सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

हिंदी कविता - विरह गीत

#विरह गीत - कह ना पाऊँ प्रेम कथा              विरह.. कैसे लिखूँ....  बाट जोऊं पिया आओ, मारू नै मत और बिसराओ रहना चाहूँ मौन जिया की मैं कह ना पाऊँ प्रेम कथा  बातों ही बातों में गागर, छलकी बिखरी मौन व्यथा।  ऐसे तो इस प्रेम कथा की,सीमाओं का पार नहीं है  इक-इक खोलूँ परत प्रेम की, दुश्मन जग के बेन हुए हैं।  आसमान में देख चाँद को उनका ही आभास हुआ है,  देह दुखी उनकी यादों में मन भी तो अब लाश हुआ है। बंद करूँ आँखों को जब मैं , है नैनों में उनके साये  इस दिल की धड़कन तेज हुई, वो आते अहसास हुआ है। सुध-बुध भूल चुकी हूँ अब तो, बैरी ये दिन-रैन हुए हैं।  इक-इक खोलूँ परत प्रेम की, दुश्मन जग के बेन हुए हैं।                           विरह वेदना  नयनों के बंद झरोखों में, प्रियतम आया जाया करते  ना चिट्ठी ना तार बेदर्दी, सपनों में भरमाया करते बरस बाद सुधि ली बेरी ने, वो मुझसे हैं मिलने आए टूटा सपना बिखर गया, बिखरे काँच उठाया करते  नयनों से मेरे जल बरसे, बिन प्रीतम बेचैन हुए हैं । इक-इक खोलूँ परत प्रेम की दुश्मन जग के बेन हुए हैं।  उन बिन दुनिया सारी हमको, वीरानी सी लगती

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस

Photo - #the_ Stolen_ camera  #Jaipur, #Rajasthan #Rajesh Jamal आज है 11 अक्तूबर #अंतररष्ट्रीय बालिका दिवस।  संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बालिकाओं के अधिकारों, शिक्षा और उनके संरक्षण की जरूरत को पहचान कर   दिसंबर 2011 में विश्व बालिका दिवस अर्थात्‌ अंतरराष्ट्रीय बालिका मनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया।  अंतरष्ट्रीय बालिका दिवस अर्थात्‌ लड़कियों को समाज के हर कार्य क्षेत्र में समान सहभागिता हेतु तैयार करना। बालिकाओं को का परिचय शिक्षा के व्यापक रूप से करवाना और उन्हें विभिन्न कौशल में दक्ष करने हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना अर्थात्‌  सीखने के अवसरों का विस्तार कर कार्य करने हेतु स्वस्थ, स्वच्छ और सकारात्मक माहौल तैयार कर स्त्री शक्ति और उत्साही, जागरूक कार्यकर्ता , शिक्षित माता, उद्यमी, सामाजिक रूप से मजबूत दृढ़ निश्चयी बालिका के रूप में संसार के सामने अपनी बात रखकर समाज में परिवर्तन लाने का सामर्थ्य विकसित होगा। Photo - #NDTV इंडिया  अंतरष्ट्रीय बालिका दिवस लड़कियों को अधिकारों से परिचित कर समाज के विकास हेतु निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में अपनी क्षमताओं द्वारा महत

क्यों लड़ती- झगड़ती हैं लड़कियाँ ? ... क्या सरस्वती सी लुप्त हो रहीं लड़कियाँ ?

#क्यों लड़ती- झगड़ती हैं लड़कियाँ ? ...  #क्या सरस्वती सी लुप्त हो रहीं लड़कियाँ ?  #क्या संस्कारी नहीं नहीं हैं लड़कियाँ?  #प्रगतिशील विचारों की धनी हक़ के लिए लड़ती - झगड़ती लडकियाँ....  प्रश्नों के उत्तर पाते हैं  सीता के रूप में  उठ - उठ सीता अब युद्ध तो कर #कविता  लोग कहते हैं संस्कार नहीं हैं  ल़डकियों में बहुत बोलती हैं,  लड़ती-झगड़ती  लड़कियाँ  ।  पुरुषों के सामने   चीखती -चिल्लाती  बेशर्म लड़कियाँ ।  पढ़-लिखकर  तोड़ रहीं हैं  मर्यादाएँ ।  बराबरी करना चाहती हैं पुरुषों की  नौकरी के नाम पर,  देर से आती हैं घर।  नहीं निकालती घूंघट  आजकल की बहुएँ ।  नहीं करती लिहाज  सास -ससुर का  बात करती हैं  अपने हक, अपने अधिकारों की। संस्कार का पाठ पढ़ाने वाले  देखो  ताक पर नहीं रखी  संस्कारों की गाँठ किसी लड़की ने   । ना भूली हैं संस्कार,  ना ही मर्यादाएँ तोड़ रहीं हैं  हाँ जान लिया अपने अधिकार और  कर्त्तव्यों के बारे में अच्छी तरह  इसीलिए  उतारकर सड़ी -गली  परंपराओं का टोकरा सर से  आ गईं हैं सड़कों पर  बुलंद कर रहीं हैं आवाज़  गली-मोहल्लों, ग

