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संदेश

दोहे, राम ,सपना,जगाने की जरुरत है,जख्म,

दोहे लेकर पत्थर हाथ में,हिंसक हुआ समाज, धर्मों में मानव बंटा,लुटी देश की लाज। हिंसा की राहें तजें, तजिए सब हथियार, मौन की शक्ति देखिए,भरे दिलों में प्यार।। अपने हाथों पर सदा,कर लीजे विशवास, हाथों के हथियार से, छूना है आकाश। सबकी काया एक सी,अलग न कोई भाय, दाता के दर पर सभी,आये ज्यों ही जाय। जालिम जिद के कारणे,जलते ज़िंदा लोग, खुद के ही नुकसान का,लगा जीव को रोग। #सुनीता बिश्नोलिया #सपना आँखों का हर सपना ही सदा पूरा तो नहीं होता, जिद कर लो तो कोई सपना अधूरा भी नहीं रहता। उम्मीद-आशा और विश्वास हो अपने कर्मों पर, कोई लक्ष्य अपनी पहुँच से दूर तो नहीं होता। आजाद भारत का सपना देखा था उन सपूतों ने छोड़ देते वो हिम्मत तो देश आजाद नहीं होता। शिक्षा के उजाले का स्वप्न सलोना ले नयन में, लेकर के कटोरे निकले हैं हाथों बस्ता नहीं होता। किसी के तोड़ता है सपनों के महल अपनी खुदगर्जी में, दूजों के सपनों के टूटने का दर्द उनको जरा सा नहीं होता। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर सो रहे इस ज़माने को,जगाने की जरुरत है, नकल कर पढ़ने वालों को,सुधरने की जरुरत है। पैसों से खेलता है जो, हिमाक़त देखिए उनकी, फिरता

धरती

#धरती तपती धरती पर ओ ! बादल नेह- नीर बरसा दे, नादान मनुज की नासमझी की,धरती को तू ना सजा दे। सूरज आग उगलता मानव,तेरी ही लोलुपता से सम्पूर्ण पृथ्वी है संकट में मानव,तेरी हो नादानी से। वृक्ष बिना माँ धरती का बोलो, कैसे हो श्रृंगार, जल संचय करो धरा की, सुन लो करुण पुकार अभी समय है, अरे बावले,धरा का तू न दोहन कर, महलों में रहने की खातिर,ना पेड़ काट प्रदूषण कर। धूम्र के गुंबद,ग्राम-शहर में,धरती को मैला करते, देन धरा की कहके ये पर्वत को,थोथा करते। गर्म हवा के झोंको से,जल संचय ना हो पाते , हिम पिघल -पिघल ,तांडव लीला कर जाते। तो,तप्त धरा पे ओ!बादल ,नेह-मेह बरसा दे, रुदन करती अचला पे तू,प्रेम सुधा बरसा दे। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#पर्यावरण

#पर्यावरण माननीय पार्षद महोदय मंच से उतरे इतने में एक दस वर्षीय बालक उनके पास पहुँच गया और निडर होकर बोला,सर आपके विचार बहुत ही सुन्दर हैं।वास्तव में आप देश के सच्चे सेवक हैं आप को प्रकृति और पर्यावरण की बहुत चिंता है...हम बच्चे आप से बहुत कुछ सीख सकते हैं। पार्षद जी खुश होकर बोले शाबास बेटा..हम जनता और प्रकृति के भलाई करते हैं तो हमें भी सच्चा सुख मिलता है।हमारी बातों को याद रखना और अपने आस-पास रहने वालों और अपने मित्रों को समझाना की पर्यावरण की रक्षा करना हमारा धर्म है। बच्चा कहता है जी धन्यवाद सर मैं आपकी बात अवश्य याद रखूँगा...किन्तु अब आपकी सभा के कारण हमारे उद्यान का जो नुकसान हुआ है उसे ठीक करवा दीजिए..क्या मतलब पार्षद महोदय पूछते हैं। बच्चे ने कहा सर आपकी बातें सुनने बहुत ज्यादा लोग आए सब आकर उद्यान में हर कहीं बैठ गए..देखिए काफी संख्या में छोटे पेड़-पौधे तोड़ गए,देखिए कितने फूल..पत्तियों को नुकसान पहुँचा गए हैं। और सर आपके देर से आने के कारण सभी ने चाय-नाश्ता भी यहीं किया..वो सारा कूड़ा भी यहीं फैला गए...उन्होंने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया..सर आपके भाषण के लिए जो मंच बना

वैश्विक ताप-कारण और निवारण

वैश्विक ताप--कारण और निवारण माँ वसुधा पर फ़ैल रहा है,आज धुँआ विषैला, हाय!तड़पती माँ का तन भी हुआ बड़ा मटमैला। जी हाँ आज वसुधा जल रही है ताप से,और मैली हो गई है हमारी ही गलतियों से। सारा संसार जल रहा है,गर्मी,धूप ,धुआँ ,प्रदूषण से। कारण है स्वयं हम हमारी आपसी प्रतियोगिता, भोग की इच्छा अर्थात उपभोक्तावाद। हर मनुष्य के मन में संसार की हर सुख सुविधा पाने की इच्छा..लालच। जितनी इच्छाएँ उतना ही उपभोग,अत्यधिक उपभोग से संसाधनों का दोहन,नित नई फैक्ट्री ,फिर धूम्र का गुब्बार। बढ़ती जनसंख्या का अपने स्वार्थसिद्धि हेतु संसाधनों का दुरुपयोग,पेड़ों की अंधाधुंध कटाई परिणामस्वरूप सिमटते ग्राम और बढ़ते शहर। कुटीर उद्योगों की समाप्ति और पूर्ण मशीनीकरण के कारण बिजली चालित उपकरणों पर निर्भरता जिससे बढ़ता ताप। आधुनिकता के कारण पैदल चलना बंद और पेट्रोल डीजल चलित वाहनों से बढ़ता प्रदूषण। विश्व के सभी देशों में बढती आपसी प्रतिस्पर्धा और एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ , युद्ध के खतरे तथा अपनी शक्ति बढाने हेतु हथियारों का निर्माण और उपयोग। बढ़ता परमाणु परीक्षण ,बढ़ता आतंकवाद जिसके कारण हथियारों का दुरूपयोग और बढ़ता युद्ध

कहानी-शिक्षा

#शिक्षा ये कथा है जयपुर शहर में रहने वाले सोने-चाँदी के बहुत बड़े व्यापारी संपतलाल जी की। उनके व्यापार में तीन मित्रों की हिस्सेदारी थी।वो थोड़ा कम पढ़े लिखे थे इसलिए रोजाना का हिसाब मित्र ही कर लिया करते।दोनों मित्र भी बहुत ही ईमानदार इसलिए ईश्वर ने उन्हें धन-दौलत से लेकर दुनिया के हर सुख प्रदान किये..नहीं दिया था तो बस संतान सुख। जो कोई जिस मंदिर जाने की कहता वो संतान प्राप्ति का आशीर्वाद लेने उस मंदिर में पहुँच जाते। विवाह के आठ-दस वर्ष बाद ईश्वर ने उनकी झोली में डाली प्यारी सी बच्ची।अपनी पत्नी को ही अपना भाग्य समझने वाले संपत जी पुत्री जन्म के बाद तो माँ बेटी का विशेष ध्यान रखते। वो बेटी प्रिया से इतना अधिक प्रेम करते थे कि कई बार तो उसकी जिद के कारण दुकान पर नहीं जाते और इस कारण नुकसान भी हो जाता। संपत जी बड़े ही दयालु व्यक्ति थे वे अपने यहाँ काम करने वाले अधिकांशत: कर्मचारियों के बच्चों को बहुत प्रेम करते थे और जरूरत के अनुसार उनकी आर्थिक मदद भी कर दिया करते थे। उनके घर में काम करने वाला किसन अपनी पत्नी व बेटी के साथ घर के पीछे बने एक कमरे में रहता था।वो दोनों पति-पत्नी ही सेठजी के य

युद्ध की बातें करने वालो

#भारत पाक सीमा पर तनाव के बारे में कौन नहीं जानते.. ##युद्ध की बातें करने वालो युद्ध की बातें करने वालो,घर अपने में रहनेवालो , सीमा पर जाकर तो देखो,जीवन उनका जीकर देखो अपने घर को छोडा है ,हर मुशकिल का रुख मोडा है , देश कीरक्षा की खातिर,अपनों के सपने को पीछे छोड़ा है। दिन रात खड़े रहते हैं,जो अपने सीनों को ताने, भारत भू की रक्षा में ,हर सुख को बौना माने। ओ युद्ध की बातें करने वालो,सुख का जीवन जीने वालो........ युद्ध से हमें बचाने को ,रातों को पहरा देते हैं, अमन का पाठ पढ़ाते सैनिक,खुद ही पत्थर खाते हैं। लड़ते हैं इक दूजे से हम,हर सुख ही पा लेने को,    सीने पे गोली खाने को, तैयार है ये मर जाने को । दुश्मन की नापाक हरकतें ,हम से ज्यादा ये जानें, आतंकी के हर हाव भाव को वीर हमारे पहचानें। ओ युद्ध की बातें करने वालो,रातों को सुख से सोने वालो....... हम इन को क्या फ़र्ज सिखाते,क्यों युद्ध हेतु उकसाते हैं ये अपनी मर्जी से जाते हैं,दुश्मन सिर ले आते हैं। युद्ध-युद्ध ना नाम रटो तुम,शांति का आहवान करो तुम , युद्ध ना होने पाए,ऐसा कोई उपाय करो तुम। आतंकी को सजा मिले,सम्मान शहीद हर पाए ,

तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ मैं

#तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ मैं अश्क आँखों के खुद ही पिये जा रहा हूँ,मैं, तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ,मैं। जख्म देकर ज़माने ने छलनी दिल को किया, दिल जख्मों को खुद ही सिये जा रहा हूँ मैं। पाने को तमगा सबकी लालच भरी है निगाहें, तमन्नाओं को लालच से,आगे लिए जा रहा हूँ मैं। लोग हँसते हैं मेरी जिद को कहते तमाशा , अपनी जिद से ही लेकिन बढ़ा जा रहा हूँ मैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर