सत्ता की गलियों में मैंने
अजब तमाशा देखा है।
साधू के चोले को पहने
धूर्त बगुला देखा है।
इनकी बातें ये ही जाने
बिन पेंदे के लोटे हैं
मासूमों पर जाल फेंकते
खुद आसामी मोटे हैं।
वोटों की खातिर इन सबको
रंग बदलते देखा है।
साधू के चोले को पहने
धूर्त बगुला देखा है।
करें चाशनी से भी मीठी
बातों के ये जादूगर
कहा आज का कल भूलें
रहना थोडा सब बचकर।
वादों के जालों में जन को
इन्हें फँसाते देखा है।
साधू के चोले को पहने
धूर्त बगुला देखा है।
खेल-खेलते ऐसा ये तो
लोगों को बहकाते हैं।
छत भी नहीं नसीब ये उनको
महलों के स्वप्न दिखाते हैं।
जिनको रोटी की ठोर नहीं
संग उनके खाते देखा है।
साधू के चोले को पहने
धूर्त बगुला देखा है।
#सुनीता बिश्नोलिया©
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