#कुम्भकार पाकर के स्पर्श तुम्हारा, जगी चाक की किस्मत, ये जीवन के फेर बताकर, रज को देता हिम्मत। ज्यों जीवन का चक्र निरंतर अविरल चलता रहता है, कुम्भकार का चक्र घूम कर नश्वरता बतलाता है। कोमल कच्ची मिट्टी को अपनी छाती पे वो धर कर, स्नेह पिता का देता है वो है सहलाता माँ बनकर। शीतल जल पाकर शीतल वो वचन सुनाया करता है, शीतल वचनों की शीतलता रज में वो भर देता है। हे कुम्भकार हे भाग्य विधाता, मनचाहा हे सृजनकर्ता, तेरे हाथ की रज का जादू , चाक पे जीवन के निर्माता। हे कुम्भकार तुम धन्य हो, धन्य तुम्हारे हाथ का गौरव धन्य तेरे है चाक की कृति, धन्य तेरी माटी का सौरव, #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia