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संदेश

हास्य रस

#हास्य रस लेट गए पपलू जी पीकर, बस एक दाल का प्याला, रसगुल्ले का भोग लगाता, बाहर बैठा साला। साले साहब की हुई सगाई, संग लाए वो बची मिठाई। पपलू जी की तोंद हिली, देख मिठाई लार गिरी। हाथ में लेकर दो रसगुल्ले, मुँह से निकले दांत थे पीले, किया जो उनको मुँह की ओर, मैडम ने छीना मुँह का कौर। पपलू जी कुछ मोटे हैं, कद में थोड़े छोटे हैं। मैडम का अब गुस्सा फूटा, देख पसीना उनका छूटा । मीठा खाना बंद करो , कुछ तो थोड़ी शर्म करो। साँस फूलती,बात-बात में, काया अपनी है रहम करो। बस दाल पड़ेगी आज से पीनी, हुए सुन पपलू जी पानी-पानी। मैडम के गुस्से के आगे, न चल पाया कोई बहाना, ले अपना सा मुँह उनको कमरे में पड़ गया जाना। अंदर बैठे सोच रहे वो

प्रियवर-गजल

# ग़ज़ल # काफिया - आना # रदीफ़ - था सूने से सपनों में प्रियतम,तुम्हें अचानक आना था, प्रेम के प्यासे जीवन में,तुमको बादल बन छाना था। पंख हवा से लेकर डोली,पाकर तुमको मैं प्रियवर, यूँ ही तेरा सपने में आना,अंदाज बड़ा मस्ताना था। खुशबू प्रियवर तेरे नेह की,भूली ना मैं भूलूँगी, तेरा मेरे सपनों में आना,जीवन को महकाना था। झूम उठी सपनों में प्रियवर सौगात तुम्हारी पाकर मैं सपनों में ही सही तुम्हें, मुझसे तो मिलवाना था। स्वप्न अधूरा छूटा प्रियवर फिर उजली सी भोर हुई, साथ सुहाना अपना था बस गीत प्रीत का गाना था। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-गर्मी

दोहे- गर्मी गरमी में जियरा जले, माथे टपके श्वेद। पेड़ ठूँठ बन हैं खड़े, अब क्या करना खेद।। जी अलसा तन झुलसिया,लू भी चलती जोर। मनवा को चैना नहीं , तपे धरा हर ओर।। कहता तरु मुसकाय के,आ रे मानस पास। गरमी ही बतलायगी,मैं भी हूँ कुछ खास।। भरा ताल ज्यों सड़क पे,मनवा भी भरमाय। बिन बादल ही रे मना,ये गरमी नहलाय।। तपती धरती पर तपे,और जले दिन रैन. बेघर खटता ताप में,सुने गरम वो बैन।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

बेकली

#बेकली बेकली में सनम क्या से क्या हो गए, मेरी नजरों में तुम बेवफा हो गए। बड़ी बैचैनी में रात काटी थी हमने, मेरी आँखों के सपने कहाँ खो गए। तेरी यादों को दिल में बसाया तो था, तुम ही क्यों इतने पराये हो गए। चैन मेरा तुम्ही थे मैं कहती रही हूँ, चैन मेरा क्यों तुम फिर कहो गए। मैं इतनी हूँ तनहा कैसा असर ये हुआ है, बेकली का ये आलम तुम क्या हो गए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

चौपाई-भारत माँ

#चौपाई ये अपनी भारत माता है, बैरी क्यों घात लगाता है। छोड़ो आपस की तकरारें मात भारती हमें पुकारे। बेबस और लाचार हुई माँ, तन पर गहरे घाव सहे माँ। रक्त भाल पे आज लगाएँ, आओ माँ को शीश चढ़ाएँ।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

औरत

#औरत ज्योति-पुंज,है निकुंज,          मातृ-शक्ति है,ये भक्ति भी है यथेष्ठ,सबसे श्रेष्ठ,        ईश्वर की सूरत,स्वयं है औरत। इसका शुभ्र है चरित्र,           सब सखा सभी हैं मित्र, अडिग-अचल है धरा ,               ह्रदय में प्रेम है भरा। कोमल सी है ये कामिनी,                 तेज है ज्यों दामिनी, सत्ता पुरुष की तोड़ती,                निशां विजय के छोड़ती। आँगन में जलती जोत,                 महान- प्रेरणा की स्त्रोत, जीवन संगिनी,अर्धांगिनी,               जिम्मेदारी से लदी लता घनी। साक्षात् सकल सृष्टि है,                   सब पे करती प्रेम-वृष्टि है, परीक्षा में सदा खरी,                     जूनून जोश से भरी । कैसा भी विचार हो,                    लोलुप सकल संसार हो निर्मलता का निर्झर है ये,                 जग की रखती हर खबर है ये। गुणों की ये है खदान ,                परम-पूज्या है महान। साश्वत सत्य है यही,                  सम्पूर्ण जैसे हो महि। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

मिट्टी

#मिट्टी न सुंदर मैं स्वर्ण भस्म सी स्वर्ण कलश सी ना मजबूत, मैं कुम्हार की कच्ची मिट्टी, लेती वो जो देता स्वरूप। कूट-कूट के मल-मल के, मैं चाक चढ़ाई जाती हूँ, जल के छींटे पाकर के, कोमल मैं बन जाती हूँ। दिया बनूँ मैं हरण करूँ, अंधकार इस जग का, बनूँ खिलौना,मन बहलाऊँ परस पा के हाथों का। जलूँ आग में,तपूँ रात दिन सहती कठिन परीक्षा, बाधाओं से लड़ने की गुरु-कुम्भकर देता शिक्षा। जल को निर्मल-शीतल कर दूँ, वो मन्त्र फ़ूकता ऐसा, मैं कच्ची मिट्टी कुम्हार की, तृप्त कर्रूँ मन प्यासा। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर