नन्हे पंछी उन्मुक्त ह्रदय स्वप्निल आँखें , उड़ चले पंछी ये खोल के पाँखें। नील गगन की सीमा तोड़ , चले ये खग जाने किस ओर। साथ सखा क्रीड़ातुर मन प्रकृति लुटाती अपनापन । हरित वसुधा राह सजीली , पवन बह रही है गर्वीली। उच्च लक्ष्य के साधक, लो चले क्षितिज को छूने, तिमिर धरा का हरने , चले सूरज से ऊर्जा लाने। नव-उमंग और विलसित दृग, विश्वास भरे-भरते हैं डग । नूतन कलियाँ लो पुष्प सी खिल, आज चली हैं,ये हिलमिल। संसार में सम सौरभ फैलेगा, राह में जलते-चले हैं ये दीपक #सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia