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समीक्षा-भाग - 1.राजस्थानी काव्य-संग्रह काची-कूंपळ - शकुंतला शर्मा

    शकुंतला शर्मा - समीक्षा- भाग -  'काची-कूंपळ' काव्य संग्रह  लोकार्पण - काची-कूंपळ   "म्हारा बाबूजी तो कैंवता अबे कांई पढाणो है। छोरी है पढ़ाई छुडाकै ब्याव करणो जरुरी है, पढ़ावण रो खर्चो करणो जरुरी कोनी। "  "पण म्हारी माँ कैंवती आ म्हारी लाडो फेल न हुवै तांई तो पढली। "    माँ का विश्वास और शिक्षा की लगन लिए बालिका शकुंतला पढ़ती गई और आगे बढ़ती गई।      ना वो तब फेल हुई ना ही जीवन में  आगे ही कभी फेल नहीं हुई और पास होने का सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है।       तभी तो M. A. M.Ed आर. ई एस, आर. पी. एस प्रधानाचार्य तथा सहायक निदेशक शिक्षा संकुल जयपुर के पद तक पहुंचकर अपनी प्रतिभा सिद्ध की ।     किशोरावस्था से ही कहानी-किस्सों, कविताओं आदि में रुचि होने के कारण साहित्य और साहित्यकारों के प्रति सम्मान के साथ ही हृदय में साहित्य सृजन की अग्नि सुगबुगाने लगी। ये सेवानिवृति के बाद यह सुगबुगाहट बढ़ गई और धीरे धीरे शकुंतला जी को साहित्य सृजन की ओर ले गई।  विषय पर गहरी पकड़ और सौंदर्यबोध की सृजिका शकुंतला जी अपने अद्भुत लेखन कौशल द्वा

लोकार्पण - काची-कूंपळ - शकुंतला शर्मा

        समीक्षा - काची-कूंपळ - सुनीता बिश्नोलिया नारी कभी ना हारी लेखिका साहित्य संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष आदरणीय वीना चौहान जी और अध्यक्ष नीलम सपना शर्मा, उपाध्यक्ष शकुंतला शर्मा, सचिव मंजू कपूर, कोषाध्यक्ष निर्मला गहलोत, कमलेश शर्मा जी के प्रयासों से दिनांक 23 अप्रैल 2023  नारी कभी ना हारी लेखिका साहित्य संस्थान, जयपुर की नवीन शाखा का वैशालीनगर, चित्रकूट में जाने माने साहित्यकार आदरणीय फ़ारूख आफरीदी ने विधिवत को उद्घाटन किया गया।  इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय शकुंतला शर्मा के प्रथम राजस्थानी काव्य संग्रह 'काची-कूंपळ' का लोकार्पण किया गया।         डॉ रत्ना शर्मा के कुशल संचालन मुख्य अतिथि प्रियंका गुप्ता (आई. ए. एस) अति विशिष्ठ अतिथि श्रीमती ऋचा चौधरी (सी. जे. एम) अति विशिष्ठ अतिथि श्री नीलेश चौधरी जी (सी. जे. एम)  के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय फ़ारूख आफरीदी जी अध्यक्षता में सार्थक कार्यक्रम संपन्न हुआ।

#worldearthday पृथ्वी_दिवस

#Worldearthday  4 के उपलक्ष में Defence Public Jaipur के छात्रों - Kritarth Sharma, Arjun Sharma, Riddhiman Gajra4j, Ritika Choudhary, Laveena Mathur, Krishnaditya Gaur द्वारा पर्यावरण संरक्षण की सीख देता नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया ग 33 या। नुक्कड़ नाटक   अरे हो जमूरे !    *बोल क्या बात है, क्यों लटका है मुंह।    क्यों माथे पर हाथ है?  पर्यावरण संरक्षण   *सरकार गर्मी पड़ने लगी है भारी    तवे सी तपती धरती सारी।     *हां जमूरे गर्मी से सब हैं बेहाल    तड़पते जन और पक्षियों का है भी बुरा हाल। *. सही कहा सरकार..    भीषण गर्मी में भी लोग कर रहे हैं नादानी           इसी की आज सुनाते हैं  हम कहानी.. 2 स्त्री * अच्छा... तो सुनाओ..    नहीं. नहीं ये पहले दिखाओ   तुम्हारे पिटारे में क्या भरा है   तुम्हारा सौदा झूठा है कि खरा है। * बात तो कहता हूँ खरी सरकार,     लोग कहते हैं देता हूं भाषण  और    करता हूँ बातें बेकार-2 * ऐसी क्या बात है, जरा हम भी तो जाने..    तुम्हारी बातें होती हैं सच्ची, फिर क्यों बेकार कहते हैं सयाने-2 *  क्या कहूं सरकार...      आज सुबह ही तो

राजस्थानी उपन्यास - गोमती भाभी

 उपन्यास (गोमती भाभी) लेखक - श्याम जांगिड़   श्याम जांगिड़ जी द्वारा लिखित उपन्यास 'गोमती भाभी' पढ़तां आ बात पक्की हुयगी कै रिस्तां में छळ-कपट कोई नई बात कोनी। मिनख रै जलम रै साथै ई आं रो जलम भी होय जावै। गोमती भाभी उपन्यास मांय सास-बहु रै माध्यम सूं एक तरफ दो महिलावां रै संघर्ष री मार्मिक कहाणी कई गई है। दूसरी तरफ 'सिंगल पेरेंट' रो ढोल पीट्यां बिना आपरा टाबरां नै पाळती भावुक अर शक्तिशाली माँ ने दिखाई है।      एक तरफ जठै  विधवा सास आपरै ई परिवार सूं ई ठगी जा रई है पण शांति, संतोष एवं रिस्तां नै बचावण  खातर आपरी संपत्ति रो हक भी त्यागण तांई त्यार है। आत्मविश्वास अर कड़ी मेहनत रै बळ माथै इण घर री जिम्मेदारी रै साथै टाबरां रो  पाळण-पोसण अर पढाई-लिखाई अर ब्याव भी करया। माँ रै त्याग नै भूल'र बेटो पढ लिख'र सहर में ई बसग्यो।    पण माँ रो काळजो आपरै बेटा री तरक्की देख'र दूर सूं ई आसीस लुटावण लागै। बेटा रै दूसरै ब्याव री बात सुण'र माँ बहु रै साथै खड़ी दीखै।  कच्ची उम्र में ब्याह कर आई गोमती अनपढ होणै रै कारण प्रोफेसर पति नै कदे

वर्तिका - काव्य संग्रह

वर्तिका (काव्य संग्रह)  युवा कवयित्री सुनीता बिश्नोलिया  के प्रथम काव्य-संग्रह से गुज़रते हुए वही अनुभूति होती है, जो किसी भी कवि के पहले-पहल काव्यांगन में प्रवेश करने पर होती है। अब जब बेसाख्ता सामने आए हुए कदाचारों, दुर्व्यवहारों और अव्यवस्थाओं से गुज़रती है,तो उसे भाषा के नए-नए मुहावरों का संबल लेना होता है।  साथ ही गई के समस्याओं का एकमुश्त दबाव रचनाकार को विकसित कर देता है। ऐसे ही जीवन की स्थिति में छंदों में तोड़फोड़ होना स्वभाविक है सुनीता को परंपराओं से मुंह पर है अतः संग्रह की अधिसंख्य कविताएं छांदोग्य है तथापि उसने चाहे भावुकता से सहित ठेका वस्तु का निर्वाह किया है इस संग्रह में कवियत्री में मौजूदा समाज के अनेक विसंगतियां हुआ है और उनका अपने तंई निदान शोधने की चेष्टा की है।       सुनीता एक अध्यापिका है, अतः स्वभावतः सामाजिक विद्रूपताओं को देखने  का उसका नज़रिया अध्यापकीय है। एक अध्यापक सदैव त्रुटियों पर अंगुली रखता है, ठीक उसी तरह कवयित्री ने हर छोटी- बड़ी विसंगतियों का संज्ञान लिया है।भाषा चाहे अभिध्यात्यक हो गयी हो पर उसे कोई भी कदाचार जह