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गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

  गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं " भूलोक का गौरव प्रकृति का लीलास्थल कहाँ,  फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है,  उसका कि जो ऋषि भूमि है,वह कौन ? भारत वर्ष है।।"          हिमालय जिसका मुकुट और गंगा यमुना  जिसके हृदय का हार है, विंध्याचल जिसकी कमर है तो कन्याकुमारी इसके चरण। कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्राकृतिक लावण्य तथा अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी मेरे भारत की जय।    जिसका यशगान गाते नहीं थकते कवि,   सियाचिन की गला देने वाली ठंड हो या जैसलमेर का जला देने वाला ताप इसके पहरे में नहीं रखते कमी इसके वीर।     कोटि-कोटि नमन मेरे देश को, तथा समस्त देशवासियों 72 वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।  भारत के तीन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्वों में एक है गणतंत्र दिवस जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है।             आज़ादी के पश्चात ड्राफ्टिंग कमेटी को 28 अगस्त 1947 को भारत के स्थायी संविधान का प्रारूप बनाने जिम्मेदारी सौंपी गई। 4 नवंबर 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में भारतीय स

सर्दी की रात

सर्दी की रात घने कोहरे से लिपटी रात... सांय-सांय करतीसर्द  हवाएँ  ए.सी वाली गाड़ी में बैठ देर रात घर लौटते,कुछ ऐसा देखा, और मैं सिहर गई, खेत में नहीं आज फुटपाथ पर सोता #हल्कू देख रुक गई।  जबरा तो नहीं... हाँ फुटपाथ पर सोते उन लोगों को गर्माते साथी कुत्ते देखे। दांत किट-किटाती सर्दी में वो एक दूसरे का सहारा बने थे, सिकुड़ कर सोये ठण्ड में काँपते सोने की असफल कोशिश करते आदमी के साथ चिपका हुआ उसके शरीर को गर्माता,खुद को बचाता शायद उसके लिए भी सर्दी का आसरा वो समझ नहीं आ रहा था  आखिर कौन किस का आसरा ले रहा है? आधी रात ओस से भीग चुकी,  बीसियों छेद वाली  कंबल में  खुद को लपेटता वो मजबूर।   स्वयं को बहुत कोसा...उसकी दशा से पीड़ित सी महसूस कर  अपनी शाल उढ़ा कर चली आई।  पर एक...को!!!! आँखों में अश्रुधार और प्रश्न लिए  किसी को क्यों नहीं दिखता ये हल्कू....??? profile #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

युवा दिवस-स्वामी विवेकानंद जयंती

उठो जागो  और तब तक मत रुको जब तक तुम्हें अपने  लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए । स्वामी विवेकानंद _      आदर्श  विश्व के  अजर -अमर,        ज्ञान-ज्योति दी जग में भर।        थी तीक्ष्ण बुद्धि और ह्रदय विशाल,          विवेक भरा भारत का लाल।         स्वामी विवेकानंद का नाम आते ही मष्तिष्क में एक उत्साही,ऊर्जावान ,बुधिमान युवा की तस्वीर उभर आती है जिसने अपने ज्ञान ,विवेक और अभिव्यक्ति कौशल के द्वारा  विश्व पटल पर भारत की अमिट छाप छोड़ी । अंग्रेजी शासन काल में शोषित मानवीयता के मध्य  12 जनवरी, 1863 ई. में कोलकाता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के यहाँ नरेंद्र नाम के बालक ने जन्म लिया  जिसने भारत के लोगों का ही नहीं वरन  पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया । ओजस्वी व्यक्तित्व ,ओजपूर्ण शैली तथा अपने विवेक से उन्होंने सम्पूर्ण  विश्व को  भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया । विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के नामी वकील थे । बचपन से ही मेधावी नरेन्द्र ने 1889 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोलकाता के ‘ जनरल असेम्बली ’ नामक कॉलेज में प्रवेश लिया । यहाँ उन्होंने इतिहास, दर्

नारी अब कमज़ोर नहीं

दोहे  नारी, बेटी  चंदा की सी चाँदनी,मुस्काए मन मंद । नारी जलता दीप है,तम हरती क्षण चंद ।। बिटिया बाबुल घर खिले, बनकर उजली धूप। बाबुल को खुशियाँ मिली,देख सलोना रूप।। नारी ने है तोड़ दी,बूढी -रूढी आज। बिजली बन आगे बढ़ी,आँचल में भर लाज।।  कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार, रूप कभी है कामिनी,समझो तेज कटार   चंचल  चिड़िया बाग की,उड़ती खोले पाँख। छोड़ नीड़ जब वो उसे,भीगे हर इक आँख।।  कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार।  रूप कभी है कामिनी,होती तेज कतार।।  है लक्ष्मी का रूप वो,काली का अवतार।  सहती लोगों के नहीं,खुद पर अत्याचार।।  #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

Tricks of Happiness... - Devanshi

So this year I've learnt a few things I would like to share: No. 1) If at any moment you are feeling there is a 100 tonnes rock on your chest/feeling suffocated/ feel like crying your eyes out/ getting sad remembering your past/ endlessly worrying about the future/ having anxious thoughts/ questioning the choices you made or just don't feel your best self call up a friend/family member or just sit down with someone you'd wish to talk to. Tell them that YOU ARE NOT DOING FINE that's it... It's actually as simple as that! Tell them what's been up with you (ofcourse you can decide how much you want to share) and ask them how they have been rolling.🌻 No. 2) Do not be too harsh on yourself, believe me you're doing great!  You’re braver than you believe, and stronger than you seem, and smarter than you think.”🍂 No. 3) This is something I've learnt very recently (those who have spoken to me recently would know where is this coming from, emoji

प्रतियोगिता

सुप्रभात सोनचिरैया मैंने जीना सीख लिया - कहानी संघर्ष - कहानी अपनी-अपनी भेड़ों को लेकर साथ-साथ चलते गड़रिये नहीं हांकते,नहीं रोकते थे दूसरे झुंड में जाती भेड़ों को लौट आने के विश्वास से । रल-मिल कर एक-दूसरे के झुंड में उछलती-कूदती भेड़ें  आगे निकलने की होड़ के बिना चलती थी साथ-साथ । नहीं चाटती थी हाथ गड़रिये के ज्यादा घास पाने के लालच में छोड़ देती थी घास भी अपने हिस्से का दूसरे झुंड की भेड़ के लिए। गड़रिये भी बातें करते पेड़ों,पहाड़ों,मैदानों से और खेलते थे मिट्टी में लोट-लोट कर। प्याज-लहसुन के साथ खा लिया करते थे पोटली में बंधी रोटी। और गढ़-गढ़कर गीत गाते हुए बिता देते थे दिन हँसते हुए । साँझ होते ही लौट आती थी हर भेड़ अपने झुंड में पास अपने संगी-साथियों के । आज नहीं दिखती मिट्टी, मैदान, लौटने के लिए, प्याज,लहसुन और इतनी सयानी भेड़ें, गड़रिये और विश्वास। इंसान है जिसे भेड़चाल पसंद नहीं विश्वास,त्याग और प्रेम की.. बस ललक है आगे बढ़ने की कुचलते हुए इंसान को । सुनीता बिश्नोलिया ©®

नौसेना दिवस

नमन देश के नौजवानों को है  चीर देते हैं सागर का सीना भी वो,  हौंसला उनका गहरा है सागर से भी  नाप लेते हैं गहराई जलधि की वो  हाथ में प्राण लेकर के चलते चलें  और हँसते हुए जान दे देते हैं केसरी रंग उनके लहू का ही है  ख़ुद तिरंगे की है शान कहलाते वो। सुनीता बिश्नोलिया ©®

सुप्रभात

सुप्रभात सुप्रभात सुप्रभात  उठ जाओ बटोही लो सुबह हुई  रात बीती अँधेरी रोशनी अब हुई,  राह पर चल पड़ो रवि कहता तुम्हें मत रुको मंज़िलें अब तुम्हारी हुई।। सुनीता बिश्नोलिया © ®

जय हनुमान 🙏🙏

अंजना का लाल-लाली,                        सूर्य की से खेलता, चंचल-चपल-नादान बालक,                     ' राम' धुन में डोलता। दिव्य लेकर जन्म 'भक्त'                  हनुमान ने हुँकार की, संसार को भय-मुक्त कीन्हा,                 जगत ने जयकार की। वीर वो महावीर तब,            मोह राम के में पड़ गया, चरणों में पाने को जगह,             विपदा से हनुमत भिड़ गया। सागर को समझा तुच्छ ,               उसके पार 'बजरंगी' चला, पवन का वो पुत्र बाला,               पवन से भी द्रुत उड़ा। स्वर्ण-नगरी में पहुँच                हनुमत न खोया चमक में, माँ से मिला देने वो भगवन                     के संदेश के संकल्प में। वाटिका में देख माता को,                 को ह्रदय पुलकित हुआ, पर देख माता की दशा,                  संताप में वो भर उठा। देख कर चूड़ामणि ,                माँ को हुआ विश्वास अब, है श्री राम का ही दूत वानर,                 संशय मिटे माता के सब। रोक पाया न उन्हें,              निशिचर कोई भी लंक का, क्षुब्धा की तृप्ति की फलों से,                आशीष ले माँ अ

सुप्रभात

,सुप्रभात  वो तेरा हँसना पल-पल और रूठना क्षण भर में,  पास नहीं होने से केवल अहसासों में याद आया।  बातों के झरने से शीतल झरता था अविरल पानी,  पानी सी शीतल बातों में मेरा होना याद आया।  हिरनी के चंचल-चक्षु में शायद कोई रहता था,  तेरे नयनों की नगरी में,मेरा होना याद आया।  घनी उदासी में सर रख कर जिस कांधे पर रोते थे,  तेरे केशों की छाया को हाँ हम दुनिया कहते थे,  निष्ठुर मेरी अरी प्रियतमा बोलो भी तुम कहाँ गई,  बाती से इस जलते दिल को हर तेरा छलावा याद आया।  #सुनीता बिश्नोलिया © ®

सुप्रभात #good morning

, सुप्रभात  सुप्रभात  मुझे प्रतिलिपि पर फॉलो करें : प्रतिलिपि भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क सुबह स्वर्ण रश्मियाँ छितराई,लो आई अलमस्त सुबह, चिड़ियाँ  ने भी पंख पसारे,लो आई मदमस्त सुबह। झाँक उठी पल्लव से कलियाँ,नवजीवन लेआई सुबह, भाग पड़ी तारों की सेना,नटखट इठलाती आई सुबह। लो गायें भी लगी रंभाने,गाती-मुस्काती आई सुबह, पशुधन दुहने ग्वाल चले,घर भरने फिर आई सुबह। सज-धज पनघट चली गुजरिया,अलबेली लो आई सुबह, साथ चली छनकाती पायलिया खेतों में मुस्काई सुबह। चलीं कुदालें और फावड़े,नव सृजन करने आई सुबह,  बज उठी तान मोहन की ,लो वीणा के स्वर लाई सुबह। #सुनीता बिश्नोलिया सुप्रभात  पहन पखावज खग-कलरव की  किरणों के परिधान गूँज रहे मधु गीत कर्म के  हलधर छेड़े  तान  स्वर्णिम किरणें सूरज ने  बिखराई चहुँ ओर  सौंधी खुशबु से धरती पर  फूलों की मुस्कान।।  सुनीता बिश्नोलिया © ® 

सोन चिरैया...सोन चिड़िया

 माँ मैं तेरी सोनचिरैया  क्यों रात के अँधेरे में जला दी जाती है बेटियाँ मुश्किल घड़ी प्रतिलिपि माँ मैं तेरी सोनचिरैया बनके हवा अब आऊंँगी,  माँ मैं तेरी सोनचिरैया बनके हवा अब आऊँगी,  रो लेना माँ जी भर कर जब, तेरे गले लग जाऊँगी  तन पे लगे मेरे घावों को माँ,बस तुझको दिखलाऊँगी,  माँ मैं तेरी सोनचिरैया, बनके हवा अब आऊँगी।  हंसों के माँ भेष में कागा,होंगे था अहसास नहीं,  मस्त मगन में उड़ती थी,था खतरे का आभास नहीं,  माँ तेरी हर सीख याद थी, मैं कुछ भी ना भूली थी देख दुष्ट गीदड़ इतने माँ, कुछ पल सांसें फूली थी।           नहीं डरी मैं खूब लड़ी माँ, ना हथियार गिराए थे         देख मेरा माँ साहस इतना,वो मुझसे घबराए थे।        माँ तेरी ये चंचल चिड़िया,फिर उड़ने को तैयार हुई       गिद्धों ने ऐसा जकड़ा माँ, बिटिया तेरी लाचार हुई।  आ हँस लें लीलटांस  पाँख-पाँख तोड़ा मेरा, मैं उड़ने से मजबूर हुई,  धरती पर मैं गिरी तभी, थककर जब मैं चूर हुई,।   माफ़ नहीं करना माँ उनको, इतना मुझको तड़पाया था पशु से भी थे निम्न वो माँ, जिंदा ही मुझे जलाया था।

रात.. निशा.. रजनी

रात  रात चाँदनी गा रही, मीठे-मधुरिम गीत । खिला-खिला चंदा गगन, रजनी का मनमीत ।। निशा-ऊषा दिन बीता फिर से, रजनी ने घेरा अंबर, तिमिर उतर कर धीरे-धीरे,  बैठा पर्वत और सागर, नहीं देर कर अरे मुसाफिर,  जीवन की पतवार पकड़,  नहीं रुकेगा समय चलेगा समय की तू कर धार नजर। सुनीता बिश्नोलिया 

नदी और स्त्री

ये भी पढ़ें किनारों पर बसे लोगों का  भरण-पोषण करती  स्वच्छ नील नदी खुश है अपने पास  बस्ती होने से।  और जल में उठती हैं  खुशी की लहरियाँ  बस्ती का प्यार देखकर।   बस्ती की आस्था-केंद्र  जीवनदायिनी स्त्री-नदी,  धीरे-धीरे अनावश्यक वस्तुओं  का समाधिस्थल बन  खोने लगती हैं स्वच्छ नील रंग,  और होने लगती हैं  मटमैली-काली यमुना सी।  आश्रित भूल जाते हैं प्रेम   और बटोर लेते हैं वैभव प्यार को बदलकर व्यापार में  रिक्त कर देते हैं उसकी कोख।  वो जानते हैं स्वभाव  नदी और स्त्री का   पर नहीं समझ पाते  उसकी वेदना।  प्रतिलिपि गाद-गंध में लिपटी  चुपचाप पड़ी स्त्री-नदी त्याग देती है एक दिन  सहिष्णुता  और वेग से गुजर जाती है  बस्ती के ऊपर से तटबंधन तोड़ते हुए  बस्ती की कालिमा  उसी को सौंपते हुए निस्वार्थ प्रेम की तलाश में । सुनीता बिश्नोलिया ©®

दीपावली

हमारी प्यारी छात्रा वैष्णवी द्वारा लिखित....  🌹🌹🌹🌹 वैष्णवी  आओ दीप जलाए । कोरोन को मार भगाए । इस भीषण समय से लड़ दिखाए । आओ दीप जलाए। छोड़ पुराने समय को , हम आगे बढ़ जाए । कुछ बदलावों के साथ , अपना जीवन फिर बढ़ाये। आओ दीप जलाए। अपनी सेहत का ध्यान रख, हम बाहर काम पर जाए । हाथ धोना, मास्क व दूरी को, अपने जीवन का साथी बनाए। आओ दीप जलाए। वैष्णवी __*** दीपावली-दोहे मंगल हो दीपावली,सब कारज हों सिद्ध। हर घर में रोनक रहे,हर घर हो समृद्ध।१। धरा-गगन के बीच में,मची अजब इक होड़। देख धरा पे रौशनी,नभ ने दी जिद छोड़।२। तम-उजियाले मध्य भी,छिड़ी देखिए जंग। विजय उजाले को मिली,अहम तिमिर का भंग।३। दिवस-दिवाली आ गया,मिटा तिमिर का राज। हर कोने में बज रहे,मधुरिम-मंगल साज।४। आज गगन का चंद्र भी,छुपा गगन में जान । धरती अपने रूप पर, देखो करे गुमान ।५। कण-कण में विश्वास है,पग-पग हुआ उजास। लो धरती पर आज तो,हुआ स्वर्ग आभास।६। माटी का इक दीप ही,लड़ता तम से रोज। रोज मने दीपावली,इस घर खिले सरोज।७। जगमग जलते दीप हो,खुशियाँ मिले अपार। अंधकार का नाश हो,उजला हो संसार।८। हिलमिल कर सब ज