#हास्य रस लेट गए पपलू जी पीकर, बस एक दाल का प्याला, रसगुल्ले का भोग लगाता, बाहर बैठा साला। साले साहब की हुई सगाई, संग लाए वो बची मिठाई। पपलू जी की तोंद हिली, देख मिठाई लार गिरी। हाथ में लेकर दो रसगुल्ले, मुँह से निकले दांत थे पीले, किया जो उनको मुँह की ओर, मैडम ने छीना मुँह का कौर। पपलू जी कुछ मोटे हैं, कद में थोड़े छोटे हैं। मैडम का अब गुस्सा फूटा, देख पसीना उनका छूटा । मीठा खाना बंद करो , कुछ तो थोड़ी शर्म करो। साँस फूलती,बात-बात में, काया अपनी है रहम करो। बस दाल पड़ेगी आज से पीनी, हुए सुन पपलू जी पानी-पानी। मैडम के गुस्से के आगे, न चल पाया कोई बहाना, ले अपना सा मुँह उनको कमरे में पड़ गया जाना। अंदर बैठे सोच रहे वो
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia