सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

तेरे बिन अधूरी

#तेरे बिन अधूरी है अधूरी तेरे बिन,मेरी ये काया। सोच सपने सुहाने ये मन मुस्कुराया जीवन में हर स्वप्न ,संग तेरे सजाया घनी धूप में तुम ही,हो मेरी छाया हर बुरे दौर में ,एक दूजे का साया तेरे साथ मिल,फर्ज हर है निभाया। तुम्ही ने मुझे 'रस्ता' सीधा सुझाया भी कहने दो ,मौका है आया मैं सबसे सुखी 'राज' ,तुमको जो पाया मैं जो रूठी तुम्हीं ने है मुझको मनाया। शरमा के मन ,पुष्प सा है मेरा मुस्कुराया न मन में कोई गम ,न डर भी समाया मैं बैठी हूँ 'निर्भय',जो तुम मेरा साया एक हँसी पे ,हर सुख था लुटाया मुझको कहने दो.. तुम बिन है आधी सी काय मैं तो भोली थी, जीना तुमने सिखाया असली संसार से,तुमने मुझको मिलाया आज बैठी तेरे साथ, गर्व मुझमे समाया तुम्ही 'प्राण' मेरे...'प्रिया ' तुमने बनाया कैसे भूलूंगी तूने ,हर वादा निभाया, राह काँटों की पे फूल, तूने बिछाया। मेरी खुशियों का हर 'राज'तुम मे

विज्ञान-मनहर घनाक्षरी

मनहर घनाक्षरी #विज्ञान 8,8,8,7 पर यति 31 वर्ण, अंत गुरु एक कोशिश.... हर पथ पर बढ़ा, विज्ञान रथ पे चढ़ा मनुज आगे है बढ़ा, बिज्ञान भाग्य लिखे। सीधा बड़ा मनुष्य है सुलझा रहा रहस्य है, सच्चे साथी सदृश्य है, विज्ञान ज्ञान सीखें। अनूप रूप शक्ति सा, है ठंडी छाँव धूप सा। रोद्र शिव स्वरूप सा, अद्भुत ज्ञान देखें। धार ज्यों तलवार है, तेज ज्यों तलवार है। ये उन्नति का द्वार है, विशिष्ट ज्ञान सीखें। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

₹रंगों का संसार

रंगों का संसार हजारों रंग बिखरे हैं जमीं से आसमां तक, मिलन धरती गगन का रंग दिखलाते हैं नटखट। उमड़ती है लहर चंचल निकल सागर के दिल से, जमीं सूखी हुई खुश आज फिर सागर से मिलके। आसमां ज्यों जमीं की गोद में सर को झुकाए, जमीं खुश है गगन की प्रीत को मन में छुपाए। मिलन का गीत गुनगुना रही सागर की लहरें, मचलती तोड़ने प्राचीर और दुनिया के पहरे। पाषण भी खंडित हुआ लहरों से मिलके, यही लहरें छिपा रखती हैं,तूफां अपने दिल के।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कह मुकरी

#कह मुकरी वो आवे मन हर्षावे, मन में सखी मेरे नाचे मोर, भावे जिया को उसका शोर। ऐ सखी साजन...ना सखी बादल। वो आवे मन डर जावे, तन काँपे ना निकले बोल, मन में चलते कितने बोल। क्यों सखी साजन.....न सखी चोर। वो आवे जीना दुश्वार, नींद ना आवै जाये चैन करार आँखें भी करें उसका बखान, ऐ सखी साजन......न सखी बुखार। वो छुए तो तन सिहर उठे, प्यास जिया की बुझ जाए, मन में आवै एक संतोष, क्यों सखी साजन......ना सखी पानी। वो छू ले तो अगन लगे, तन बदन में जलन लगे अपने ताप से कर दे खाक। ऐ सखी साजन...ना सखी आग। # #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

यज्ञ

#-यज्ञ मन पावन मन की इच्छाएँ, मन के धुलते कपट-क्लेश, 'यज्ञ' में जल जाते मानव के, पाप और आपस के द्वेष। मात-तात सा आराधक कोई, नहीं उपासक धरती पर, अखंड 'यज्ञ' करते हित-संतति, हवन की भाँति खुद जलकर। वैराग्य वृत्ति वाला परिमल, वो छोड़ पुष्प उत्सुक होकर, 'यज्ञ' देशहित करते नित, सीमा पर लाल खड़े होकर। आत्मविस्मृत-आत्मतेज से, भुजबल से आलौकिक होकर, 'यज्ञ' वो करते बोझा ढोकर , धूप में जल दिनभर खपकर। उदात्त-ह्रदय सरित्पति सम, स्निग्ध-शांत सुंदर वाणी, शिक्षा 'यज्ञ' में डाल रहे हैं, समिधाएँ गुरुवर पाणि। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#उलझन

#उलझन मन में उलझन कृष्ण है, और गहरा अंतर्द्वंद, मूरत तेरी को छोड़ कन्हैया, क्या करलूँ आँखें बंद। कान्हा तेरा नाम जपूँ, दुनिया को आए न रास, उलझन में बन मीरा बन भटकूँ , मोहे है तुझसे ही आस। नाम तेरी की दीवानी, रटती हूँ सुबहा-शाम, निश्छल निर्मल मेरा मन, उलझन में भगवान। सास-ननदिया ताने मारे, जग करता बदनाम, पति ने मुख मोसे कान्हा मोड़ा, उलझन ये हरो घनश्याम। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

हरिवंश राय बच्चन

#हरिवंश राय बच्चन सन सत्ताइस के शुभ दिवस, चमका एक सितारा था, ये जग उसको प्यारा था, वो जग का राज दुलारा था। मन में उपजे उन्माद विकट कवि छायावादी हुए प्रकट लेकर कविता में तरुणाई, हाला भी निकल बाहर आई। अलंकार कुछ अधिक हुए, वो 'पदम्' झुका पाकर के पद्म। विद्या का दान महान कहा, आचरण न रखा कभी छद्म। वो कोटर का नन्हा पंछी कभी न टूटा तूफानों से, साथी पंछी राह में छूटा, फिर खड़े हुए लड़ बाधा से। खुद न कभी छलकाए जाम, जग को दिखाया हाला धाम। औरों के जीवन में ज्योति, भरने की कसम खा बैठे थे, राह पथिक को दिखलाने, खुद बनके सितारा बैठे थे। पाकर के वो 'अमित-अजित' तनय हर्षाए हुए धन्य-धन्य। #सुनीता बिश्नोलिया

सूर्योदय

#सूर्योदय भानू है ज्यों कनक-घट, राही हैं हम गए ठिठक, स्वर्ण सी ये रश्मियाँ, आच्छादित धरा घने विटप। क्षितिज में प्रतीत है उदित, उत्तरोत्तर ताप अपरिमित, अभिभूत है नयन सभी, दिनकर को देख अवतरित। अद्घोषक उषा काल का, अंशुमाली आ रहा है, विचरण करे गगन में ये, सृष्टि को जगा रहे। पथिक हैं पथ पर खड़े, सूर्य -रोशनी पाकर बढ़े, माना घना ये ताप है, राह सूरज दिखाता आप है। नयनाभिराम दृश्य को,दृग , दृग भर रहे नयन में हैं, दर्शनीय सूर्य-रश्मियाँ, आह्लाद सबके मन में है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

माँ

#माँ जीवन झोंका चूल्हे में, चक्की के पाटों बीच फँसी, सामंजस्य माँ का देखो, मुश्किल सहकर भी रोज हँसी। फूँक-फूँक कर चूल्हे को, आँखें अविरल बहती हैं, लेकिन मेरी माँ हाथों से चक्की, पीस के भी हर्षाती हैं। हर दाने के साथ श्वेद की, बूँदें माँ की बहती हैं, चुपचाप मेरी माँ चक्की पर व्यायाम नियम से करतीं हैं। होले से माँ के मुख से, कुछ शब्द बहा करते हैं, संगीत घर्र-घर्र चक्की के, दो पाट दिया करते हैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

पन्नाधाय की ममता

#माँ की ममता (वात्सल्य रस) राजस्थान में की वीरमाता पन्ना धाय ने राणा उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया था...उसी पर आधारित मेरी राजस्थानी भाषा में लिखी गई कविता...तथा ..पुन:हिंदी में लिखित यही कविता... ( कालजे की कोर नै माता, देख-देख मुस्कावै है, छाती सूँ दूध री नदी बहवै,टाबर सूँ जद बतलावै है। कान्हा की सी देख के सूरत,या माता यूँ इतरावै है, सोच काल री बात या माता, आँख्यां मैं आँसू ल्यावै है। फर्ज पै वारण जाती माँ ,उनै हिवड़ा से चिपकावै है, एक रात रै खातिर 'दीप' जल्यो,वोअब बुझण नै जावै है। लाड लड़ावै घणा बावली, बलिदान करण नै जावै प्रेम रो सागर छलकाती,जीवण भर रो नेह लुटावै * * * * * * * यूँ ही नहीं संसार में, माँ को पूजा जाता है विपदा में मुख पे नाम प्रथम, माँ ही का तो आता है। मन की बात बताउंगी,एक भूली कथा सुनाऊंगी, पुत्र को धर्म पे किया अर्पण,उस धर्मा की बात बताऊँगी। जौहर की गाथा याद हमें मीरा के पद भी ना भूले, पुन:स्मृति में भरलो,पन्नाधाय को जो थे भूल चले। अपने ह्रदय के टुकड़े को माँ,देख-देख मु

मेरी माँ

# मेरी माँ वो दिन मैं ना भूल सकूंगी,जब माँ से लम्बी बात हुई, माँ ने जो ना कभी कही थी, क्यों वो हर एक बात कही। माँ ने मुझसे कहा फ़ोन पर ,जल्दी मिलने को आ जाना, याद बहुत आती है बेटी,मुँह अपना दिखला जाना। दूर बहुत बैठी है मुझसे, हो गयी बड़ी मैंने माना, अपने हर एक काम को बेटा,सदा यूँ ही करते जाना। पर बिटिया मेरी मिलने मुझसे , जल्दी से तुम आ जाना साथ मेरे नाती-नातिन को,भी तुम जरुर से ले आना। ऐसा माँ ना कहती थी, पर प्यार मुझे बहुत करती थी, वो चाहती थीं बेटी मेरी ,अपने घर में ही सुखी रहे,। अपनी सुविधा से आकर ,उनसे मिलती जुलती सदा रहे। बच्चों की थी तभी परीक्षा, माँ को मैंने समझाया था, ये सुनकर भी माँ ने मुझको,जल्दी आने को मनाया था। उस दिन माँ ने मिलने की ,इतनी जिद कर डाली थी, मैं भी दस दिनों के बाद उनसे मिलने को मानी थी। नहीं पता था माँ से मेरी ,ये थी अंतिम बात, माँ मेरी मुझे नहीं मिलेंगी, फिर न होगा उनका साथ। माँ का साया हमसे छीना ,उफ़ निर्मम ह्रदयाघात, यही थी माँ से मेरी लंबी, और अंतिम बात। काश! मैं उस दिन आ जाती ,माँ की गोदी में सो जाती