सभ्य और संस्कृत

अनसुलझा रहस्य और भी  #संस्कृत कौन है? हम...?? जो अच्छे और साफ सुथरे घरों में रहते हैं, रोज नहाकर अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छा खाते भी तो हैं। टेलीविजन पर ख़बरें देखते हैं अच्छा # साहित्य पढ़ते हैं। हाँ हमीं तो हैं संस्कृत हर सांस्कृतिक मर्यादा का पालन करते हुए धूमधाम से व्रत-त्योहार मनाते हैं। याकि... सभ्य हैं वो जिन्हें सभ्य और संस्कृत होना ही नहीं आया.. क्योंकि घरों में नहीं... फुटपाथ पर रहते हैं, नंगे पाँव मिलों चलकर सरकारों की अव्यवस्था को ठेंगा दिखाते हैं।  कई-कई दिन नहाते नहीं वो और धोकर पहनने के लिए दूसरे कपड़े नहीं जिनके पास लड़कियों और महिलाओं के मैले कपडों पर लगे होते हैं दाग मासिक धर्म के। सच वो सभ्य हो ही नहीं सकते जो गर्भवती स्त्री को बिठा लेते हैं साईकिल पर और गोद में रख देते हैं पूरी गृहस्थी, बिना खाए-पिए और बिना ट्रेनिंग घायल पिता को साईकिल पर बिठा कर लाई लड़की कैसे संस्कृत हो सकती है लॉकडाउन के बीच नियमों को तोड़कर राज्य की सीमा जो लांघ गई।  और वो जो मरने-मारने पर उतर जाते हैं एक रोटी के लिए..

Thanks Defence #डिफेंस

वो लोग जो आपके मार्गदर्शक,प्रेरणास्रोत होते हैं, तथा सदैव उत्साहवर्धन कर आपको आगे बढ़ाने में योगदान देते हैं तथा आपको आगे बढ़ता देख हृदय से प्रसन्न होते हैं। उन्हीं लोगों के द्वारा अप्रत्याशित खुशी प्रदान कर जीवन का एक और अनमोल क्षण प्रदान किया गया । मैं बात कर रही हूँ वैशाली नगर स्थित डिफेंस पब्लिक स्कूल के प्रबंधक मंडल की।  मेरे लेखन से सदैव प्रसन्न होकर लेखन हेतु प्रेरित करने वाले विद्यालय प्रबंधक रिटायर्ड मेजर एस. के शर्मा, निदेशिका आदरणीया जयश्री शर्मा, प्रधानाचार्या आदरणीया मीतू शर्मा, उप प्रधानाचार्या आदरणीया सीमा सक्सैना द्वारा दिया गया सुखद सरप्राइज जीवन की मुख्य घटनाओं में जुड़ गया।       एेसा नहीं कि विद्यालय प्रबंधक मंडल द्वारा सिर्फ मेरी ही सराहना की गई या की जाती है  तथा आज पहली बार मुझे सम्मान मुझे मिला हो। वरन विद्यालय प्रबंधक मंडल द्वारा सभी शिक्षकों को समान समझा जाता है तथा सभी का उत्साहवर्धन कर आगे बढ़ने हेतु प्रेरित किया जाता है।              Meetu Sharma.       #Principal - Defence Public School  अचानक आयो

गांधी एक विचारधारा #लाल बहादुर शास्त्री

गांधी एक विचारधारा  Photo credit - Rajesh Jamaal सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह की,          राह चलो तो गांधी हो,  सहिष्णु बन तुम लड़ो देश हित         अभिमान तजो तो गांधी हो। जाति भेद की तोड़ दीवारें        मानवता हित बढ़े चलो,  नागिन सी लहरों के आगे,        बन सको गिरी तो गांधी हो। घोर-निराशा, तिमिर घनेरा             करना दूर तुम्हें होगा  अँधियारी इन राहों में       बन दीप जलों तो गांधी हो।  बसता है हर मन में गांधी         मगर ढूँढना तुमको है,  लोभ - मोह को त्याग सको तो  समझो के तुम गांधी हो।        लाल-बहादुर पूज्य महान।  सीधा ,शांत,सरल मन ही                व्यक्तित्व की पहचान। जय-जवान,जय किसान कहकर,              जन में जोश जगाया, अद्वतीय शासन कर,               कर्तव्य खूब निभाया। 'भारत-रत्न' सपूत देश का,               नव उजियाला लाया, मनोबल ने उसके'पाक'को,                  मुँह के बल गिराया। उदित हुआ वो आज सितारा             जगमग जोत जलाने को, दीप्ति देश की दिखलाने                जो याद रहे ज़माने को। गाँधी का  सप

क्यों रात के अँधेरे में जला दी जाती हैं लड़कियाँ

क्यों रात के अँधेरे में जला दी जाती हैं लड़कियाँ  मनुष्य और पशु के मध्य  अब अंतर नहीं रह गया,  घबराए देखते हैं  शिकार  होते हुए  और बाद में  याद में दिखते हैं  हितैषी रोते हुए।  क्यों आज भी गर्भ में ही मार दी जाती हैं लड़कियाँ?  दूध के बर्तन में नहीं  क्यों दहेज रूपी काले सागर में  डुबो दी जाती हैं लड़कियाँ?  वासना की भभकती भट्टी में  क्यों जबरन झोंक दी जाती हैं  लड़कियाँ ।  क्यों राक्षसों के हाथों नोच कर फेंकी गई...  छिपा दी जाती हैं लड़कियाँ ?  क्यों हँसती-मुस्कुराती लाश बन कर गिरी  दिखाई नहीं देती हैं लड़कियाँ ?  क्यों नहीं दिखते चोट के निशान?  क्यों नहीं नजर आता उन पर किया  बल का प्रयोग?  क्यों ठहरा दिया जाता है झूठ!!  उनके परिवार का हर दावा?   क्या बचाने की कोशिश होती है  रक्त- पिपासुओं को  दूसरे शिकार के लिए?  क्यों रात के अंधरे में,  जला  दी जाती हैं लड़कियाँ ? 😠👹👹 #धिक्कार है तुम्हारे पुरुषत्व और  तुम्हारे बल पर  और दंभ के वशीभूत  किए गए कुकृत्य पर।  वासना की अतिशयता में डूबे  मदांध पाशविक पुरुष,  हाँ तुम असभ्य,  अमा