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इंतजार के पल

#इंतजार के पल मैं नियरे बैठी गहरे सागर,            फिर भी खाली है मन गागर। मन में उठती उन्माद लहर,            तटबंधन तोड़ चली आतुर। उद्वेग का झरना बहता मन,            शशि किरणें भी झुलसाए तन। शांत तरु भी ऋषियों सम,            अँधियारे के निशा पहन वसन। ह्रदय में अगन लगाय रही,            विरहन की पीड़ बढाय रही। पद-तल छूता है ये जलधि,             बीत रही जीवन अवधि। अवगाहन करता मेरा जिया,             प्रदीप्त ह्रदय में प्रेम-दिया। शंकाओं के ज्वार उठे            मेरे चित्त से सारेे स्वप्न मिटे। धराध्वस्त वो महल हुआ,           खंडहर में बैठी करूं दुआ। #सुनीता बिश्नोलिया                     

नव वर्ष

#31 दिसंबर 2017 #नववर्ष नव-वर्ष हर्ष लाएगा,ये उम्मीद हृदय में पलती है, कोमल मन की सच्ची आशा,सदा-सर्वदा फलती है। तोड़ चलें प्राचीन ये सारी,परम्परा हर भारी-भारी, रचने को इतिहास ह्रदय से,आज उठी है एक चिंगारी। दिल को गहरे कुछ घाव ये जाते,दे गया पुराना साल, लापरवाही छोड़ गई ,दिल में जलते हुए कई सवाल। आओ हम भी प्रण लें सारे ,मिलकर के इस वर्ष, हर चेहरा पुलकित होगा, और हर चेहरे पे होगा हर्ष। ढोंगी और भ्रष्टाचारी की ,कमर तोड़ मानेंगे, देश के रक्षा -यज्ञ में हम भी, समिधाएँ डालेंगे। विकास के पहिए को ,मिलकर हम राह दिखाएँगे, मार्ग में आते अवरोधक ,मिलकर ही हटाएँगे। संसाधनों का उचित हो वितरण,और उपयोग हो सीमित, हर भूखे का उदर तृप्त हो, बस इतना हो उनको अर्जित। मूल्यवृद्धि कम करने को हो ,जमाखोरों पर वार, नए साल में बरसे खुशियाँ , ऐसा हो व्यापार। स्वच्छंद पंछी की भाँति ,हर बिटिया भी उड़े आकाश, डर-भय ना हो उसे कहीं, राह में सुरक्षा का हो प्रकाश। ऐसी हो नव वर्ष में ईश्वर धरा भारती माँ की, विजय सदा वरण करे,उतारे आरती वो माँ की। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

नन्हे पंछी

नन्हे पंछी उन्मुक्त ह्रदय स्वप्निल आँखें ,             उड़ चले पंछी ये खोल के पाँखें। नील गगन की सीमा तोड़ ,              चले ये खग जाने किस ओर। साथ सखा क्रीड़ातुर मन               प्रकृति लुटाती अपनापन । हरित वसुधा राह सजीली ,              पवन बह रही है  गर्वीली। उच्च लक्ष्य के साधक,                 लो चले क्षितिज को छूने, तिमिर धरा का हरने ,                 चले सूरज से ऊर्जा लाने। नव-उमंग और विलसित दृग,                 विश्वास भरे-भरते हैं डग । नूतन कलियाँ लो पुष्प सी खिल,                 आज चली हैं,ये हिलमिल। संसार में सम सौरभ फैलेगा,                  राह में जलते-चले हैं ये दीपक #सुनीता बिश्नोलिया

#जाधव

#जाधव पाकिस्तान की जेल में बंद पति से मिलने की आशा में मिसेज जाधव ने अपनी सासू माँ के साथ आखिर कार पाकिस्तान के उस मुलाकात कक्ष के अंदर धड़कते दिल से कदम रखा।इस उम्मीद से ,इस सपने से कि पति के ह्रदय पर सिर रखकर उन्हें मजबूती प्रदान करेगी,उनके ह्रदय में आशा का संचार करेगी कि आप शीघ्र ही अपने घर आओगे। माँ भी बेटे को गले से लगाने के लिए आतुर...लेकिन ये क्या ? सामने का दृश्य देखकर सास-बहू ने कस कर एक-दूसरे का हाथ थाम लिया। माँ को बेटा दिखा,पत्नी को पति, लेकिन बीच में काँच की दीवार दोनों फूट-फूट कर रोना चाहती थीं लेकिन नहीं रो पाई वो नहीं चाहती थीं कि जाधव उनको देख कर दुखी हो। कुलभूषण भी माँ और पत्नी को देखकर खुश होने का प्रयास करते हैं...पर सन्न हो जाता है,पत्नी का सूना माथा,खाली माँग,मंगलसूत्र रहित गला देखकर और तो और नंगे पैर। माँ का ह्रदय में बेटे को गले से लगाने के लिए स्नेह और ममता का सागर हिलोरे ले रहा था,वहीं बेटा भी माँ के आँचल में छुप कर पीड़ा और दर्द को छुपाना चाहता था। लेकिन तीनों ही सुन्न हैं ,तीनो ही एक-दूसरे से अपनी पीड़ा, अपना दर्द छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं,एक-दूसरे को

हड़ताली डाक्टर्स

#मुझे शिकायत है हाँ...मुझे शिकायत है..शिकायत है उस भगवान से जो जब मन चाहे रूठ जाता है....रूठ जाता है उन भक्तों से उस समय भी जब इनको उस अद्भुत शक्ति की..उस हाथ की अति आवश्यकता होती है...उस समय वो मात्र साधारण हाथ नहीं.. साक्षात् ईश्वर का हाथ होता है जो स्वयं ईश्वर सम वो ईश्वर निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर जरूरत मंद पर रखने हेतु मन कर देता है,मना कर देता है..रक्त से लथपथ घायल व्यक्ति का इलाज करने से....छुप जाता है भाग जाता है अपने कर्त्तव्य से मुख मोड़ कर...! वो भूल जाता है ...कि मैंने सच्चे हृदय से ताउम्र दीन-दुखियों,मृतप्राय और घायल व्यक्तियों की सेवा की शपथ ली थी। मुझे शिकायत है..कुछ ऐसे डॉक्टर समाज से जो ये भूल जाते कि उन्हें..उनके माता-पिता ने इतनी महँगी शिक्षा किस उद्देश्य से दिलवाई थी...क्या इसलिए कि वो अपनी इस शिक्षा पर अहंकार कर सके...साधारण जन के धन से महँगे जीवन का मूल्य ना जान सके। कुछ चिकित्सकों को छोड़ दें तो अधिकांश ने तो कर्त्तव्य को व्यवसाय ही बना लिया है..ऐसा पहली बार नहीं हुआ...कई बार देखा है....अपनी जरुरी और गैर जरुरी माँगों को मनवाने के लिए हड़ताल कर सरकार

#अटल बिहारी

#अटल बिहारी.....(मेरी कविता का एक अंश) नमन अटल.. अटल स्वप्न नयनों में लेके,मधुर कविता गाता देश-प्रेम का जज्बा दिल में,मुख उसका बतलाता । निडर ऐसा लापरवाह ,अंजाम से ना घबराता पथ के पत्थर को मार के ठोकर,आगे वो बढ़ जाता । निज भाषा के शब्दों को , विश्व मंच पे था बिखराया विश्व-पटल पर खड़ा अटल वो,मेघ के सम था गरजा । पोकरण या कारगिल हो ,शक्ति सिंह सी दिखलाता। दुश्मन को  लाचार बनाकर,नाकों चने चने चबवाता। राजनीति का चतुर खिलाडी,शब्दों के तीर सुनहले, खुद उलझन में फंसता पर,परहित हर द्वार थे खोले। कथनी करनी एक सामान, आँखों में बस हिंदुस्तान, अटल वचन वाला वो सिपाही,अटल बिहारी है महान। अटल-फैसला,अटल-ह्रदय से, लेना तब मज़बूरी थी, गद्दारों को सबक सिखाने , की पूरी तैयारी थी। तैयार खड़े थे सीमा पर,तोपों की गर्जन थी भारी थी, सबक सिखाया दुश्मन को,पाक को दी सीख करारी थी। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

श्रृंगार

# हाइकु---श्रृंगार (सृष्टि से श्रृंगार) सृष्टि-श्रृंगार यौवन की गागर डूबी सागर                     चन्दन टीका                   उबटन पुष्पों से                    माणक माला सूर्य सी आभा गौरी के मुख पर बिंदिया-तारे                            घटा-काजल                          अनुराग-अंचल                            दामिनी-गोटा मोती-मुद्रिका पुष्प गुम्फित-केश लताएँ-साड़ी                            साँस-संवाद                         अम्बर-चुनरिया                             मेरा-श्रृंगार अधर-लाल सुर्ख-मुखमंडल नवल-चन्द्रिका                            बिन नथ के                          अधूरा है श्रृंगार                            सुहाग-चिन्ह गजरा-फूल नुपुर-खनकते पाँव-पैंजनी                             नाजुक-कटि                            करधनी-सुहाए                              बिछिया-गेंदा सौलह हैं श्रृंगार सजन तेरा प्यार हर जन्म में। #सुनीता बिश्नोलिया