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श्रद्धांजलि - अमृतसर ट्रेन हादसे के मृतकों को 🙏🙏

अमृतसर श्रद्धांजलि 19 अक्टूबर 2018 अमृतसर, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक विजय दशमी के दिन, राम के प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना से दम्भी रावण के गर्व को धू धू कर जलता देखने का उत्साह मन लिए अपने परिवार के साथ हजारों की संख्या में लोग घर बाहर के काम निपटा कर जोड़ा फाटक एकत्र हो गए। भला भारत में कुछ को छोड़कर कोई मुख्य अतिथि समय पर आया है जो इस बार आता खैर मुख्य अतिथि के आगमन के पश्चात् राम ने जलती हुई तीर रावण की ओर छोड़ी, तीर सीधे रावण की नाभि में लगी रावण कराह उठा, उसका अहम जल उठा। उसका ह्रदय अपने ही ह्रदय में छिपे बारूद से फट गया। उसका पहाड़ सा शरीर घोर गर्जना  करता हुआ धराशायी होने लगा। परिवार के साथ उसे देखने आए लोगों का भी जोश चरम पर था।  चहूँ ओर राम  के जयकारे गूंज रहे थे। बस, रावण की चित्कार और राम के जयकारों के अतिरिक्त वहाँ और कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी,  भक्त ये दृश्य देखकर आनंदित थे.................. अचानक काल की क्रूर गति से आगे बढ़ती ट्रेन, घुप्प अँधेरे में पटरियों पर खडे लोगो को काटती, रौंदती, चली गई    उत्साह और ख़ुशी मातम में बदल गई, मौत के तांडव का ऐसा

मेरे पिता

मेरे पिता---मेरे गुरु स्नेह पिता का ऐसा था,न सखा कोई सम उनके था थे वो  मेरे प्रथम गुरु ,                    शिक्षा मेरी हुई वहीं शुरू विद्वान मनीषी ज्ञानी थे,विद्या के वो महादानी थे        मुँह पर सरस्वती का वास रहा,                            शिक्षा को समर्पित हर साँस रहा... ईश्वर के थे परम भक्त,रहते थे जैसे एक संत         पिता  मेरे वो थे प्यारे,                       शिष्यों के गुरूजी वो न्यारे, गुरु की पदवी शहर ने दी,शिक्षा सबको हर पहर ही दी ।             था देशाटन का शोक बड़ा,                         प्राकृतिक सोंदर्य का रंग चढ़ा, दीनों के दुख करते थे विकल,मन उनका पावन निश्चल ।             मुख से छंद  बरसते थे,                      औरों का भला  कर हँसते थे। वृक्षारोपण किया सदा,कहते वृक्ष सदा हरते विपदा।              पहाड़ों की ऊँचाई नापी,                          माँ संग सदा उनके जाती। माँ चली गई जब हमको छोड़,दुख ले लीन्हे तात ने ओढ़।          जब शक्ति हाथ से छूट गई,                               हिम्मत भी उनकी टूट गई।    धीरे -धीरे फिर खड़े हुए ,वो कलम उठाकर प

किस्मत - कर्म और भाग्य

अच्छे-बुरे के होने को,मनुज 'भाग्य'बतलाता है, मनचाहा नहीं मिलने पर,किस्मत की दुहाई देता है। मनुज तुम्हारे हाथों में भाग्य का चाँद चमकता है, कर्म से मिलता है इच्छित,ईश्वर का गणित ये कहता है। श्रम से डरते मानव की किस्मत का सितारा सोता है, अंधियारी गलियों 'बोझा',अंधविश्वास का ढोता है। मानव की बांहों की ताकत को,ईश्वर तक ने माना है, 'किस्मत का धनी' है वो इंसा,जिसने इस मर्म को जाना है। भाग्य तेरा क्यों कर फूटा,लो..आज मैं तुम्हें बताल दूँ, भाग्य से तुमको लड़ना,आओ...मैं सिखला दूँ। भाग्य के नाज घनेरे हैं, कब तक तुझको दुत्कारेगा गर कर्म करेगा आगे बढ़ तो भाग्य भी चरण पखारेगा। भाग्य के बल पर नहीं किसी ने,कर्म के बल पर सब पाया धरती से अम्बर तक मानव, भाग्य बदलता है आया। पुष्प खिला  माली की मेहनत,मकरंद तभी छिटकाया। किस्मत का टूटा कहर, कृषक का हरा खेत मुरझाया, उम्म्मीद का दामन न छोड़ा,,वो भाग्य से जा टकराया, हाथों के दम पर उसने फिर,कर्म का पुष्प खिलाया। बार -बार चींटी की किस्मत,नीचे उसे उसे गिराती है, कर्मठ चींटी  फिर उठकर,मंजिल को पा ही लेती है। कि

फूल

जोड़ता दिल को ये दिल से फूल कहता जमाना है, प्यार का ये बना साखी,खिलाकर इसको रखना है। मुहब्बत की निशानी हूँ,सुर्ख खुद फूल है कहता, वादा तुमको निभाना है,वादा मुझको निभाना है। हिना हाथों की ये कहती ,सजन तुम हो हजारों में, रखना फूलों सा तुम मुझको,सजाना तुम बहारों में। बड़ा नाजुक है ये बंधन सजन जो तुम से जोड़ा है, निभाना हमको ये नाता, जमाने की दीवारों में।

भूख

#कहानी-भूख जिधर नजर दौड़ाओ हर तरफ हरियाली सीताफल,केले अमरुद ,आम के वृक्षों से हरित उड़ीसा का छोटा सा ग्राम।   केशुभाई अपने छोटे से परिवार के साथ इसी गाँव में रहता हैं। कृशकाय केशूभाई चिपके गालों से हड्डियाँ झांक रहीं हैं,आँखों के नीचे कालिमा और लगभग धँसी हुई ।गरीबी की मार के कारण मुँह से दांत भी बाहर निकल आए।ईमानदार इतना कि मालिक भाऊ साहब कई बार सबकुछ इसके सहारे छोड़ जाते हैं। भाऊ साहब के बागों में ही तो रखवाली का काम करता था। केसूभाई। बदले में उसे दो वक्त धान मिल जाता जिससे आधा-अधूरा पेट भर जाता और पाँच सौ ₹ मासिक पगार भी मिलती । बीवी भी दो तीन घरों में साफ-सफाई और बर्तन धोने का काम करती ।थोड़े धान और कुछ पैसे वो भी कमा लेती । ऐसे ही गुजारा चल रहा था।   लेकिन इस बार बारिश न के बराबर हुई बगीचों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसकी रखवाली के भाऊ साहब को चौकीदार रखना पड़े और फसल अच्छी न होने के कारण केशू की बीवी को भी घरों में काम मिलना बंद हो गया। अब तो उनके खाने के लाले पड़ गए ,रात को रुखा -सूखा मिल जाता तो दिन को नहीं..दिन को खाया तो रात को नहीं।इस अकाल के समय सरकार अपनी तरफ से गरीबों के भोजन-पान

हास्य

हास्य थुल-थुल पेट, सज्जन सेठ, दाल का प्याला,... पीकर गए लेट। आँख खुली तो ,पेट में हलचल, पड़ गए थे पेट में भी बल।। सज्जन जी की बात बताऊं क्या उन पर बीती आज सुनाऊं चतुर खिलाड़ी बातें भरी रोज - रोज करते थे। ज्ञान के थे भंडार गांव में मुफ्त में बांटा करते थे अभियान स्वच्छता की बातें वो बढ़ - चढ़ कर के करते थे। न शौच खुले में करना सबको सीख सिखाया करते थे। कल की सुनना बात अभी तक नहीं हुई थी भोर घुप्प अंधेरा खेतों में था जरा नहीं था शोर। चिड़िया भी न चहकी अब तक पसरा खेतों में सन्नाटा। यहाँ-वहाँ देखा सज्जन जी, ले चले हाथ में लोटा। गुड़-गुड़ भारी हुई पेट में, करती गैस भी अफरा तफरी। चुप-चुप पीछे-पीछे-पीछे चलते, गाँव के बच्चे सारे खबरी। माहौल हवा का बदला पर.. बच्चों की जिद थी पूरी है रंगे हाथ धरना बच्चू को चले छिप-छिप थोड़ी दूरी। रोज-रोज खुद शौच खुले में,

दरख़्त

वो दरख्तों के सीने पे घाव किया करते हैं हम सूखी हुई शाख फिर से सिया करते हैं। मारते हैं कटारी अपने जेब भरने को अपनी हम तो मरते दरख्तों को दवा दिया करते हैं। त्याग देता है जीवन खुशी से ये अपनी ये मरके भी उनके घर मे जिया करते हैं। शाख का हरएक पत्ता ये हमीं को हैं देते हम इनसे घरों को सजा लिया करते हैं। हाथ चलते हमारे ये देखो फुर्ती से इन पे प्याले खुशियों के इनसे लिया करते हैं। #सुनीता बिश्नोलिया©

