़ा

आज फ़िज़ा बदली-बदली,देश की मुझको लगती । पहले सा प्रेम ना यहाँ रहा,कड़वाहट घुली सी दिखती। मुस्कान बिखरते चेहरों के, मन मैले से लगते सम्मुख अमृत बरसाते,क्यों!पीछे से जहर उगलते। आज फ़िज़ाओं में बोलो, क्यों ! काले बादल छाए , रूप मनुज का लेकर क्या?,फिर से कोई 'दानव' आए । तर्क-वितर्क में पड़कर के,हर तरफ ही आँखे जलती, आज फ़िज़ा बदली-बदली ,देश की मुझको लगती। अपने पाँव जमाने को दूजे का पैर पकड़ते, पाकर ऊँचा ओहदा क्यों!उसी को वहाँ गिराते। भाषा ऐसी आज कहो,कुछ लोग हैं क्यों,अपनाते, स्वयं का दामन स्वच्छ रखें,कीचड़ दूजे पर फेंकें। कुर्सी के खेल में पड़कर के,क्यों इतना हैं गिर जाते, सम्मान उसी का ना हरके,परिवार को मध्य ले आते। अनगिनत प्रश्न हैं उमड़ रहे,आँखें उत्तर ना पाती, आज फ़िज़ा बदली-बदली,देश की मुझको लगती। #सुनीता बिश्नोलिया

लोकगीत

#लोकगीत आओ जी ..आओ पावना..पधारो अठे पावणा सौंधी माटी री खुशबू मैं, ढोला-मारू आज बस्या  है... म्हारी धोरण री धरती नै निहारो,प्रीत अठयां री जाँचो.. आओ आज अठे थे आओ...ओ प्यारा पावणा, म्हारा मीरा रा पद गूंज,वान सुणss संत सब झूमss आओ पावना...ओ प्यारा पावना। म्हारै जयपुर रो गढ़ ऊँचो, न दूजो बीकानेर सरीखो ..ओ देखो पावणा.. आओ जी आओ पावणा, ई रा ऊँचा नीचा-टीबा,जाँ मैं सर्पीला सा धोरा, रमोजी आमैं.प्यारा पावणा..पधारो प्यारा पावना, ई री घूमर री घूम मैं घुमो, गढ़ चित्तौड़ पे चढ़ बदल न चूमो..ओ प्यारा पावणा.. पधारो पावणा..आओ जी अठे पावना। फर्ज री खातिर सिर खुद काट लियो क्षत्राणी, जोहरी री आग मैं कूदी,मान बचायो थो क्षत्राणी, बां री पुण्य धरा पर आओ....वां री चिता नै सीस नवावो... आओ जी अठे पावणा...पधारो अठे पावणा.. आओ जी आओ पावना। मोरां बाई रा गीत सुनो जी..कालबेलियां संग नाचो जी ओ..प्यारा पावणा.. पधारो पावणा..आओ जी आओ पावणा. (अपने लोकगीत के माध्यम से राजस्थान के गौरवशाली अतीत और यहाँ के वीर-वीरांगनाओं का यशगान करते हुए यहाँ की विरासत..प्राचीन इमारतों को देखने के लिए पावणों अर्थात मेह

विदाई

#विदाई बाबुल अपनी लाडो को ना,कर देना कभी पराया, विदाई की वेला में ना जाने,क्यों भाव ये मन में आया। चंचल चिड़िया आँगन की, मैं पंख पसार रही हूँ, ना बने कभी पिंजरा 'डोली',इसलिए निहार रही हूँ। माँ की कोख का मोती पिया,तेरे घर में जान सजेगा, निर्मल-स्नेह का सागर अब,मुझे तेरे ही घर में मिलेगा। सौरभ से युक्त खिला 'सुमन' ,बाबुल ने तुमको सौंपा, आज शाख से अलग हो चला,बन कंटक ना देना धोखा। गाँठ बाँध कर स्नेह की,तेरे संग ख़ुशी-ख़ुशी आऊँगी, तुम भी वचन के पक्के रहना,मैं भी हर वचन निभाऊँगी। नीर भरे नयनों में सपने,नव-जीवन के हैं संजोये, भाई भी मेरे कर के विदा,किस और जान हैं खोये। आँखों में ले दर्द के बादल,वो मेरे पास में घूमा करते, कहाँ छिप गए  बदरा वो जो,मस्तक चूमा करते थे। मैं बाबुल के बागों में , बन कोयल थी कूका करती, उन बागों से निकल आज,तेरे संग मैं हूँ डग भरती। बदल गया है वेश मेरा, हाँ..मेरा बदलेगा परिवेश, मुझको भुला ना देना, ओ! मेरे..प्यारे बाबुल के देश। #सुनीता बिश्नोलिया

उगता सूरज

#उगता सूरज ले आशा का संसार सुनहरा, दिनकर ने कर फैलाए, नव जीवन पा करते कलरव ,नभचर भी हैं हर्षाए। उम्मीदों की रश्मि रवि ने, कण-कण पर बरसाई, पाकर स्वर्णिम सूर्य किरण,वसुधा ने ली अंगड़ाई। संदेश विजय का दे सूरज,जन-जन में जीवन भरता, अंधकार को हर 'दिनेश' , सिंदूरी पताका लहराता। अलसाई सी वो उषा भी,खिल उठी परस पा सूरज का खिल उठे पुष्प उपवन के,धड़का दिल भी कलियों का। बाँहे पसार खुशियाँ बरसाता, राहें भी नई दिखाता, आया ले प्रचण्ड तेज, जनमानस में साहस भरता। उदित होते भानु  की किरणें, हरदम हमें जगाएँगी, ह्रदय चीर बाधा का बढ़ तू, बाधाएँ खुद ही हट जाएँगी। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

तेरे द्वार

#तेरे द्वार कौन आया है ये आकर देखिए, इस अजनबी से रिश्ता बनाकर  देखिए । वो उम्मीद भरी आँखों से देख रहा है एक बार तो उस पर प्यार लुटाकर देखिए। एक अबोध नन्हा बालक द्वार तेरे है आया, ना जाएगा रिक्त हाथ वो तुम्हारे  द्वार से, उस मासूम का दृढ़ विश्वास तो देखिए, उस नादान को अब खुद ही आकर देखिए। हालत खुद ही बयां उसका चेहरा कर देगा, प्यार से बोलना तुम्हारा झोली उसकी भर देगा। भीख नहीं वो प्रेम का  निवाला  चाहता है, आँखों में बसे अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर चाहता है। तुम क्यों चार दिवारी के भीतर और वो बाहर रहता है तुम नित नए वस्त्रों से सजते हो और वो नंगा सोता है। क्या मेरे रक्त का रंग तुम से जुदा है उसके सवालों को आके जरा सुलझाइए, कौन आया है ये आकर देख तो देखिए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर