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संदेश

रुकना मत

#रुकना मत कठिन राह है तेरी मगर ना पस्त हौंसले करना, घायल पंछी तू भर#उड़ान, ना मंजिल से पहले रुकना। मंजिल से पहले बाधाओं को, देख पथिक ना घबराना, #जुबान कटुक सुनकर-सहना, अपना धीरज ना खोना। लक्ष्य से पहले पथिक तेरी, गर साँस-टूटे मत घबराना, मंजिल पाने को ऐ पंछी ! #कुर्बान तू चाहे हो जाना। तेरी राह रोकने को ऐ खग ! #तूफान जो आए मत रुकना, हों काल से सम्मुख आन खड़े, तो उनसे भी टकरा जाना। हे पथिक ! लक्ष्य को पाकर के, दंभ से तनिक ना भर जाना, फल युक्त वृक्ष सा झुक कर के, #मुस्कान जरा बिखरा देना। #सुनीता बिश्नोलिया

नई शुरुआत

खुदा के सामने तेरी बता #औकात क्या बंदे यहीं रह जाएगा सब कुछ,छोड़ अपने बुरे धंधे। ना कह#बदजात ओरों को ,बुरा ना कर तू ऐ पगले, जमाने की नजर में खुद को,कर साबित अरे बंदे। तेरा ये धन तेरी दौलत ,ना कुछ भी साथ जाएगा, करेगा कर्म जैसा तू , खुदा से वो ही ईनाम पायेगा। तू #तहकीकात कर दिल में, खुदा को पास पायेगा, जरा तू झाँक ले दिल में,समझ हर सच को जाएगा। छोटी सी जिन्दगी बन सहारा,किस्मत के मारों का, #मुलाकात खुद करेगा वो,रूप ले उन बेसहारों का। जो अब तक न किया तू कर,नई#शुरुआत अब दिल से, तेरे दिल को मिलेगी तब ख़ुशी,बढ़ कर खजाने से। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

#मुहब्बत

मुहब्बत नाम है तन्हाई में तन्हा सुलगने का, सनम की याद में खुद को..गम में डुबोने का। मुहब्बत नाम है दिल पे बनी,उन लकीरों का, जिगर को भेदती गहरा,चमचमाती शमशीरों का। मुहब्बत नाम है दिल में लगे उस घाव गहरे का, जमाने ने लगा रखे..कड़े नजरों के पहरे का। चले ना जोर दिल का वो,मुहब्बत ही तो होती है, दिन-रात फिर मजबूर आँखे,मुहब्बत में ही रोती हैं। बड़ी उम्मीद से मैंने बनाया आशियां  मुहब्बत का, मेरी हसरत के टूटे महल..बचा खंडर मुहब्बत का। है नाजुक बड़ी ये चीज, कच्चे काँच की तरहा, जो टूट कर भी  दे ही जाता , जख्म भी गहरा। किसी के नाम पर खुद को फ़ना कर गुजरने का।, मुहब्बत नाम है तन्हाई में तन्हा सुलगने का। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

महानायक-अमिताभ बच्चन

व्यक्तित्व व कृतित्व (महानायक अमिताभ बच्चन) मधुशाला में बहके कोई..        प्यालों को छलका कर के, हरिवंश तनय क्या लिखूँ कहो ,             आज तुम्हारे बारे में। कला के अंकुर का उद्भव,          शायद बचपन में पनप उठा, रंगमंच पे आ के तभी तू,            अमित वृक्ष बन हुआ खड़ा। प्रारंभ की ठोकर को तूने,         प्रसाद स्वरूप था ग्रहण किया, लक्ष्य पाने को तूने ,                   दुनिया से संघर्ष किया। अहंकार को जीवन भर,               आने ना अपने पास दिया, मुख पे मुस्कान सदा रहती,             अभिमान ना तुझे जरा सा किया।         जीवन में जय का प्रवेश अमित,         अभिषेक 'एश्वैर्य ' का करता है, 'आराध्य' की भांति ईष्ट हो तुम,          मन प्रणाम दूर से करता है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

अँधेरी रात

ये कविता उस समय लिखी थी जब जयपुर में एक तीन साल की बालिका दरिंदगी का शिकार हुई .. फूल के आँचल से लिपटी,सो रही थी वो कली ना मचा था शोर पर,थी वहाँ बिजली गिरी। #उपवन में जंगल से था आया,एक ऐसा जानवर, नन्ही कली को देख,उसके मन में आया पाप भर। तोड़ उसको शाख से,अलग उसने कर दिया, अधखिले उस पुष्प को,रौंद कर के रख गया। फूल की जब नींद टूटी,थी कली ना पास में, मन डर गया उस पुष्प का,बस.. बुरे अहसास में। बदहवासी में वो दौड़ा,आँख में  थी अश्रु धार हाल उसका देख के ,,करने लगी सहसा चित्कार। वज्र टूटा हाय! माँ पे , भगवन...!ये क्या हो गया ? ये घिनौना कृत्य बोलो ,कौन ...? कर   गया । अंश की हालत को देखा,हो गई ममता निढाल. फट गया उसका ह्रदय,आँखों में उसके कई सवाल? सिर पे छत ना होने की ,क्या इतनी घिनौनी है सजा, गर हाथ में होता हमारे ,हम लेते महलों का मजा। नर-भेड़िया वो आज शायद!,पास ही में है खड़ा, सब संग वो भी भीड़ में ,हक़ के लिए मेरे लड़ा। होड़ सबमें  क्यों मची है ,देखने मेरी  दशा सहमी हुई और कांपती माँ, हो गई है परवशा। जलती  हुई उन आँखों से ,कई प्रश्न उसने दाग कर, सबको निरुत्तर कर  दिया,एक

#चुनावी वादे

#चुनावी वादे घोषणाओं और झूठे वादों का  इंद्रजाल लेकर चुनावी मंच पर आचुके हैं कई बड़े- बड़े कलाकार। कुछ कलाकारों के लिए तो ये कर्म क्षेत्र  है किन्तु कुछ तो अपने लोभ के कारण इस मंच को धनोपार्जन का सुगम मंच समझ यहाँ अपनी बुद्धि को झोंक देते हैं। यहीं पर शुरू होता है उनका चालों पर आधारित युद्ध अर्थात भोली भाली जनता की भावनाओं से खेलने का दौर। जब हम स्वयं को एक लोकतांत्रिक देश मानते हैं तो हमारे राजनेता जनता पर धर्म-जाति आदि के नाम पर क्यों अपनी और आकर्षित करने का प्रयास करते हैं..इस तरह वो उन्हें देश के नाम पर जोड़ते नहीं वरन देश की एकता पर ही कुठाराघात करते हैं । जो व्यक्ति स्वयं किसी वर्ग विशेष हेतु विशेष सुविधाओं की भीख मांगता हुआ इस मंच पर आता है वो क्या वास्तव में जनकल्याण की भावना रखता होगा..नहीं बिल्कुल नहीं.. वो मात्र किसी वर्ग-विशेष के भले की चाह से आता है इसमें जनसाधारण के हित का का रत्ती भर -भाव भी नजर नहीं आता। कुछ तथाकथित नेताओं के अटल किन्तु कुटिल इरादे चुनाव जीतने हेतु इस प्रकार का दांव खेलते हैं कि जनकल्याण करते व्यक्ति भी उसकी चाल में फँस कर वो मार्ग छोड़कर मात्र अपनी कुर

गुलामी

#गुलामी सुधा ने ससुराल में पहला कदम ही रखा था कि एक आवाज आई...बिमला माना कि तेरी बहू बहुत सुंदर है...पढ़ी-लिखी है,नौकरी भी करती है।पर इसमें संस्कारों की तो कमी है इसने घूंघट ही नहीं निकाल रखा।अरे जब पल्ला सिर पर लिया है तो क्या पल्ले को थोड़ा आगे खिसका लेती तो पल्ला घिस जाता..भाई पढ़ी -लिखी तो हमारी बहू भी है मजाल है,पल्लू सरक जाए। विमला ने जेठानी को कहा भाभी जी वो इसे मैंने ही कहा था घूंघट निकालने की जरूरत नहीं..। इतना सुनते ही विमला की जेठानी बोली...हे राम ! तू तो पहले ही हमारे खानदान की परम्पराओं को तोड़ती रहती है..औरतों की लाज-शरम बची रहे उन परम्पराओं का तो मान रख ।सुधा चुपचाप ये सब देख रही थी..उसका मन किया कि वो कुछ बोले । अमन ने भी उसे सब-कुछ चुपचाप देखने का इशारा किया। जेठानी का बड़बड़ाना जब बंद नहीं हुआ तो...विमला बोली। दीदी मैंने भी जाने अनजाने और आप लोगों के झूठे मान का मान रखते हुए सारी सही-गलत परम्पराओं को निभाने ने की कोशिश की ,लेकिन मैं अपनी बहू को इन परम्पराओं की दासी बनाकर इनकी # गुलामी करने को मजबूर नहीं करुँगी।ये जैसी है वैसी ही रहेगी...इसे जीवन में बहुत कुछ पाना है..इन प