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हिंदी कविता - विरह गीत

#विरह गीत - कह ना पाऊँ प्रेम कथा 
            विरह.. कैसे लिखूँ.... 


रहना चाहूँ मौन जिया की मैं कह ना पाऊँ प्रेम कथा 
बातों ही बातों में गागर, छलकी बिखरी मौन व्यथा। 
ऐसे तो इस प्रेम कथा की,सीमाओं का पार नहीं है 
इक-इक खोलूँ परत प्रेम की, दुश्मन जग के बेन हुए हैं। 

आसमान में देख चाँद को उनका ही आभास हुआ है, 
देह दुखी उनकी यादों में मन भी तो अब लाश हुआ है।
बंद करूँ आँखों को जब मैं , है नैनों में उनके साये 
इस दिल की धड़कन तेज हुई, वो आते अहसास हुआ है।
सुध-बुध भूल चुकी हूँ अब तो, बैरी ये दिन-रैन हुए हैं। 
इक-इक खोलूँ परत प्रेम की, दुश्मन जग के बेन हुए हैं। 
                        विरह वेदना 

नयनों के बंद झरोखों में, प्रियतम आया जाया करते 
ना चिट्ठी ना तार बेदर्दी, सपनों में भरमाया करते
बरस बाद सुधि ली बेरी ने, वो मुझसे हैं मिलने आए
टूटा सपना बिखर गया, बिखरे काँच उठाया करते 
नयनों से मेरे जल बरसे, बिन प्रीतम बेचैन हुए हैं ।
इक-इक खोलूँ परत प्रेम की दुश्मन जग के बेन हुए हैं। 
उन बिन दुनिया सारी हमको, वीरानी सी लगती है 
जानी पहचानी सूरत भी अब, अंजानी सी लगती है 
भरे हुए तरक़श यादों के,इस दिल पर तीर चलाते हैं
भूल हुई यों दिल का लगाना, वो दिन याद दिलाते हैं 
झर- झर आँसू सूख गए अब अंगारों से नैन हुए हैं।
इक-इक खोलूँ परत प्रेम की दुश्मन जग के बेन हुए हैं। 

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सुनीता बिश्नोलिया 
©®


टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढिया विरह गीत बधाई ,शुभकामनाऐ

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद दी 🌹 🌹 🌹 🌹 🌹 आपका स्नेह मिलता रहे

      हटाएं
  2. Hamesha ki tarah khoobsurat... dil ko chhu lene wala... likhti rahe.. shubhkamamnaye...

    जवाब देंहटाएं
  3. मेम सच में आपका विरह गीत पढ़ा! शब्द नहीं है तारीफ के लिए 🌹🌹🌹🙏

    जवाब देंहटाएं

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