दोहे - वसंत
माँ वसुधा मुस्का रही, देखे रंग हजार।
ऋतु वसंती आ गई, लेकर संग बाहर।1।
सौरभ से महके धरा,सुमन खिले हैं अंक।
मात धरा की नजर में, सम हैं राजा रंक।2।
चूनर ओढ़े प्रीत की वसुधा रही लजाय।
देख वसंती साजना,रोम-रोम खिल जाए।3।
झांझर पैरों में पहन, उड़ा रही है धूल।
मन ही मन मुस्का रही,बनी कली से फूल।4।
खग भी कलरव कर रहे, बैठ विटप की डाल।
वन-उपवन फुल्लित हुए, पुष्प सजे तरु भाल।5।
मंद - पवन यों चल रही, ज्यों सरगम के साज़।
करते स्वागत सुमन हैं, आओ जी ऋतुराज।6।
भूली धरती दर्द को, पूरी होती आस।
खुशियों वाले रंग ले,आया है मधुमास।7।
सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर
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