#विकास 1. नेता ही गटका रहे,देखो मोटा माल। विकास को भटका रहे,बुरा देश का हाल।। 2.मनुज की मेहनत कभी,नहीं निरर्थक जाय। विकास का पहिया सदा,श्रम से घूमा जाय।। 3.आँखें मलता उठ खड़ा,देखो फिर ये जीव। बस्ता छोड़ निकल पड़ी, नव विकास की नींव।। 4.शिक्षा से इस देश में,नित-नित हुआ उजास। विकसित बचपन हो रहा,भर मन में विश्वास।। 5.दोष रहित गर सोच हो,विकसित होगा देश। द्वेष मनों से जब मिटे,स्नेहिल हो परिवेश।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia