माँ मैं तेरी सोनचिरैया क्यों रात के अँधेरे में जला दी जाती है बेटियाँ मुश्किल घड़ी प्रतिलिपि माँ मैं तेरी सोनचिरैया बनके हवा अब आऊंँगी, माँ मैं तेरी सोनचिरैया बनके हवा अब आऊँगी, रो लेना माँ जी भर कर जब, तेरे गले लग जाऊँगी तन पे लगे मेरे घावों को माँ,बस तुझको दिखलाऊँगी, माँ मैं तेरी सोनचिरैया, बनके हवा अब आऊँगी। हंसों के माँ भेष में कागा,होंगे था अहसास नहीं, मस्त मगन में उड़ती थी,था खतरे का आभास नहीं, माँ तेरी हर सीख याद थी, मैं कुछ भी ना भूली थी देख दुष्ट गीदड़ इतने माँ, कुछ पल सांसें फूली थी। नहीं डरी मैं खूब लड़ी माँ, ना हथियार गिराए थे देख मेरा माँ साहस इतना,वो मुझसे घबराए थे। माँ तेरी ये चंचल चिड़िया,फिर उड़ने को तैयार हुई गिद्धों ने ऐसा जकड़ा माँ, बिटिया तेरी लाचार हुई। आ हँस लें लीलटांस पाँख-पाँख तोड़ा मेरा, मैं उड़ने से मजबूर हुई, धरती पर मैं गिरी तभी, थककर जब मैं चूर हुई,। माफ़ नहीं करना माँ उनको, इतना मुझको तड़पाया था पशु से भी थे निम्न वो माँ, जिंदा ही मुझे जलाया था।
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia