#मुआवजा
रेवती की आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे । बार-बार वो चारों बच्चों का माथा चूम रही थी,ह्रदय में ममता हिलोरे ले रही थी। खेत से थक-हारकर लौटी सास बार-बार रोने का कारण पूछ रही थी। पर रेवती कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी।बस वो चुपचाप खाना खाना बनाने का इंतजाम करने लगी।
दिनभर दूसरों के खेत में मजदूरी बदले सास को थोड़ा सा आटा,चावल और मुट्ठीभर दाल मिली। जो उसने लाकर बहु को दे दिया।हालांकि घर के सातों सदस्यों के लिए यह राशन अपर्याप्त था किन्तु सुबह की तरह बच्चे भूखे नहीं रहेंगे..आखरी बार उन्हें अच्छा खाना तो खाने को मिलेगा।
इसी सोच में डूबी रोती हुई वो काम कर रही थी तभी सास उसके पास आई और बोली "बेटा क्यों अपना दिल जलाती हो,जिसे जाना था वो तो चला गया। पर हमें इन बच्चों के बारे में सोचना है इनका भविष्य बनाना है। माना कि कुम्भल कुम्भल पति था पर हमारा भी तो बेटा था। उसकी मौत के पाँचवे दिन जब मैं इन बच्चों का पेट भरने और हँसता चेहरा देखने के लिए काम पर जा सकती हूँ तो तुम्हे भी हिम्मत रखनी होगी इन बच्चों में ही अब हमें अपना कुम्भल खोजना होगा।"
इतने में लाठी के सहारे चलते और बुरी तरह थके हुए रेवती के ससुर भी हाथ में एक पोटली लेकर आ गए और बहु को देते हुए बोले "बिटिया लो ये दाल और भात सुबह बना लेना,कुम्भल नाहक ही कहता था कि काम नहीं मिलता, ढूंढो तो सब मिलता है,जब मुझ बुड्ढ़े को लोग काम दे सकते हैं तो वो तो जवान था। क्या हुआ जो हमारे खेत में फसल नहीं हुई,बरसात होना न होना तो भगवान के हाथ है। "
सास-ससुर की हिम्मत और जज्बा देख कर रेवती को बहुत हिम्मत मिली। वो खाना बना रही थी पर जबरदस्त अंतर्द्वंद से जूझ रही थी। दादा-दादी के आने से पहले बच्चे उदास थे पर देखती है अब सामने ही चारों बच्चे दादा-दादी के पास बैठे है कोई गोदी में तो कोई काँधे पर..दादा-दादी भी अपनी थकान भूलकर बच्चे बने हुए हैं उनके चेहरों पर बेटे की मृत्यु का वो अवसाद अब दिखाई नहीं दे रहा जो कल तक था।
रेवती सोच रही थी "सच ही तो कह रहे है सास-ससुर बरसात का होना न होना हमारे हाथ नहीं और भूख और कर्ज से डर कर जीवन समाप्त कर लेना समस्या का समाधान नहीं। जब इतने बुजुर्ग माता-पिता बेटे की मौत का सदमा बर्दाश्त कर पोते पोतियों की ख़ुशी के लिए सामान्य जीवन जी सकते हैं तो मैं क्यों नहीं।"
"सच ही तो है किसी के जाने से जीवन नहीं रुकता भगवान ने मुझे भी हाथ दिए हैं और छोटा सा खेत भी है।
कुम्भल तो कायर था जो अपने कर्त्तव्यों से भाग गया।
हमेशा हमारे दिन ऐसे नहीं रहेंगे कभी तो इंद्रदेव इस गाँव पर महरबान होंगे कब तक नहीं बरसेंगे। "
आस-पड़ौस के लोगों के बारे में सोचती है तो उसे याद आया कि सभी की हालत हमारे जैसी ही तो है। कोई भी धनवान या पूरी तरह से खुश नहीं फिर भी जीवन की गाड़ी खींच रहे हैं डर कर मर तो नहीं गए।किसको फर्क पड़ा कुम्भल की मृत्यु का,दो दिन सब आए फिर सब अपने और अपनों का पेट पालने में जुट गए।
किसने बुजुर्ग सास-ससुर को काम पर जाने से रोक या हमारी आर्थिक मदद की ।अपनी मदद तो खुद आप ही करनी पड़ती है,अपना परिवार अपनी जिम्मेदारी है न कि पड़ौस और सरकार की। रही बात सरकारी मदद की तो वो भी ऊपर वाले के ऊ..प.र वाले पर ही निर्भर करता है।
इस गाँव में तो सभी को सरकारी मदद की आवश्यकता है इसमें तो लंबी कागजी कार्यवाही और लंबा समय लगेगा तब तक हम भूखे तो नहीं रहेंगे या अपनी जान तो बिल्कुल नहीं देंगे। कुम्भल ने मरने से पहले एक बार भी हम सबके बारे में नहीं सोचा कि उसके मरने से समस्याएँ कम नहीं होंगी बल्कि माता-पिता और मुझ पर भार बढ़ जाएगा,बच्चों की पढाई छुट जाएगी...
अचानक उसके विचार बदले "शायद कुम्भल ने सोचा कि उसकी मौत के बाद मुआवाजे की जो रकम मिलेगी उससे घर चल जाएगा...ओह्ह्ह कुम्भल! अब समझ आया तुम्हारी 'आत्महत्या' का कारण। मुआवजा पर कितना..कब कहाँ...उफ्फ्फ! बहुत गलत किया तुमने,
हम मिलकर काम करते,कर्ज चुकाते,समय के साथ सब कुछ सही हो जाता।लेकिन मुआवजे की रकम कितने दिन चलेगी,उम्रभर?? नहीं..नहीं ये भीख होगी,दान होगा जो कभी तो ख़त्म हो जाएगा..मेरे और बच्चों के बाद बूढ़े-सास ससुर जो अब तक पूरी तरह नहीं टूटे ,वो टूट जाएँगे,उनके जीने का मकसद भी समाप्त हो जाएगा।
फिर उनके पास भी एक ही रास्ता बचेगा जो मैं करने जा रही हूँ..नहीं..नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती। ये नन्हे फूल पूरी तरह से खिले भी नहीं मुझे इनको मसलने का कोई अधिकार नहीं। ये भी जिएँगे और मैं भी, हम सब एक-दूसरे का सहारा बनेंगे। जीवन संघर्ष का नाम है रोज मुश्किल झेलकर आगे बढ़ना है,मुझे बच्चों को पढ़ाना हैं।
"मैं खूब मेहनत करुँगी ..कुम्भल की तरह जिंदगी की जंग से हार मानकर भागूँगी नहीं,अपने हर कर्त्तव्य को अच्छी तरह निभाऊँगी।"
तभी सास की ने आवाज दी "रेवती बच्चों को नींद आ रही है जल्दी खाना दो,चलो मैं आती हूँ परोस देती हूँ।" रेवती ने मुस्काते हुए कहा "नहीं माँ आप बैठिए मैं आती हूँ आप सब साथ ही खा लेना" कहती हुई रेवती मिट्टी की दीवार की तरफ जाकर चुपचाप 'आक' के फूलों का रस फैंक कर आ गई। सभी ने थोड़ा-थोड़ा खाना खाया और सास ने खुद बचा हुआ खाना रेवती को परोसा। सास-ससुर का स्नेहिल साथ और प्रेम से दिए खाने से रेवती का पेट तो नहीं पर आत्मा जरुर तृप्त हो गई। वो आज सोई अवश्य थी पर दूसरे दिन के लिए नई रोशनी और सकारात्मक ऊर्जा के साथ।उसने पति की मौत के मुआवजे के रूप में घर की जिम्मेदारी,कर्ज और बेटे के सारे कर्त्तव्य जो स्वीकार कर लिए थे।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें