#भूख कोई नाम का भूखा जग में, और कोई दाम का भूखा, आत्म-प्रशंसा की भूख किसी को, और कोई है पद का भूखा। इतना कुछ खा कर भी उनकी, जिह्वा का बोल है रुखा। पेट की ज्वाल भी तड़पाती, और सबको नाच नचाती। भूख ना देखे छप्पन भोग, भूख तो खुद ही बड़ा है रोग। अंतड़ियों से आह निकलती, हड्डी भी देह से बाहर निकलती। भूख के मारे वो बेचारे ले लिया जमाने से है बैर, सूखी रोटी पर टूट पड़े, समझ उसे व्यंजन का ढेर। भूख ना सही गलत पहचाने, बस पेट की ज्वाल को चले बुझाने। भूखा बनाती चोर-लुटेरा, ये कारज करता कोई हाय बेचारा। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia