बढ़ती महंगाई से तंग आकर एक फैसला कर लिया..। एक ही बार बनाऊँगी खाना मैंने ये निश्चय कर लिया। पहले ही दिन पेट में कूदते चूहों ने घायल कर दिया एक टाइम खाने का फैसला मैंने तत्काल बदल दिया। सब्जियां मंहगी और गैस दुश्मन बन गया बढ़ती देख अपनी वैल्यू मुआ सिलेंडर भी तन गया। सुबह खाएंगे दही-चूड़ा ( दही-चिवड़ा) तो शाम को दाल बनाऊँगी और मैं कुशल गृहणी की तरह घर चलाऊंगी। इधर-उधर देखा तो दालों के खाली डिब्बे बड़बड़ा रहे थे देखकर अकड़ ढीली मेरी , सिलेंडर महाशय मुस्कुरा रहे थे। गैस पर पतीला चढ़ा देखकर झल्लाई, खुद के ही लिए चाय बनती देख खिसियाई। चाय का कोई ऑप्शन नहीं ये तो कमज़ोरी है, बिन गैस बनेगी नहीं, गैस की सीना-जोरी है। ध्यान आया.. क्यों ना पैट्रोल बचाया जाए हर समान में 'वेट' है तो क्यों न पैदल चलाकर घर वालों का वेट ही कम किया जाए। आसमान पर चढ़े पैट्रोल से नज़र मिलाने क
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia