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कहानी - अच्छी है बरसात




       बरसात अच्छी है 

     टिन की टूटी छत से आती टप-टप की आवाज़ के साथ बिस्तर के पास टपकते पानी के छींटों से बचने के लिए बार-बार बिस्तर से उठने के कारण सात साल के राधे की नींद पूरी तरह से उड़ गई। हालांकि घर में ज्यादा सामान नहीं है फिर भी माँ और बाबा भीगने से बचाने के लिए घर का सामान इधर से उधर कर रहे हैं। 
     इतनी रात को माँ-बाबा को काम में लगा देखकर राधे झुंझलाकर बैठते हुए बोला-"बाबा! बहुत बुरी है बरसात..!हमारा पूरा घर पानी से भर देती है और आपको सोने भी नहीं देती। "
       बेटे की बात सुनकर राधे के हरिया ने हँसते हुए कहा-"बेटा ऎसा क्या है हमारे घर में जो खराब हो जाएगा.!बिना पानी जीवन कहाँ। अच्छा है जो समय से बरसात हो गई।" 
  हरिया की हाँ में हाँ मिलाते हुए पत्नी शारदा ने भी हँसते हुए बेटे के सिर पर हाथ फेरकर कहा-"बहुत इंतजार के बाद होती है ये बरसात.! इसके आने से ही ये धरती हँसती है और धरती के हँसने से हम सब हँसते हैं।अगर  बारिश नहीं होगी तो धरती सूख जाएगी...!"
  माँ और पिताजी की गोल-गोल बातें राधे को समझ नहीं आई। वो अपने छोटे से घर के एक कोने में लाल काले तार के सहारे लटकते पीली रोशनी वाले बल्ब को एकटक निहारते हुए अचानक उठा और अपने स्कूल के बस्ते को उलट-पलट कर देखने लगा कि कहीं बस्ता या किताबें तो गीली नहीं हो गई। किताबें पलटते हुए अचानक 'बरसात' की कविता देखकर धीरे-धीरे उसे पढ़ने लगता है, 'दूध-मलाई बरखा आई, 
नन्हीं-नन्हीं बरखा बूंदें, 
संग सुहानी भोर है लाई...।' 
माँ और पिताजी उसकी मीठी आवाज में कविता सुनकर  खुशी से कभी बेटे को तो कभी एक दूसरे को देखने लगे।अभी रात के दो-तीन ही बजे थे इसलिए नींद तो आनी ही थी  कुछ देर कविता पढ़ने के बाद राधे को नींद आ गई। सुहानी भोर के सपनों में खोए राधे और खेतों से खजाना पाने की आशा में बैठे हरिया को मुस्कुराते देखकर शारदा भी मुस्कराने लगी । 
     सुहानी भोर हुई मगर अभी भी झमाझम बारिश हो रही है, हरिया रात भर नहीं सोया  राधे ने उठकर पिताजी को अपना बस्ता तैयार करते देखकर उत्सुकतावश पूछा - ''क्या आप भी आज स्कूल पढ़ने जाओगे बापू...? '
    राधे की बात सुनकर हरिया गहरे सोच में पड़ गया। पिता को ख्यालों खोया देख राधे ने  पूछा - 'बाबा आप स्कूल नहीं जाते थे..?"
  राधे का प्रश्न सुनकर हरिया अपनी गलती स्वीकार करते हुए बोला - "हाँ.. नहीं जाता था। बड़ी मुश्किल से बाबा ने तो स्कूल भेजा था पर स्कूल में मेरा मन नहीं लगा और एक बार स्कूल से भागकर आया तो फिर कभी वापस नहीं गया।"
  बातें करते हुए पता ही नहीं चला कि कब स्कूल का समय हो गया पर बरसात अभी तक नहीं रुकी। ये देख राधे ने सोचा-"अब मैं स्कूल कैसे जाऊँगा ।" यही सोचते हुए उसने माँ से कहा- 'माँ बरसात को रोको ना मेरा स्कूल..।'
 राधे को बीच में टोकते हुए माँ ने कहा - तुम  त तैयार हो जाओ तब तक बरसात भी रुक जाएगी।" 
   रात भर बारिश होने के कारण राधे के घर में जगह-जगह पानी भर गया। इसलिए उसे बहुत गुस्सा आ रहा था और वो जल्दी-जल्दी स्कूल के लिए तैयार हो गया। अब तक हरिया भी खेत जाने के लिए तैयार हो गया उसने राधे से कहा - "राधे..! चलो स्कूल फिर मुझे भी खेत में जाना है ।" ये सुनकर राधे खुशी-खुशी पिताजी के हाथ में पकड़ी बड़ी सी काली छतरी के नीचे आकर स्कूल के लिए निकल पड़ा। 
  घर से निकलते ही बारिश और कीचड़ देख कर राधे घबरा गया। वो पिताजी के साथ पानी से बचता-बचाता स्कूल की ओर बढ़ रहा था। पढ़ाई के प्रति लगाव होने के कारण हर हाल में स्कूल जाना चाहता था। 
  गाँव ज्यादा बड़ा तो नहीं था पर गाँव में एक सरकारी स्कूल के अलावा दो निजी स्कूल भी थे । राधे के पिताजी उसे सरकारी स्कूल में नहीं भेजना चाहते थे पर स्कूल के प्रधानाध्यापक महेश जी बार-बार गाँव के हर घर में जाकर समझाते। सबसे बड़ी बात अच्छी शिक्षा और सुविधाएँ देने के कारण अन्य बच्चों की भाँति राधे भी सरकारी स्कूल में जाता था।
       स्कूल जाते हुए राधे ने देखा कुछ बच्चे अपने माता पिता के साथ रंगीन और सुंदर- सुंदर छतरियों के नीचे तो कुछ स्कूल बस में जा रहे हैं। राधे का मन भी हुआ कि पिताजी से कहे कि बरसात के मौसम में मुझे बस में स्कूल भेजा करें। पर राधे इतना संतोषी माता पिता की मजबूरी समझकर हर परिस्थिति में खुश  रहने वाला जीव है।
  लोगों को बारिश में भीगते हुए इधर से उधर जाते, बच्चों को बारिश में उछलते-कूदते देखकर उसका भी मन हुआ कि वो भी छतरी के नीचे से निकलकर पिताजी के आगे आगे भागे.. पर कपड़े खराब होने के डर और स्कूल जाने की खुशी में वो ये सब सोचकर ही रह  गया । 
  हरिया को खुद खेत में जाने की जल्दी थी इसलिए वो एक कोने में गया और राधे को अच्छी तरह छाता पकड़ाकर हर बार की तरह कंधों पर बिठा लिया। एक तो पिताजी के कंधों पर बैठने की खुशी दूसरी इस अदला बदली में मुँह पर बारिश की बूंदे गिरने से उसकी खुशी दुगनी हो गई। स्कूल पहुँचकल पिताजी उसे कक्षा तक छोड़कर आए।
प्रधानाध्यापक महेश जी, उसकी अध्यापिका नफीसा जी और महेंद्र सर के साथ ही वहाँ कार्य करने वाले कर्मचारी रामकरण भईया पहले ही स्कूल आ चुके थे। वो हर बच्चे को हाथ पकड़कर कक्षा में ले जा रहे थे। महेंद्र सर ने राधे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- '  राधे देखो तुम्हारे बाबा तुम्हारा कितना ध्यान रखते हैं खुद कीचड़ में चलखर तुम्हें कंधों पर बैठकर लाए हैं जिससे तुम्हें तकलीफ ना हो। अब चलो कक्षा में। "  कहते हुए मास्टर जी बोले हरिराम जी बहुत अच्छी बरसात हुई है इस बार  फसल भी बहुत अच्छी होगी।'
हरिया भी मुस्कुराते हुए बोला -"हाँ मास्साब एक दो बार ऎसी बरसात और हो जाए तो  खेतों से सोना निकलेगा। (हाथ जोड़ते हुए) अच्छा मास्साब मैं खेतों में ही जा रहा हूँ राधे को समय पर लेने आ जाऊँगा।''
स्कूल की घंटी लगने के बाद प्रार्थना हुई फिर नफीसा मैम कक्षा में बच्चों को पढ़ाने आईं। उन्होंने बच्चों को तेज बारिश के कारण गोकुल गाँव और कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण करने की कहानी सुनाई। बरसात की छम-छम बूँदों की कविता सुनाई। स्कूल में न जाने कैसे समय इतनी जल्दी बीत गया बच्चों को पता ही नहीं लगा और छुट्टी की घंटी भी बज गई। अब तक तक बारिश भी रुक चुकी थी। सभी बच्चों को उनके माता पिता घर ले गए पर राधे के माँ -पिताजी हमेशा की तरह आज भी उसे लेने समय से नहीं आए।
प्रधानाध्यापक जी और रामकरण देर से घर जाते हैं इसलिए जब तक राधे को माँ-पिताजी लेने नहीं आते तब तक वो अध्यापिका जी द्वारा घर के लिए दिया गया काम पूरा कर लिया करता है। आज भी वो गृह कार्य ही कर रहा था, तभी दुबारा बारिश शुरू हो गई। छमाछम बरसती बूँदों को देखकर राधे को आज नफीसा मैम द्वारा कक्षा में सुनाई कविता याद आ गई, 
छम-छम, छम-छम बूँदे बरसी, 
अब न रहेगी धरती  प्यासी.. राधे कक्षा की खिड़की से हाथ निकालकर धीरे धीरे यह कविता गुनगुनाने लगा और कभी हाथ अंदर कभी बाहर निकालकर हाथ में पानी की बूँदे भरने लगा।
तभी उसने देखा कि कुत्ते के दो छोटे छोटे पिल्ले इस ओर आने के चक्कर में बरसात के पानी में फँसकर कूं कूं कर रहे थे। पानी से निकलने की उनकी हर कोशिश नाकाम हो रही थी उनका कूं कूं करना बढ़ रहा था। अब तक राधे समझ चुका था कि ये नन्हें पिल्ले मुसीबत में है अगर इन्हें जल्द ही यहाँ से नहीं निकाला गया तो ये डूबकर मर जाएँगे।
अब तो राधे के सामने समस्या उत्पन्न हो गई कि इनको यहाँ से कौन निकाले क्योंकि उसे तो बारिश में भीगना पसंद नहीं इसलिए वो तो खुद तो बारिश में बाहर जाता नहीं है.., 'तो क्या हेड मास्टर जी को बुलाऊँ, अरे नहीं रामकरण भईया हैं ना उन्हें बोलता हूँ।' राधे रामकरण भईया को ढूंढकर बुलाए इतनी देर बेचारे पिल्ले मर ना जाएँ.. ये सोचते - सोचते उसे मैम के द्वारा कक्षा में सुनाई गई कृष्ण द्वारा तेज बारिश से पूरे गोकुल गाँव  को बचाने की कहानी याद आई । 
  मैम ने बताया था कि चाहे पशु हो अथवा मनुष्य हर हाल में उसकी सहायता करनी चाहिए। बारिश की परवाह किए बिना  राधे हिम्मत जुटाकर जल्दी सी बाहर भगा और जल्दी-जल्दी दोनों पिल्लों को बाहर निकाला। उसे उन पिल्लों को निकालकर बहुत अच्छा लगा। बाहर निकलते ही दोनों ने जोर से अपने आप को झड़काया जिसके पूरे छींटे राधे पर लगे। एक तो बारिश की रिमझिम फुहारे दूसरे ये प्यारे-प्यारे पिल्ले, राधे भूल गया कि उसे बारिश पसंद नहीं। वो सब कुछ भूलकर उन पिल्लों के साथ खेलते हुए दौड़-भाग करने लगा तो कभी इकट्ठे हुए पानी में छपाक-छपाक..।   बारिश में भीगते उछलते उसे  पता ही नहीं चला कि माँ - पिताजी और हेड मास्टर जी उसे कब से देख रहे हैं... अब राधे को बारिश अच्छी लगने लगी। अच्छी बारिश से हरी हुई धरती की तरह  राधे का दिल भी हरा हो गया। 

सुनीता बिश्नोलिया




 

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