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संदेश

#विकास

#विकास 1. नेता ही गटका रहे,देखो मोटा माल। विकास को भटका रहे,बुरा देश का हाल।। 2.मनुज की मेहनत कभी,नहीं निरर्थक जाय। विकास का पहिया सदा,श्रम से घूमा जाय।। 3.आँखें मलता उठ खड़ा,देखो फिर ये जीव। बस्ता छोड़ निकल पड़ी, नव विकास की नींव।। 4.शिक्षा से इस देश में,नित-नित हुआ उजास। विकसित बचपन हो रहा,भर मन में विश्वास।। 5.दोष रहित गर सोच हो,विकसित होगा देश। द्वेष मनों से जब मिटे,स्नेहिल हो परिवेश।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

संस्मरण- डर के वो पल

#डर के वो पल बात उस दिन की है जब पतिदेव 5-6 दिन के ट्यूर के बाद दिल्ली से वापस आने वाले थे। अभी आधा घंटे पहले ही उनसे बात हुई थी। वो करोल बाग दिल्ली में बच्चों के लिए शापिंग करके वापस आए और थोड़ी देर बाद ट्रेन में बैठने के लिए कह रहे थे। मैंने भी सोचा कि अब उनको चंडीगढ़ पहुँचने में देर लगेगी सो खाना तो नहीं खाएँगे। अब खाना नहीं बनाना तो टी.वी ही देख लेते हैं,मैंने ज्यों ही टी.वी चलाया देख के घबराहट हो उठी । फटाफट मैंने मोबाइल उठाया और पतिदेव को लगाया। बहुत कोशिश की फोन नहीं लगा। इतने में नीचे के फ्लोर में रहने वाले मकान मालिक अंकल-आंटी आ गए और पतिदेव के बारे में पूछने लगे। फिर फोन लगाया फोन नहीं लगा..टी.वी पर दिल्ली में जगह-जगह बम-विस्फोट की घटना ..लाशें ...उफ्फ्फ। कभी नजरें टी.वी पर कभी हाथ और कान फोन पर ..इनका फोन नहीं लगा मुझे डर और घबराहट से रोना आ रहा था। अंकल -आंटी वहीँ बैठे मुझे इनके जल्दी आने की बात कह रहे थे। एक-डेढ़ घंटे के बाद इनका फोन आया पर कट गया पर इससे मेरी घबराहट और डर बढ़ गया। बच्चे भी पापा से बात करने के लिए रोने लगे। लगभग बीस-पच्चीस मिनिट बाद पतिदेव का फोन

कहानी-महत्वकांक्षा

#कहानी-महत्त्व़ाकांक्षा राजकीय अधिकारी हरिओम जी अपने नाम की भाँति हरि के बहुत ही भक्त बड़े भक्त थे। ईश्वर में अपार श्रद्धा के कारण वो यथासंभव मंदिर में दान किया करते थे। शांत चित्त सुलझे हुए व्यक्तित्व के हरिओम जी के दोनों बच्चे बहुत ही अच्छी विद्यालय में पढ़कर निकले। इतने अच्छे गुणों के होने पर भी उनकी अति महत्त्वाकांक्षी प्रवृति के कारण घर में हर कभी माहौल गरमा जाता था। वो चाहते थे कि उनके दोनों बेटे भी सरकारी अफसर बनें जबकि बच्चे निजी कंपनी में कार्य करने के इच्छुक थे। हरिओम जी जबरदस्ती अपनी महत्त्वकांक्षाओं का बोझ अपने बच्चों पर डालकर उन्हें सरकारी नौकरी की तैयारी करवाया करते थे। बिना मन से बच्चे परीक्षाएँ देते पर कहीं चयन नहीं हो पाता। इस कारण वे थोड़े चिड़चिड़े हो गए और बच्चों और पत्नी पर गुस्सा निकाला करते। इस कारण बच्चे भी अवसाद में रहने लगे। बच्चों की ये हालत देखकर हरिओम जी बड़े दुखी होते पर अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को नहीं त्यागना चाहते। एक दिन ऑफिस में नंदन जी की पुत्री के सरकारी अफसर बन पाने के पीछे का राज जानकर उन्होंने भी वही मार्ग अपनाने की सोची। विज्ञप्

तू माझी

#तू माझी तू माझी मैं पतवार पिया, मैं नाव तू खेवनहार, तुझ बिन सागर ये पार न हो , मैं मझधार तू तारनहार। तुझ से जुड़ी मेरी जीवन-नैया, जीवन का तू आधार। हो संग तेरे हर सुबह-शाम, है तुझसे मेरा संसार। अनमोल पिया जीवन के क्षण, तू प्रेम की मधुर बयार। बांधू कैसे आज समय को, ये बहता है बन नीर। प्रीत की साखी ये नदिया, है जल में भी संगीत, तेरे साथ का हर अहसास प्रिय, ज्यों है मादक गीत । है दूर क्षितिज में बदरा भी, बिजली को हृदय बसाए, उस पर्वत को भी देखो पिया, सब पे प्यार लुटाए, पर्वत का अंचल पाकर नदिया, कितनी है हर्षाय, मैं भी मांगूँ यही आज दुआ , ये पल कहीं बीत ना जाए। #सुनीता

तेरे बिन अधूरी

#तेरे बिन अधूरी है अधूरी तेरे बिन,मेरी ये काया। सोच सपने सुहाने ये मन मुस्कुराया जीवन में हर स्वप्न ,संग तेरे सजाया घनी धूप में तुम ही,हो मेरी छाया हर बुरे दौर में ,एक दूजे का साया तेरे साथ मिल,फर्ज हर है निभाया। तुम्ही ने मुझे 'रस्ता' सीधा सुझाया भी कहने दो ,मौका है आया मैं सबसे सुखी 'राज' ,तुमको जो पाया मैं जो रूठी तुम्हीं ने है मुझको मनाया। शरमा के मन ,पुष्प सा है मेरा मुस्कुराया न मन में कोई गम ,न डर भी समाया मैं बैठी हूँ 'निर्भय',जो तुम मेरा साया एक हँसी पे ,हर सुख था लुटाया मुझको कहने दो.. तुम बिन है आधी सी काय मैं तो भोली थी, जीना तुमने सिखाया असली संसार से,तुमने मुझको मिलाया आज बैठी तेरे साथ, गर्व मुझमे समाया तुम्ही 'प्राण' मेरे...'प्रिया ' तुमने बनाया कैसे भूलूंगी तूने ,हर वादा निभाया, राह काँटों की पे फूल, तूने बिछाया। मेरी खुशियों का हर 'राज'तुम मे

विज्ञान-मनहर घनाक्षरी

मनहर घनाक्षरी #विज्ञान 8,8,8,7 पर यति 31 वर्ण, अंत गुरु एक कोशिश.... हर पथ पर बढ़ा, विज्ञान रथ पे चढ़ा मनुज आगे है बढ़ा, बिज्ञान भाग्य लिखे। सीधा बड़ा मनुष्य है सुलझा रहा रहस्य है, सच्चे साथी सदृश्य है, विज्ञान ज्ञान सीखें। अनूप रूप शक्ति सा, है ठंडी छाँव धूप सा। रोद्र शिव स्वरूप सा, अद्भुत ज्ञान देखें। धार ज्यों तलवार है, तेज ज्यों तलवार है। ये उन्नति का द्वार है, विशिष्ट ज्ञान सीखें। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

₹रंगों का संसार

रंगों का संसार हजारों रंग बिखरे हैं जमीं से आसमां तक, मिलन धरती गगन का रंग दिखलाते हैं नटखट। उमड़ती है लहर चंचल निकल सागर के दिल से, जमीं सूखी हुई खुश आज फिर सागर से मिलके। आसमां ज्यों जमीं की गोद में सर को झुकाए, जमीं खुश है गगन की प्रीत को मन में छुपाए। मिलन का गीत गुनगुना रही सागर की लहरें, मचलती तोड़ने प्राचीर और दुनिया के पहरे। पाषण भी खंडित हुआ लहरों से मिलके, यही लहरें छिपा रखती हैं,तूफां अपने दिल के।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर