हास्य थुल-थुल पेट, सज्जन सेठ, दाल का प्याला,... पीकर गए लेट। आँख खुली तो ,पेट में हलचल, पड़ गए थे पेट में भी बल।। सज्जन जी की बात बताऊं क्या उन पर बीती आज सुनाऊं चतुर खिलाड़ी बातें भरी रोज - रोज करते थे। ज्ञान के थे भंडार गांव में मुफ्त में बांटा करते थे अभियान स्वच्छता की बातें वो बढ़ - चढ़ कर के करते थे। न शौच खुले में करना सबको सीख सिखाया करते थे। कल की सुनना बात अभी तक नहीं हुई थी भोर घुप्प अंधेरा खेतों में था जरा नहीं था शोर। चिड़िया भी न चहकी अब तक पसरा खेतों में सन्नाटा। यहाँ-वहाँ देखा सज्जन जी, ले चले हाथ में लोटा। गुड़-गुड़ भारी हुई पेट में, करती गैस भी अफरा तफरी। चुप-चुप पीछे-पीछे-पीछे चलते, गाँव के बच्चे सारे खबरी। माहौल हवा का बदला पर.. बच्चों की जिद थी पूरी है रंगे हाथ धरना बच्चू को चले छिप-छिप थोड़ी दूरी। रोज-रोज खुद शौच खुले में,
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia