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दीपावली

हमारी प्यारी छात्रा

वैष्णवी द्वारा लिखित.... 

🌹🌹🌹🌹 वैष्णवी 

आओ दीप जलाए ।

कोरोन को मार भगाए ।

इस भीषण समय से लड़ दिखाए ।

आओ दीप जलाए।


छोड़ पुराने समय को ,

हम आगे बढ़ जाए ।

कुछ बदलावों के साथ ,

अपना जीवन फिर बढ़ाये।

आओ दीप जलाए।


अपनी सेहत का ध्यान रख,

हम बाहर काम पर जाए ।

हाथ धोना, मास्क व दूरी को,

अपने जीवन का साथी बनाए।

आओ दीप जलाए।

वैष्णवी __***


दीपावली-दोहे
मंगल हो दीपावली,सब कारज हों सिद्ध।
हर घर में रोनक रहे,हर घर हो समृद्ध।१।

धरा-गगन के बीच में,मची अजब इक होड़।
देख धरा पे रौशनी,नभ ने दी जिद छोड़।२।

तम-उजियाले मध्य भी,छिड़ी देखिए जंग।
विजय उजाले को मिली,अहम तिमिर का भंग।३।

दिवस-दिवाली आ गया,मिटा तिमिर का राज।
हर कोने में बज रहे,मधुरिम-मंगल साज।४।

आज गगन का चंद्र भी,छुपा गगन में जान ।
धरती अपने रूप पर, देखो करे गुमान ।५।

कण-कण में विश्वास है,पग-पग हुआ उजास।
लो धरती पर आज तो,हुआ स्वर्ग आभास।६।

माटी का इक दीप ही,लड़ता तम से रोज।
रोज मने दीपावली,इस घर खिले सरोज।७।

जगमग जलते दीप हो,खुशियाँ मिले अपार।
अंधकार का नाश हो,उजला हो संसार।८।

हिलमिल कर सब जन रहें,यही पुरानी रीत।
भूख-प्यास सबकी मिटे,सबको मानो मीत।९।

जग को रोशन कीजिए,अच्छे कीजे कर्म।
शोर-धुँआ मत कीजिए,समझो इसका मर्म।१०।

#सुनीता बिश्नोलिया©

# दीपावली......
(दीपावली व दीपावली के दूसरे दिन का दृश्य..पटाखों से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए...)
खुशियाँ भरी अपार है,
उत्सव का ये खुमार है।
                           हिल-मिल गले से मिल रहे,
                             ये लोग भावना भरे।
हजार दीप जल रहे,
मन भी है खिले-खिले।
                              अमावस की काली रात भी,
                               चमक रही बिन चांदनी।
काली ना आज रात है,
इसे मिला जहां का साथ है।
                             फुलझड़ी के चलते दौर है,
                             पटाखों का आता शोर है।
देखो..दुबक रहा श्वान है,
क्या..?सचमुच मनुज महान है।
                            इस निरीह पशु का क्या दोष है,
                            हम खोते क्यों अपना होश है।
लक्ष्मी को होती वृष्टि है,
मैली ये होती सृष्टि है।
                              लो..सोने को सारे चल दिए,
                               धरा को घाव हैं दिए।
महल धुआँ का छोड़कर,
जा.. सोया है स्वप्न ओढ़कर,
                                    वाह ! सुबहां सुहानी आई है,
                                    संग अपने बहुत कुछ लाई है।
उफ़.! धूम्र का गुब्बार है,
मचा क्यों हाहाकार है।
                                    कहो.. आज स्वयं मानव भला,
                                    क्यों.? इतना हुआ लाचार है।
खस-खसा रहा कोई,
हर आँख है रोई-रोई।
                                       ना दृश्य स्पष्ट है कोई,
                                    गुम आकृति जाके सोई,
भीड़ बढ़ रही यहाँ,
बीमार जन यहाँ -वहाँ,
                                  इमारतों पे काले दाग हैं,
                                  हुआ नुकसान बेहिसाब है।
माना मनुज 'समर्थ' है,
पर. 'दिवाली ' का ना ये अर्थ है।
                                 ऐसे ना लक्ष्मी आएगी,
                                    वो और दूर जाएगी।
वो..और दूर जाएगी....
#सुनीता बिश्नोलिया©



आशा दीप 

तिमिर हरें               
हर घर सजाएँ
स्नेहिल दीप

ज्योति का पुंज
प्रकाश का निकुंज
  ज्योति आलय

सत्य की जीत
अंधकार में मीत
रोशनी-गीत

   मैल मिटाए
उम्मीदों का मिलन
     नई सुबह


   खुशियाँ भरें
   सबके जीवन में
     कष्ट हरें

     प्रकाश फैले
    हर कोने कोने में
      तम  हैं खीने 

    दीप दिवाली
  मन का उजियारा
  मन -उजला


पढ़ें बाल दिवस

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