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ग़मगीन हो जाना तो बुज़दिलों का काम है

आज अपनी प्यारी दोस्त प्रीति कपूर की कविता पढ़कर ऐसा लगा कि उन्होंने इस कविता में हर वो बात  कह दी है जो मेरे मन में थी। मेरे मन में निराशा के लिए कोई स्थान नहीं इसीलिए यह कविता मेरे मुझे विशेष रूप से पसंद है। जयपुर के वैशाली नगर स्थित डिफेंस पब्लिक स्कूल में प्राथमिक कक्षाओं की इंचार्ज होने के साथ ही सामाजिक विज्ञान ( Social science)  की अध्यापिका प्रीति कपूर छात्रों की प्यारी अध्यापिका होने के साथ ही स्पष्ट विचारों की धनी भावुक हृदयी लेखिका हैं आइए पढ़ते हैं ह्रदय में आशा का संचार करती यह कविता।  कविता पढ़कर अपनी राय अवश्य दीजिए  आज कल दिल कुछ बिखरा बिखरा सा रहता है कई बार सोचती हूँ की समेट लू वह पल ,  वह यादें जो दिल को सुकून देती थी पर फिर अचानक जाने क्या होता है ,  कुछ छूटता सा,टूटता सा महसूस होता है, दिल को समझती हूँ , कि यह बस कुछ समय की बात है। उमंगो को सोने मत दे, जज़्बातो को जगाये रख,  यह भी एक लम्हा है, गुजर जायेगा, यह पल यहीं नहीं ठहर पायेगा, पर फिर भी न जाने क्यों यह दिल , आजकल कुछ बिखरा बिखरा सा रहता है हँसना चाहती हूँ ,और हँसती भी हूँ पर फिर भी

हिंदी दिवस - कविता

निर्द्वंद्व जगत में हिंदी को,दुरंत वेग से बढ़ने देना। यशगान करे दुनिया सारी,वो स्वर्णिम शब्द भुला ना देना अंग्रेजी मद में डूबों के लिए ,ना मन में मत्सर आने देना, संस्कृति से सदा सुशोभित,'सरस' शब्द भुला ना देना। कटिबद्ध रहो साहित्य-साधक,'खोह' में इसे ना खोने देना, अभिव्यक्ति के स्त्रोत सदा,विलक्षण शब्द भुला ना देना।  अनमने हुए जगत के बीच, इसे न निर्वासित होने देना, तल्लीन भाव से हिंदी का,यश-निनाद तुम भूल ना जाना। निज भाषा के तिरस्कार के,मूक-दर्शक तुम बन न जाना, विद्रोह -स्वर कलम से लिख,ध्वनित करना भूल न जाना। तुम बद्धमूल हिंदी भाषा से,समुचित विश्व-विभूषित करना, करो उद्घाटित शब्दाकर्षण ,शीघ्र अनुमोदन भुला ना देना। बेहिचक उन्नति की राहों मे,बन पथ-प्रदर्शक इसे बढ़ाना, नतमस्तक हो दुनिया सारी,कर्म को करना भूल ना जाना। साहित्य के विस्तृत सागर से,श्रेष्ठ साहित्य की गंग बहाना , भूल चले लोगों के ह्रदय में,प्रेम  जगाना भूल ना जाना। #सुनीता बिश्नोलिया ©®  हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं   शब्दों की सरिता बहे, बोले मीठे बोल।  हिंदी भाषा है रही कानो

शकुंतला शर्मा की कविताएँ-नारी,ध्रुव स्वामिनी,वीरवधू ।।।।।।।हो गया।।।।।।।. प्रेम, मेरा शहर मन-अश्व

                   Shakuntla Sharma  आपका परिचय करवाती हूँ  वरिष्ठ साहित्यकार  शकुन्तला शर्मा  जो कि शिक्षा संकुल के सहायक निदेशक पद से सेवा निवृत हुई हैं। आप बचपन  से ही  नानाजी की प्रेरणा से स्कूल कार्यक्रमों में भाग लेती फिर महाविद्यालय में पढ़ाई के दौरान कविता और कहानियाँ पढ़ने के साथ ही लिखना  भी प्रारंभ किया और तभी से आपका लेखन निरंतर चलता रहा है । हिंदी भाषा में लेखन के साथ ही आपका अपनी मायड़ भाषा राजस्थानी के प्रति मोह भी किसी से छिपा नहीं है। राजस्थानी भाषा में भी निरंतर लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन पर आप काव्य- में भाग लेती रहतीं हैं। शीघ्र ही आपका राजस्थानी भाषा में काव्य संग्रह आने की उम्मीद है। अखिल राजस्थान कहानी  प्रतियोगिता में  प्रथम स्थान, एवं अपनी  कालेज मे  अध्यक्षा  रही ।विद्यालय  प्रसारण,वार्ता,  परिचर्चा,  आलेख आदि लिखती रहती हैं। विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में आपके लेख, कहानियाँ, कविताएँ आदि छपते रहते हैं। आपके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।  सम्प्रति  काव्य संग्रह                            1.प्रस्फुटन     साहित्य  अकादमी  ,उदयपुर से प्रकाश

महादेवी वर्मा

                                 महादेवी वर्मा  सपनों के वो जाल बना,          चाहती थी मधु-मदिरा का मोल,  मधुर-मधुर दीपक सी जली,             वो नीर भरी दुःख की बदली।,     अठखेलियाँ करते गिल्लू को निहारती,  सोना के सौंदर्य पर रीझती और उसकी अकाल मृत्यु पर अश्रु बहाती,       दुर्मुख ख़रगोश की बातों में खोई ।  मोर नीलकंठ और उसकी प्रेयसी राधा से ईर्ष्या रखने वाली मोरनी कुब्जा के माध्यम से प्रेम की प्राप्ति हेतु छल-बल का प्रयोग और प्रेम पर प्राणों को समर्पित करते पक्षियों की दुनिया के रहस्यों को उद्घाटित करती महादेवी।        घर में आदर-सत्कार सहित लाई गौरा गाय से स्नेह और गौरा के दुग्ध प्राप्ति हेतु  कुत्ते-बिल्ली जैसे जानवरों का अनुशासन  तथा स्वार्थ के वशीभूत होकर गाय की हत्या के षड्यंत्रकारी का भेद खोलकर गौरा गाय के अंतिम समय में उसके साथ रह कर उच्च मानवीय मूल्यों का निर्वहन करती रहस्यवाद और छायावाद की मुख्य कवयित्री महादेवी वर्मा की संस्मरणात्मक कहानियों से ज्ञात होता है कि वो करुणा और मानवीय भावों के साथ ही चित्रात्म

#उड़ान

अधरों के पँख फड़फड़ाती कविता निकल पड़ी नीड़ से  अनंत आकाश छूने। तितली मिली, भँवरा मिला,  चिड़िया, तोता, मोर मिला,  मुस्काती कोयल, इतराती मैना,  शरमाती बुलबुल ने  आसमां की राह दिखाई।  उन्मुक्त उड़ती कविता ना भाई चतुर-चील को,  रोका-टोका और राह दिखा दी गर्म रेत और सूखे खेत की।  नोचते दिखे मृत देह कई गिद्ध वहाँ   नवांकुर की अनदेखी कर कर्म में लगे गिद्ध झगड़ने लगे आपस में ही  धूप में जलती, थकी-हारी,  कविता को सुस्ताने के लिए  नहीं मिला कोई ठौर।  मैना की कुटिल हँसी और  कांव-कांव करते कौवों को देख  उपेक्षित सी ...  घबराई कविता लौटने लगी  नीड़ की ओर। लौटती कविता को देख  कोयल ने हिम्मत बंधाई और  हाथ पकड़ उड़ चली  संग कविता के।  दिन ढल गया  उल्लू भी शाख पर बैठा बोल पड़ा..  'अरी कविता!  राह तो गिद्ध और चील ही दिखाएँगे'  आसमान तक कैसे भरते हैं उड़ान  वो ही तुम्हें बताएँगे।' कविता संग ऊँची उड़ान भर  कोयल भी मुस्कुराकर बोली  ' हौसलों को मिलता है आकाश रे उल्लू!  कह! मति तेरी किस

शिक्षक दिवस # teachers day

वंदे गुरु,                     ज्ञान की हाथ छैनी हथौड़ी लिए                 तराशा वो करते हैं पत्थर नए         हाथ घायल किए दिल भी छलनी हुआ                  पर जलाते रहे ज्ञान के वो दिये ।          अनगढ़ वो पत्थर लगा बोलने                  प्राण फूंके गुरु ज्ञान अनमोल ने        प्रपात बहने लगा अब तो पाषाण से                  वो पखारे चरण गुरु-सम्मान में।।             गुरु चरणों की रज से हृदय में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार ज्ञान के उजियारे में परिवर्तित हो जाता है तथा जीवन उज्ज्वल बना देता है।   सीकर की राधाकृष्ण मारु स्कूल में पढ़ते हुए अध्यापक- अध्यापिकाओं से इतना स्नेह हो गया था कि आज भी उनकी याद आती है। उनसे प्राप्त ज्ञान की घूंट अमृत बनकर कंठों को ऊर्जा देती है। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर अपना इच्छित पा रहे हैं उनकी, शिक्षा ही पाथेय है जिसके सहारे जीवन में आने वाली समस्याओं से भी हार नहीं मानी।  श्रीमती तारावती भादू, संतोष दाधीच, सरस्वती जांगिड़,उर्मिला पाठक, इंदिरा सहारण, इंदिरा राणा, सुधा जैन, सविता थापा, नीता सक्सैना आदि वे शिक्षिकाएं हैं जिन्होंने न हम छात्राओं को न के