अरे बादल जरा घेरो, मेघ- मन आसमां को तुम कि ऎसे जोर से बरसों, धरा को दो नया जीवन। काया जल रही है तुम, शीतल बूंदे बरसाओ, है प्यासी ये धरा बादल, प्रेम जल शब्द छलकाओ। कवि गाओ राग ऐसा, जागे सोते हुए सारे, तेरे शब्दों की शीतलता, ह्रदय में ऐसे बस जाए। मन के घन गरज कर तुम, विषमता जग की सम कर दो, मुक्त कर दो रूढ़ियों से, सुमन- सौरभ बिखरा दो पिघल जाएँ हृदय पत्थर, गीत गाओ अति मधुरिम, भरम की गाँठ सब खोलो, मिटाओ भेद सारे तुम। जमे शैवाल बह जाएँ, बहो बन तेज धारा तुम बाँध शब्दों के ना टूटे, मीठी सी बहे सरगम।। सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia