गनेरीवाला तालाब या फतेहपुर बावड़ी पारिवारिक कार्य से कल सीकर जिले के छोटे से शहर या यों कहें शेखावाटी की सांस्कृतिक राजधानी फतेहपुर शेखावाटी जाना हुआ। प्रोजेक्ट के सिलसिले में बहुत से मय से फतेहपुर जाने का विचार था लेकिन नहीं पता था कि इस तरह अचानक वहाँ जाना हैं पड़ेगा। इस आकस्मिक यात्रा में प्रोजेक्ट से संबंधित तो कोई कार्य नहीं किया लेकिन वापसी में नव हाँ की एक दो हवेलियों और तालाब को जरूर देखा।
ये पहली बार नहीं था जब मैं इन एतिहासिक स्थलों को देख रही थी। इससे पहले भी इन्हें कई बार देखा है। इस बार इनका स्वरुप पहले से ज्यादा बिगड़ चुका है जिसे देखकर बहुत दुख हुआ।
खासकर सीकर-फतेहपुर रोड़ पर स्थित गनेरीवाला तालाब या फतेहपुर बावड़ी। जिसे सामान्य बोल-चाल में यहाँ के लोग जोहड़ कहते हैं।
कैर, खींप, कीकर के वृक्षों से घिरा चार प्रवेश द्वारों वाली सुंदर और सरल वास्तुकला का उदाहरण गनेरीवाला तालाब। शायद कभी इस स्थान का उपयोग सांस्कृतिक गतिविधियों और सामाजिक कार्यों के रूप में किया जाता होगा। ऐतिहासिक स्थलों को देखने में अत्यधिक रुचि होने के कारण सीकर वापसी में रास्ते मे आए इस तालाब को देखने का अवसर मैं किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहती थी।जोहड़ अर्थात् तालाब के पास जाते ही इसकी दुर्दशा देखकर बहुत दुख हुआ।
तालाब की बाहरी दीवारों पर बने विज्ञापन देखकर मैं ठिठक गई। दूर से ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले इस तालाब का वास्तविक स्वरुप
विज्ञापन बनी दीवारों के कारण पूरी तरह बिगड़ गया है।
सामने के द्वार से भीतर जाने पर देखा कि
नीचे से लेकर ऊपर तक हर चौकड़ी पर जमा कूड़े के ढेर लोगों को तालाब तक आने से रोकते प्रतीत होते हैं।
तालाब की भीतरी दीवारों और छतरियों में अपने प्रेम की निशानी छोड़कर गए प्रेमी जोड़ों के नाम,कहीं भद्दी गालियाँ तो कहीं उलटे-सीधे नंबर तालाब के सौंदर्य दागदार बना रहे थे।
मेरी दृष्टि में ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण का जिम्मा प्रशासन के साथ ही स्थानीय नागरिकों का भी होता है।
लेकिन यह तालाब ना केवल प्रशासन वरन् यहाँ के निवासियों की उपेक्षा भी शिकार हो रहा है। देखरेख के अभाव में बदहाल होती धरोहर को बचाने के लिए वहाँ के लोगों को साथ आकर इसे बचाना होगा।
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