#तेरे बिन अधूरी
है अधूरी तेरे बिन,मेरी ये काया।
सोच सपने सुहाने ये मन मुस्कुराया
जीवन में हर स्वप्न ,संग तेरे सजाया
घनी धूप में तुम ही,हो मेरी छाया
हर बुरे दौर में ,एक दूजे का साया
तेरे साथ मिल,फर्ज हर है निभाया।
तुम्ही ने मुझे 'रस्ता' सीधा सुझाया
भी कहने दो ,मौका है आया
मैं सबसे सुखी 'राज' ,तुमको जो पाया
मैं जो रूठी तुम्हीं ने है मुझको मनाया।
शरमा के मन ,पुष्प सा है मेरा मुस्कुराया
न मन में कोई गम ,न डर भी समाया
मैं बैठी हूँ 'निर्भय',जो तुम मेरा साया
एक हँसी पे ,हर सुख था लुटाया
मुझको कहने दो.. तुम बिन है आधी सी काय
मैं तो भोली थी, जीना तुमने सिखाया
असली संसार से,तुमने मुझको मिलाया
आज बैठी तेरे साथ, गर्व मुझमे समाया
तुम्ही 'प्राण' मेरे...'प्रिया ' तुमने बनाया
कैसे भूलूंगी तूने ,हर वादा निभाया,
राह काँटों की पे फूल, तूने बिछाया।
मेरी खुशियों का हर 'राज'तुम में समाया
तू है वृक्ष तो ,पिया मैं तेरी छाया.....
#सुनीता
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें