#इंतजार के पल मैं नियरे बैठी गहरे सागर, फिर भी खाली है मन गागर। मन में उठती उन्माद लहर, तटबंधन तोड़ चली आतुर। उद्वेग का झरना बहता मन, शशि किरणें भी झुलसाए तन। शांत तरु भी ऋषियों सम, अँधियारे के निशा पहन वसन। ह्रदय में अगन लगाय रही, विरहन की पीड़ बढाय रही। पद-तल छूता है ये जलधि, बीत रही जीवन अवधि। अवगाहन करता मेरा जिया, प्रदीप्त ह्रदय में प्रेम-दिया। शंकाओं के ज्वार उठे मेरे चित्त से सारेे स्वप्न मिटे। धराध्वस्त वो महल हुआ, खंडहर में बैठी करूं दुआ। #सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia