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संदेश

सुप्रभात #सुप्रभात

सुप्रभात सुप्रभात सुप्रभात देता है उपदेश ज़माना        ख़ुद की लेकिन ख़बर कहाँ  दूजों में कमियाँ खोजें पर,         खुद की आती नजर कहाँ।  नुक्ताचीनी के कारण है,          मीठा सबका जीवन रस,  रोग छिपे मीठे के अंदर,          दिखते उनको मगर कहाँ।।  सुनीता बिश्नोलिया ©®

बुआ कहती थी - 4. जंगली सूअर से सामना #राव राजा कल्याण सिंह का सुशासन

ये भी पढ़ें  बुआ कहती थी -1 बुआ कहती थी -2 बुआ कहती थी -3 बुआ कहती थी - - -4 #राव राजा  कल्याण सिंह....                  बुआ के किस्सों की टोकरी से फ़ूलों से बिखरते अजब-गजब किस्से..... आज एक किस्सा स्वाधीनता से पूर्व का          आठ कमरों वाली हवेली में मैं और छोटी बहन अनु (अमृता) एक ही कमरे में सोती थी और हमारे पास सोती थी हमारी प्यारी बुआ।   आज बुआ किसके साथ सोयेगी इस बात पर हमेशा हम दोनों लड़ती थी वो कहती - 'आज बुआ मेरे पास सोएगी, मैं कहती कल तेरे पास सोयी थी आज मेरे पास सोएगी। 'लेकिन ना जाने बुआ कैसी जादूगरनी थी चुटकियों में झगड़ा खत्म कर देती थी। '  मैं खुश होती कि बुआ मेरे पास सोई है वो सोचती मेरे पास। कई बार बुआ माँ या ताईजी से बात करने लगती तो हम नींद का बहाना कर जबरदस्ती उन्हें कमरे में ले आते थे। फिर शुरू हो जाती हमारी हा-हा, ही-ही... पर हम ऐसे हँसते कि हँसी की आवाज कमरे के बाहर नहीं जाती। अगर कभी गलती से हँसी की आवाज़ बाहर चली भी जाती तो बड़े भईया कमरे में आकर किताब पढ़ने की हिदायत दे जाते और अगर वो नहीं आते तो बड़े प्यार से बुआ डाँटा करती -   'छोरि

सुप्रभात #सुप्रभात #goodmorning

सुप्रभात  #नवभोर  में  आ हँस लें   सुप्रभात पंछियों के गान में सुनता  उषा के आगमन का शोर है,  सो रहे हर प्राणी को कर्म का संदेश देती भोर है। भूल जाओ तुम हृदय की व्याधिया,  रोक तू विश्वास से चलती हुई ये आँधियाँ।।  सुनीता बिश्नोलिया © ® सुहानी भोर सूर्योदय भानू है ज्यों कनक-घट,         राही हम गए ठिठक, स्वर्ण सी ये रश्मियाँ,       आच्छादित धरा घने विटप। क्षितिज में प्रतीत है उदित,         उत्तरोत्तर ताप अपरिमित, अभिभूत है नयन सभी,        दिनकर को देख अवतरित। अद्घोषक उषा काल का,              अंशुमाली आ रहा है, विचरण करे गगन में ये,                 सृष्टि को जगा रहा। पथिक हैं पथ पर खड़े,                 सूर्य -रोशनी पाकर बढ़े, माना घना ये ताप है,           राह सूरज दिखाता आप है। नयनाभिराम दृश्य को,दृग ,              दृग भर रहे नयन में हैं, दर्शनीय सूर्य-रश्मियाँ,              आह्लाद सबके मन में  है।

बुआ कहती थी - 2

बुआ कहती थी - 2 photo आभार  यह भी पढ़ें  बुआ कहती थी - 1 मैं और मेरी बुआ... नहीं.. नहीं हम और हमारी बुआ ।अगर सिर्फ मेरी बुआ कहूँगी तो फिर सारे बड़े और छोटे भाई-बहनें पहले की तरह गुस्सा करेंगे कि हम सबकी बुआ है तेरी अकेली की नहीं। वो भी क्या दिन थे जब लगभग पच्चीस - तीस सदस्यीय हमारे परिवार के सारे बच्चे बुआ के पास सोने और उनसे पुरानी बातें सुनने को देर रात तक उन्हें घेर कर बैठे रहते थे।उस समय हमें कजिन शब्द का मतलब नहीं पता था,तभी तो हम सारे बहन-भाईयों के बीच चाचा-ताऊ के बच्चों की तरह औपचारिकताएं नहीं हुआ करती बल्कि हक हुआ करता था। हमें सिर्फ इतना पता था कि हमारे दस भाई हैं हम बहनें इनकी लाडली। शायद हमारी बुआ का हमारे साथ रहना भी इसका मुख्य कारण था। हमारी 'मोकी' बुआ हमारे पिताजी और ताऊजी की ना सिर्फ बड़ी बहन ही थी वरन वो बाजीगर की वो चिड़िया थी जिसमें उस जादूगर के प्राण छिपे थे अर्थात बुआ को खांसी भी आ जाए तो पिताजी स्कूल ना जाएँ और ताऊजी अपने काम पर।    हाँ पिताजी और ताऊजी को हमने बुआ के सामने बच्चा बनकर उनकी डांट खाते और बहन की चिंता में रोते देखा है। बुआ सब बहन-भा

बुआ कहती थी - 1

बुआ की बातों के गुलदस्ते के चुनिंदा फूल.. बुआ कहती थी - 1 बुआ कहती थी...1 दादी और बुआ आज अन्य दिनों से जल्दी उठ गई थीं क्योंकि आज गूगा जी का त्योहार था। दोनों ने मिलकर जल्दी-जल्दी गूगा जी को धोकने के लिए गुलगुले-पकोड़े, खीर आदि बना लिए थे क्योंकि धोक लगाने के बाद दादी को खेत में जाना था। दादी और बुआ ने मिलकर पूजा की और बाद में बच्चों को यानि छोटी बुआ, पिताजी और ताऊजी आदि को आवाज लगाई। पिताजी को छोड़कर सारे बच्चे वहाँ आ गए और गूगा जी को धोक खाकर खाना खाने बैठ गए। बुआ पिताजी को आवाज लगाती रही पर पिताजी कहीं नहीं मिले। अचानक बुआ जी और दादी को लगा कि गुलगुले पकौड़े इतने कम कैसे हो गए। पिताजी का घर पर न मिलना और गुलगुले पकौड़े कम देखकर बुआ जी ने माथा पीट लिया और भागकर कमरे में गई और अपनी खाट की गुदड़ी हटाकर देखी और एक पर्ची हाथ में लेकर बाहर आई। बाहर आकर दादी के हाथ में काग़ज़ देती हुई बोली,  'माँ आज थारो लाडलो लोहाघर जी (लोहार्गल) गयो, बापूजी जी नै थे बता ज्यो।'      'हे राम जी! एक तो हो अब यो दूसरो भी... सिर पीटती हुई दादी बोली,एे! बाई बेरो पाड़ कुण कै

सुप्रभात

सुप्रभात आ हँस लें सुप्रभात सुप्रभात महक नहीं सकते अगर,बनकर के तुम फूल।  मत बिखराओ राह में, दूजों हेतु शूल।१।           मन से अपने त्याग दें, विष से कटुक विचार।  मीठे बोलो बोल तुम बढ़े जगत में प्यार।२।  सुनीता बिश्नोलिया ©® सुप्रभात

मन है रूठने का ...... #करवा चौथ की हार्दिक बधाई

करवा चौथ की हार्दिक बधाई  आज मैं रूठूँगी तुमसे सुनो न रूठो आज मैं रूठूँगी तुमसे         तुम साजन मुझे मनाना,  लिख लो कोरे कागज पर         जो कहूँ पिया तुम लाना।  आज न डालूँगी नैनों         देख पिया मैं कजरा,  गर ना लाए पिया महकता         फूलों वाला  गजरा।  कह देती हूँ चूड़ा लाना         लाख का हीरों वाला,  और पिया मुझको पहनाना           खुद मोती की  माला।  भूल गए जो मेरी बातें            सोच समझ घर आना,  आज मैं  रूठूँगी तुमसे            तुम साजन मुझे मनाना।।  राजस्थानी गीत भी पढ़कर देखें प्रीत की पाती भी पढ़िए पायलिया कम लगी बोलने  ले आना तुम दूजी,         नई नवेली दुल्हन की ज्यों  सजने की है सूझी।          गोटे वाली ओढ़ चुनरिया  कुछ मैं भी इठलालूँ,           रूठ के तुमसे झूठमूठ  अपनी बातें मनवालूँ।             सोलह मैं श्रृंगार करूँ देखूँ कोई बहाना,             आज मैं  रूठूँगी तुमसे  तुम साजन मुझे मनाना।।  सुनीता बिश्नोलिया ©®