नीम का पेड़

"नीम का पेड़ " मेरे घर के बरामदे का नीम वाला पेड़... संरक्षक था सभी पक्षियों का जो आश्रय पाते थे इसकी शाख पर झूम उठता था वो भी उनकी एक आवाज पर । बचपन में हर दिन हम खेले थे संग थकते जो हम तो....वो भरता उमंग । हमारे लिए बहुत था उसका महत्त्व उससे हमें बहुत ही अपनत्व था अपने पत्तों को हिला-हिलाकर वो हमें अपने पास बुलाता था सावन में हमको वो झूला-झुलाता था। हर शाख पे उसके नीड़ नजर आते थे , परोपकारी था वो , कई पक्षी- परिवार उसी के सहारे थे। पवन- बाँसुरी हरदम बजाकर सिर पे 'निबोली ' का गहना सजाकर वो प्यार लुटाता था,हमको बुलाता था। संयुक्त परिवार के सारे बच्चों की जान था सबसे बड़ी बात हमारे घर की पहचान था। मेरे घर के बरामदे का नीम वाला पेड़.... आज जब जाती हूँ अपने घर, नजरें ढूंढतीं हैं उसे पर...... रिक्त हो गई वो जगह , नहीं है वो वहाँ पर हाँ वहाँ रहने वाले आदी हो गए हैं उसके बिन रहने के, पर वो हमारी तो दिनचर्या का हिस्सा था, नहीं भूल सकती हूँ मैं उसे .... क्योंकि उससे जुड़ा मेरे बचपन का हर किस्सा था। #सुनीता बिश्नोलिया जयपुर (राजस्थान)

अंतर्मन

#अंतर्मन  रहे मान-स्वाभिमान न हो जरा अभिमान              करें सबका सम्मान अंतर्मन जागिए।। न मन में राग-रंग रहे सदा ही उमंग              चंचल न ज्यों पतंग अंर्तमन जानिए।। न हो द्वार कोई बंद न मनों में अंतर्द्वंद              सबसे प्रेम-संबंध अंतर्मन देखिए।।  करें नहीं भेद-भाव सबको सुखों की छाँव              मिटा दें धूप के घाव अंतर्मन झांकिए।।

सूरमा भोपाली

#हास्य मिश्रित वीर रस सूरमा भोपाली को सूझी फिर से नई एक बात सोच-सोचकर जागे मियां आज की पूरी रात। आज गढ़ा है फिर एक किस्सा अपना रौब जमाने को बैठ गए ले चाय-चपाती,किस्सा-अपना सुनाने को। सुड़प-सुड़प के चाय गटकते चब-चब खाते रोटी । बोले भईया "हम शेर से भिड़े गए पहन लंगोटी । जब हम गये शहर में भईया! अपने चाचा के घर में, वल्ला वल्ला गजब हो गया !आया शेर शहर में। देख शहर में शेर दुबक गए, घर में सारे लोग, चचा हमारे ले लोटा बाहर आए अजब संजोग। आँखें चार शेर से करके चाचा तो थर-थर काँपे, गिरा हाथ से लोटा ,गीला हुआ पजामा काँपे। हम थे थोड़े व्यस्त कर रहे थे मियां मलखंब दौड़ पड़े हम उसी हाल में लिया नहीं था दम। शेर को हमने हाथ दिखाए अपने भारी-भारी शेर बिचारा ढेर हो गया नहीं चली होशियारी। जंगल की ओर दौड़ पड़ा वो देश हमारे दाँव पीछे-मुड़कर भी न देखा..गया जो उलटे पाँव। वाह्ह सारे कस्बे में हुई सूरमा भोपाली, आकर बिल्ली ने तब खोली बात थी डरने वाली। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
#जिंदगी फलसफा जिंदगी का है जिन्दगी नाम मुश्किलों का। बढ़के पीछे नहीं मुड़ना है जिंदगी नाम हौंसलों का।। न बन खुदगर्ज तू इतना सभी को साथ लेकर चल। मिटा दे तू नफरतों को जिंदगी नाम मोहब्बतों का।। तेरा ये धन तेरी दौलत नहीं कुछ साथ जाएगा, कभी न अंत होता है जिन्दगी नाम हसरतों का।। छोटी इस जिन्दगी में दे सहारा किस्मत के मारों को। रूप लेकर बेसहारों का जिन्दगी नाम बरकतों का। परखता रोज इंसा को खुदा-खुद ही कसौटी पर। न घबराना परीक्षा से है जिंदगी नाम इम्तिहानों का।। भला करना सभी का तू किसी का मत बुरा करना। संभल करके कदम रखना जिन्दगी नाम साजिशों का।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर