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#सीता की शक्ति

# सीता की शक्ति उस तृण की ताकत सिद्ध तो कर, उठ.. उठ.! सीता अब युद्ध तो कर। तब गिद्ध ने रक्षण की सोची , अब गिद्ध ने देह तेरी नोची।                       हिम्मत ना अपनी हार के चल,                       उस पापी का प्रतिकार तो कर,                        हे सीता अब लाचार ना  बन,                        अपने शत्रु का संहार तू कर।   लंका में तब एक रावण था,   हर तरफ आज वो दुष्ट बसा।   उस तिनके को हथियार बना,   ना डर सीता तलवार उठा।                        गर फिर आए वो बन भिक्षु,                        नख से नोचन लेना चक्षु।                        नाजुक ना इसबार तू बन,                        वध उसका कर तलवार को चुन। नारी का शोषण करतों का भूतल से अब व्यभिचार मिटा, जन उद्धार के खातिर  दुष्टों का उठ..उठ सीता तू पाप मिटा।                  कुदृष्टि डालते रावण को अपना,                  शक्ति स्वरूपा रूप दिखा।                                      कोमल ना अब सीता है,                   नर को ये अहसास दिला। तब हनुमान ने मात कहा तुझको, तू बोल आज हनुमान कहाँ। लक्ष्मण रेखा की लाज

ताज और यमुना का दर्द

               ताज और यमुना का दर्द बेबस  बूढी अबला सी,बीमार पड़ी यमुना देखी संकोच से सिमटी नारी सी,पीड़ा से भरी यमुना देखी, कीचड़ से सनी  साड़ी पहने,दुर्गंध भरी यमुना  देखी अपनों के दिए घावों को लिए,घायल हो चली यमुना देखी, ताज सजाए सिर पर जो,पानी को तरसती यमुना देखी गोदी के हर इक पंछी पर,ममता को लुटाती यमुना देखी, ताज की सुन्दरता उससे,इस बात से वो अंजान दिखी,          अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए,चुपचाप पड़ी यमुना देखी, उधर रो रही  है यमुना  और इधर सिसकता ताज कहता हमसे खतरे में  है ,माँ यमुना की लाज, खुद के मट मैले  तन से ,है दाग हटाता  ताज गर्व से फिर भी शीश उठाए, खड़ा शान से ताज। आएगा फिर कोई शाहजहाँ करके बुलन्द आवाज फिर  रूप हमारा  लोटाएगा, हमसे कहता है ये ताज,। सुनीता बिश्नोलिया

भूख

#भूख कोई नाम का भूखा जग में,                  और कोई दाम का भूखा, आत्म-प्रशंसा की भूख किसी को,                  और कोई है पद का भूखा। इतना कुछ खा कर भी उनकी,                   जिह्वा का बोल है रुखा। पेट की ज्वाल भी तड़पाती,                  और सबको नाच नचाती। भूख ना देखे छप्पन भोग,                   भूख तो खुद ही बड़ा है रोग। अंतड़ियों से आह निकलती,                  हड्डी भी देह से बाहर निकलती। भूख के मारे वो बेचारे                    ले लिया जमाने से है बैर, सूखी रोटी पर टूट पड़े,                 समझ उसे व्यंजन का ढेर। भूख ना सही गलत पहचाने,               बस पेट की ज्वाल को चले बुझाने। भूखा बनाती चोर-लुटेरा,               ये कारज करता कोई हाय बेचारा। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

युद्ध की बातें करने वालो

#युद्ध की बातें करने वालो युद्ध की बातें  करने  वालो  , घर  अपने  में  रहने वालो , सीमा  पर  जाकर  तो  देखो , जीवन  उनका  जीकर  देखो .। अपने  घर को छोडा  है ,हर मुशकिल  का रुख  मोडा  है , देश की  आन  बचाने  को ,अपनों के सपने को पीछे छोड़ा है। दिन रात खड़े रहते हैं,जो अपने सीनों को ताने, भारत भू की रक्षा में ,हर सुख को बौना माने। ओ युद्ध की बातें करने वालो,सुख का जीवन जीने वालो........ युद्ध से हमें  बचाने को ,रातों को पहरा देते हैं, अमन का पाठ पढ़ाते सैनिक,खुद ही पत्थर खाते हैं। लड़ जाते हो तुम इक दूजे से,हर सुख को ही पा लेने को सीने पे गोली खाने को, तैयार है ये मर जाने को । दुश्मन की नापाक  हरकतें ,हम से ज्यादा ये जानें, आतंकी के हर हाव भाव को वीर हमारे पहचानें। ओ युद्ध की बातें करने वालो,रातों को सुख से सोने वालो....... हम इन को क्या फ़र्ज सिखाते,क्यों युद्ध हेतु उकसाते हैं ये अपनी मर्जी से जाते हैं,दुश्मन को सबक सिखाते हैं। द्दुश्मन के गलत इरादों को ,बिल्कुल भी सह ना पातेे हैं पुख्ता इलाज करने को घर से,सिर दुश्मन का ले आते हैं। युद्ध-युद्ध ना नाम रटो तुम,शांति का आ

अहंकार

#अहंकार लोभ-मोह-मद-अहंकार में डूब रहा इंसान, तृष्णा की तृप्ति के  हेतु करता धरती को शमशान । स्वर्ण महल में रहते सारे अहंकार के मारे, अहंकार के कारण इनके गूंज रहे जयकारे। अपने अहम् में जीते हैं सब खुद को कहें खुदा रे पर अहंकार से कोई  न जीता बड़े-बड़े भी हारे। क्या मिट्टी की काया को कोई संग में ले जा पाया, सृष्टि के नियम के आगे  'दंभ ' रावण का भी ना टिक पाया। सागर की उत्ताल-तरंगे, अहं में गरज रहीं थीं, राम के क्रोध के कारण अब चरणों में आन गिरी थीं। भूल गया जमीं अपनी को अहंकार  में पड़कर, अहंकार के कारण फिर वो आन गिरा जमीं पर । धन  की गांठ  न संग जाएगी सुन ओ!अहं के मारे झूठी  शान में बजते रहते थोथे चने बिचारे। त्याग तू मन जा मैल समझ जा ओ!मानुष दुखियारे, अहंकार से कोई ना जीता बड़े-बड़े भी  हारे। #सुनीता बिश्नोलिया

छोटू

#छोटू 'छोटू...चाय नहीं बनी बेटा'..'अभी लाया' मास्टर जी कहते हुए छोटू चाय का कप लेकर आता है और मास्टर जी को पकड़ाता है। चाय पीते हुए मास्टर जी कहते हैं..छोटू जल्दी चल देर हो जाएगी..मोहन भेज इसे ..मास्टरजी मैंने कहाँ रोका है..मैंने तो इसे पाँच बजे ही जगा कर पढने बिठा दिया था...और बाद में होटल के काम में मदद  की है इसने ...अब देखिए ये तैयार है ।छोटू बस्ता लेकर आ जाता है...चलें मास्टर जी..नहीं तो मोहन भैया को कोई काम याद आ जाएगा..।मास्टर जी ने छोटू का कान पकड़ते हुए कहा...नहीं बेटा मेरा मोहन ऐसा नहीं है क्योकि ये भी कभी छोटू था ...बड़ा तो आज हुआ है..मन से बड़ा,ये अपनी होटल पर हर दूसरे साल एक छोटू को ले आता  है...ये उसे पढ़ाता-लिखाता है..जैसे तुझे। मास्टर जी मुझे बहुत ख़ुशी होती है...जब मेरा हर छोटू यहाँ काम के साथ पढ़-लिख कर बड़ा होता है...पता है मास्टर जी मुझ अनाथ के कितने भाई हैं..अब....सब मोहन भईया-मोहन भईया कहते रहते हैं,किसी भी होटल का छोटू आज तक बड़ा नहीं हुआ एक जाता है दूसरा आ जाता है पर देखो मैं बड़ा हो गया मेरा हर छोटू यहीं पढ़ कर बड़ा भी होता है पाँव पर भी खड़ा होता है ।मेर

भिक्षा

#भिक्षा (आस-बिखरे सत्य से समेटे कुछ आखर..) विनय की माँ फेरों से ठीक पहले विनय और उसके पिताजी पर चिल्लाती है.. मैंने  आपसे पहले ही कहा था कि ये लड़की मेरे बेटे के लिए ठीक नहीं...इसका चरित्र..इतना सुनते ही राधा बहन अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए बोली...ले जाओ बारात वापस लेकिन..अब अगर एक शब्द भी मेरी बेटी के खिलाफ निकाला तो तुम लोगों की खैर नहीं...तुम्हारी माँगे पूरी नहीं करेंगे तो तुम मेरी बेटी पर कलंक लगाओगे...मुझे किसी बात का डर नहीं जाओ जहाँ भी मेरी बेटी की तस्वीर छापनी है छपवा दो...और सुमन के पिताजी ने कहा..मुझे अपनी सुमन पर विश्वास है..किसी और के विश्वास की जरूरत नहीं....तुम जैसे लालची लोगों से मुझे अपनी बेटी के लिए चरित्र प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं...जाओ वरना अब पुलिस ही तुम लोगों  को ले जाएगी। आँखों में आँसू लिए ..माता-पिता के डर से चुपचाप बैठी सुमन को भी माँ की बातों से  जोश आ गया और वो भी खड़ी होकर बोलने लगी...विनय चले जाओ यहाँ से..मुझसे गलती हुई जो मैंने तुम से प्यार किया....मेरे माता-पिता ना चाहते हुए भी इस रिश्ते के लिए तैयार हुए....और तुम लोग क्या निकले...लालची- लोभी भि