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फिर आएगा वसंत - कहानी

‘‘ फिर आएगा वसंत ’’      चम्पा चमेली, गेंदा, गुलाब..... ना जाने कितनी तरह के पौधे लगे हैं, इस बगीचे मेंं।     हर क्यारी फूलों से गुलजार है हर डाली पर फूल खिले हैं । इठलाते गुलाब और शान दिखाते गेंदे को छोड़कर बगीचे में जिधर भी नज़र घुमाकर देखें तो लगता है हम स्वर्ग में ही आ गए हैं।इतनी सुन्दर क्यारियां,पौधों की इतनी सुन्दर कटिंग, कहीं झांकते नव-पल्लव तो कहीं कलियाँ और फूल।       हँसती हुई कलियों और फूलों के बीच चंदा की पायल सी खनकती हँसी और साथ ओहो..कहते हुए चंदा के पिताजी की बहुत ही  शांत हँसी ने वातावरण में मनुष्य की उपस्थिति का अहसास करवाया है।  भाई के किए का मजाक बनाते हुए बाबा की लाडली चंदा बाबा को एक गुलदस्ता दिखाकर कहती हैं - ‘‘बाबा देखों ना मन्नू ने क्या किया है। (हँसते हुए) गुलाब में गेंदेओर गेंदे में गुलाब के फूलों को मिलाकर रख दिया। पागल कहीं का। ऐसे भी भला कोई गुलदस्ता बनता है।      लाडली चंदा बिटिया की बात पर हँसते हुए झाबर बोला- ‘‘कहाँ खोये रहते हैं ये माँ-बेटे चल अब कोई बात नहीं, आज ही किया है ना  तो तू इसे सही कर दे।’’     ‘‘हाँ बाबा, अभी लगा देती हूँ। आप उस

बसंती आई रुत मनभावणी हिलमिल गावां ये- वसंत गीत राजस्थानी

वसंत - गीत  क्यारी-क्यारी फूलङा,अब रंगां रो राज।  पतझङ रा दिन बीतिया,आय गया रितुराज।।  वसंत का सौंदर्य आएगा वसंत   चंपा और चमेली महकै,      महकै फूल हजार,  मोर-पपईयां री बोली ज्यूं,  झांझर री झणकार।।  बसंती....बसंती आई रुत मनभावणी,   रळ-मिल गावां ये।  1 रूप खिल्यो धरती रो देखो,         बिखर् या कितणा रंग,  देख बसंती बालम मन मैं,     बाजण लाग्या चंग।-2  पीळा और पोमचा ओढ्यां,     कर सोळा सिणगार,  मुळकै धरती पैर नोलखो,   फूलां वाळो हार।।  बसंती....बसंती आई रुत मनभावणी,      रळ-मिल गावां ये। ।।  2.ऊँचा-नीचा टिबङियां री,                 सोनै बरगी रेत,    मुळक रह्या सै देख बसंती,               सरसूं वाळा खेत।  भँवरा और तितळियां उङ-उड,             घणी करै मनवार,  धोरां री धरती इतरावै,             ज्यूं मतवाळी नार।।  बसंती....बसंती आई रुत मनभावणी,  रळ-मिल गावां ये।।   वसंत का सौंदर्य 3.रूंखा रो बी मनङो हरखै,                आया काचा पान चालै भाळ बसंती छेङै,               फागणिये री तान, क

खुलकर कुछ बातें हों जाएँ- कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव

कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव की बेहतरीन कविताएँ  खुलकर कुछ बातें हो जाएं दिल करता है कभी-कभी बंद पड़े हैं जो बरसों से भीतर तन्हा घुटे -घुटे से  उलझे किस्सों को सुलझाएं दिल करता है कभी-कभी छतरी ताने छत के ऊपर सन्नाटे में धूप खड़ी है कुछ पल उसके साथ बिताएं दिल करता है कभी-कभी चखकर मीठी यादों को खोल दें सांकल अपनेपन की खिलकर महकें मुस्काएं दिल करता है कभी-कभी प्रज्ञा जिंदगी की किताब में खुशी, ख्वाब, ख्याल,ख्वाहिशें लिखा तो बहुत कुछ था पर छपते-छपते  कुछ यूं छप गया दुख, दर्द, दहशत, दवाब कहीं-कहीं छपा था आशा, विश्वास, त्याग, तपस्या जैसी बातें मजबूरी की पुनरावृत्ति प्यार का पूर्ण विराम जीवन के रिक्त स्थान में मौत जो मरती नही रूठ जाती है जिंदगियों से प्रज्ञा श्रीवास्तव

वसंत का सौंदर्य

वसंत का सौंदर्य क्यों मनाते हैं वसंत पंचमी अधूरी इच्छा छाई है तरुणाई तिस पर,             रूप सजा अलबेला,  सजी धजी धरती दिखे,           पहना वसंत दुशाला।  देख धरा की कोमल काया,              मन डोले मतवाला  बिना गए मधुशाला ही,            चढ़ी ग़ज़ब की हाला।  राजस्थानी गीत - बसंती आई रुत मनभावणी घूंघट में ना सिमट रही,            रूप की मादक ज्वाला,  आज गगरिया छलक रही,         पी मधुमास का प्याला। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर 

दोहे - वसंत

दोहे - वसंत  क्यों मनाते हैं वसंत पंचमी माँ वसुधा  मुस्का रही, देखे रंग हजार।  ऋतु वसंती आ गई, लेकर संग बाहर।1।  सौरभ से महके धरा,सुमन खिले हैं अंक। मात धरा की नजर में, सम हैं राजा रंक।2। चूनर ओढ़े प्रीत की वसुधा रही लजाय।  देख वसंती साजना,रोम-रोम खिल जाए।3।   झांझर पैरों में पहन, उड़ा रही है धूल।  मन ही मन मुस्का रही,बनी कली से फूल।4।  खग भी कलरव कर रहे, बैठ विटप की डाल। वन-उपवन फुल्लित हुए, पुष्प सजे तरु भाल।5।  मंद - पवन यों चल रही, ज्यों सरगम के साज़।  करते स्वागत सुमन हैं, आओ जी ऋतुराज।6। भूली धरती दर्द को, पूरी होती आस।  खुशियों वाले रंग ले,आया है मधुमास।7।  सुनीता बिश्नोलिया जयपुर 

क्यों मनाते हैं वसंत पंचमी कितनी सुंदर है ऋतु वसंत

पढ़ें- वसंत - दोहे वसंत का सौंदर्य वसंत ऋतु  "अपनी आभा से धरती को करने को गुलजार   सुमन धरा पर खिले संग ले, सतरंगी संसार, पहन हरित वसन बसंत ने,जीवन दिया धरा को मंद पवन संग उड़ -उड़कर,भर देती घर द्वार ।।" दोहे - वसंत               कहीं गर्मी में झुलसते मानव तो कहीं हिमाच्छादित रातों में ठिठुरते जन पर  धन्य हैं हम जिन्होंने जन्म लिया भारत विशाल में।            इसकी स्वर्ग सी धरती पर सदा चक्र गतिमान रहता है षड्ऋतुओं का। ग्रीष्म, वर्षा,शरद, हेमंत,शिशिर और वसंत अर्थात विभिन्न रूपों और प्रकृति की क्रीड़ा स्थली हमारा देश भारत।         प्रकृति के रूप और सौन्दर्य का शृंगार करती है ये छः ऋतुएँ। हर ऋतु की अपनी विशेषता और अपना महत्त्व, जहाँ ग्रीष्म की गर्मी से तप्त भूमि को सींचकर शीतल करती है वर्षा और वर्षा के प्रभाव से शीतल भूमि पर ठिठुरन पैदा करती है शरद।प्रकृति द्वारा शिशिर पर कुर्बान अपने हर तरुवर के पात पुनः आते हैं शिशिर की विदाई के साथ ऋतु वसंत में अर्थात्‌ शीत ऋतु में पतझड़ के कारण अपना सौन्दर्य खोकर ठूंठ हो चुके पेड़ और लताएँ मुस्कुर

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

  गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं " भूलोक का गौरव प्रकृति का लीलास्थल कहाँ,  फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है,  उसका कि जो ऋषि भूमि है,वह कौन ? भारत वर्ष है।।"          हिमालय जिसका मुकुट और गंगा यमुना  जिसके हृदय का हार है, विंध्याचल जिसकी कमर है तो कन्याकुमारी इसके चरण। कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्राकृतिक लावण्य तथा अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी मेरे भारत की जय।    जिसका यशगान गाते नहीं थकते कवि,   सियाचिन की गला देने वाली ठंड हो या जैसलमेर का जला देने वाला ताप इसके पहरे में नहीं रखते कमी इसके वीर।     कोटि-कोटि नमन मेरे देश को, तथा समस्त देशवासियों 72 वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।  भारत के तीन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्वों में एक है गणतंत्र दिवस जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है।             आज़ादी के पश्चात ड्राफ्टिंग कमेटी को 28 अगस्त 1947 को भारत के स्थायी संविधान का प्रारूप बनाने जिम्मेदारी सौंपी गई। 4 नवंबर 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में भारतीय स