अंजना का लाल-लाली, सूर्य की से खेलता, चंचल-चपल-नादान बालक, ' राम' धुन में डोलता। दिव्य लेकर जन्म 'भक्त' हनुमान ने हुँकार की, संसार को भय-मुक्त कीन्हा, जगत ने जयकार की। वीर वो महावीर तब, मोह राम के में पड़ गया, चरणों में पाने को जगह, विपदा से हनुमत भिड़ गया। सागर को समझा तुच्छ , उसके पार 'बजरंगी' चला, पवन का वो पुत्र बाला, पवन से भी द्रुत उड़ा। स्वर्ण-नगरी में पहुँच हनुमत न खोया चमक में, माँ से मिला देने वो भगवन के संदेश के संकल्प में। वाटिका में देख माता को, को ह्रदय पुलकित हुआ, पर देख माता की दशा, संताप में वो भर उठा। देख कर चूड़ामणि , माँ को हुआ विश्वास अब, है श्री राम का ही दूत वानर, संशय मिटे माता के सब। रोक पाया न उन्हें, निशिचर कोई भी लंक का, क्षुब्धा की तृप्ति की फलों से, आशीष ले माँ अ
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia