सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

#अटल बिहारी

#अटल बिहारी.....(मेरी कविता का एक अंश) नमन अटल.. अटल स्वप्न नयनों में लेके,मधुर कविता गाता देश-प्रेम का जज्बा दिल में,मुख उसका बतलाता । निडर ऐसा लापरवाह ,अंजाम से ना घबराता पथ के पत्थर को मार के ठोकर,आगे वो बढ़ जाता । निज भाषा के शब्दों को , विश्व मंच पे था बिखराया विश्व-पटल पर खड़ा अटल वो,मेघ के सम था गरजा । पोकरण या कारगिल हो ,शक्ति सिंह सी दिखलाता। दुश्मन को  लाचार बनाकर,नाकों चने चने चबवाता। राजनीति का चतुर खिलाडी,शब्दों के तीर सुनहले, खुद उलझन में फंसता पर,परहित हर द्वार थे खोले। कथनी करनी एक सामान, आँखों में बस हिंदुस्तान, अटल वचन वाला वो सिपाही,अटल बिहारी है महान। अटल-फैसला,अटल-ह्रदय से, लेना तब मज़बूरी थी, गद्दारों को सबक सिखाने , की पूरी तैयारी थी। तैयार खड़े थे सीमा पर,तोपों की गर्जन थी भारी थी, सबक सिखाया दुश्मन को,पाक को दी सीख करारी थी। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

श्रृंगार

# हाइकु---श्रृंगार (सृष्टि से श्रृंगार) सृष्टि-श्रृंगार यौवन की गागर डूबी सागर                     चन्दन टीका                   उबटन पुष्पों से                    माणक माला सूर्य सी आभा गौरी के मुख पर बिंदिया-तारे                            घटा-काजल                          अनुराग-अंचल                            दामिनी-गोटा मोती-मुद्रिका पुष्प गुम्फित-केश लताएँ-साड़ी                            साँस-संवाद                         अम्बर-चुनरिया                             मेरा-श्रृंगार अधर-लाल सुर्ख-मुखमंडल नवल-चन्द्रिका                            बिन नथ के                          अधूरा है श्रृंगार                            सुहाग-चिन्ह गजरा-फूल नुपुर-खनकते पाँव-पैंजनी                             नाजुक-कटि                            करधनी-सुहाए                              बिछिया-गेंदा सौलह हैं श्रृंगार सजन तेरा प्यार हर जन्म में। #सुनीता बिश्नोलिया

रुकना मत

#रुकना मत कठिन राह है तेरी मगर ना पस्त हौंसले करना, घायल पंछी तू भर#उड़ान, ना मंजिल से पहले रुकना। मंजिल से पहले बाधाओं को, देख पथिक ना घबराना, #जुबान कटुक सुनकर-सहना, अपना धीरज ना खोना। लक्ष्य से पहले पथिक तेरी, गर साँस-टूटे मत घबराना, मंजिल पाने को ऐ पंछी ! #कुर्बान तू चाहे हो जाना। तेरी राह रोकने को ऐ खग ! #तूफान जो आए मत रुकना, हों काल से सम्मुख आन खड़े, तो उनसे भी टकरा जाना। हे पथिक ! लक्ष्य को पाकर के, दंभ से तनिक ना भर जाना, फल युक्त वृक्ष सा झुक कर के, #मुस्कान जरा बिखरा देना। #सुनीता बिश्नोलिया

नई शुरुआत

खुदा के सामने तेरी बता #औकात क्या बंदे यहीं रह जाएगा सब कुछ,छोड़ अपने बुरे धंधे। ना कह#बदजात ओरों को ,बुरा ना कर तू ऐ पगले, जमाने की नजर में खुद को,कर साबित अरे बंदे। तेरा ये धन तेरी दौलत ,ना कुछ भी साथ जाएगा, करेगा कर्म जैसा तू , खुदा से वो ही ईनाम पायेगा। तू #तहकीकात कर दिल में, खुदा को पास पायेगा, जरा तू झाँक ले दिल में,समझ हर सच को जाएगा। छोटी सी जिन्दगी बन सहारा,किस्मत के मारों का, #मुलाकात खुद करेगा वो,रूप ले उन बेसहारों का। जो अब तक न किया तू कर,नई#शुरुआत अब दिल से, तेरे दिल को मिलेगी तब ख़ुशी,बढ़ कर खजाने से। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

#मुहब्बत

मुहब्बत नाम है तन्हाई में तन्हा सुलगने का, सनम की याद में खुद को..गम में डुबोने का। मुहब्बत नाम है दिल पे बनी,उन लकीरों का, जिगर को भेदती गहरा,चमचमाती शमशीरों का। मुहब्बत नाम है दिल में लगे उस घाव गहरे का, जमाने ने लगा रखे..कड़े नजरों के पहरे का। चले ना जोर दिल का वो,मुहब्बत ही तो होती है, दिन-रात फिर मजबूर आँखे,मुहब्बत में ही रोती हैं। बड़ी उम्मीद से मैंने बनाया आशियां  मुहब्बत का, मेरी हसरत के टूटे महल..बचा खंडर मुहब्बत का। है नाजुक बड़ी ये चीज, कच्चे काँच की तरहा, जो टूट कर भी  दे ही जाता , जख्म भी गहरा। किसी के नाम पर खुद को फ़ना कर गुजरने का।, मुहब्बत नाम है तन्हाई में तन्हा सुलगने का। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

महानायक-अमिताभ बच्चन

व्यक्तित्व व कृतित्व (महानायक अमिताभ बच्चन) मधुशाला में बहके कोई..        प्यालों को छलका कर के, हरिवंश तनय क्या लिखूँ कहो ,             आज तुम्हारे बारे में। कला के अंकुर का उद्भव,          शायद बचपन में पनप उठा, रंगमंच पे आ के तभी तू,            अमित वृक्ष बन हुआ खड़ा। प्रारंभ की ठोकर को तूने,         प्रसाद स्वरूप था ग्रहण किया, लक्ष्य पाने को तूने ,                   दुनिया से संघर्ष किया। अहंकार को जीवन भर,               आने ना अपने पास दिया, मुख पे मुस्कान सदा रहती,             अभिमान ना तुझे जरा सा किया।         जीवन में जय का प्रवेश अमित,         अभिषेक 'एश्वैर्य ' का करता है, 'आराध्य' की भांति ईष्ट हो तुम,          मन प्रणाम दूर से करता है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

अँधेरी रात

ये कविता उस समय लिखी थी जब जयपुर में एक तीन साल की बालिका दरिंदगी का शिकार हुई .. फूल के आँचल से लिपटी,सो रही थी वो कली ना मचा था शोर पर,थी वहाँ बिजली गिरी। #उपवन में जंगल से था आया,एक ऐसा जानवर, नन्ही कली को देख,उसके मन में आया पाप भर। तोड़ उसको शाख से,अलग उसने कर दिया, अधखिले उस पुष्प को,रौंद कर के रख गया। फूल की जब नींद टूटी,थी कली ना पास में, मन डर गया उस पुष्प का,बस.. बुरे अहसास में। बदहवासी में वो दौड़ा,आँख में  थी अश्रु धार हाल उसका देख के ,,करने लगी सहसा चित्कार। वज्र टूटा हाय! माँ पे , भगवन...!ये क्या हो गया ? ये घिनौना कृत्य बोलो ,कौन ...? कर   गया । अंश की हालत को देखा,हो गई ममता निढाल. फट गया उसका ह्रदय,आँखों में उसके कई सवाल? सिर पे छत ना होने की ,क्या इतनी घिनौनी है सजा, गर हाथ में होता हमारे ,हम लेते महलों का मजा। नर-भेड़िया वो आज शायद!,पास ही में है खड़ा, सब संग वो भी भीड़ में ,हक़ के लिए मेरे लड़ा। होड़ सबमें  क्यों मची है ,देखने मेरी  दशा सहमी हुई और कांपती माँ, हो गई है परवशा। जलती  हुई उन आँखों से ,कई प्रश्न उसने दाग कर, सबको निरुत्तर कर  दिया,एक