#उम्मीद
#उम्मीद का अंकुर बंद तालों में भी खिलता,
खोल तो ह्रदय के द्वार,यहाँ प्यार बेपनाह मिलता है।
क्यों सड़ी-गली परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़े हो,
तोड़ के आगे आओ, क्यों बेवजह इन्हें पकड़े हो।
मन में दबी इच्छाएँ, बंद तालों में दिख जाती हैं,
पम्पराएँ सारी नहीं , बस कुछ ही पीछे ले जाती हैं।
कब तक यों करोगे गुलामी , किसी और के दर पे
आ के खोल दे ये ताला , जो लगा है ते घर पे ।
#उम्मीद के दामन को , ना छोड़, तू प्यारे
सफलताएँ हैं बुलाती , तुझे बांहें पसारे।
खुश हो कि तेरे मन में उगा,#उम्मीद का बूटा,
अब भूल भी उस दिन को , जब दिल तेरा टूटा।
अंकुर को उठा हाथ में , और माटी में लगा दे,
तू तोड़ के हर ताले को 'पुष्प ' आशा के खिला दे।
उम्मीद भरे पँखों से उड़ ,ऊँचा रे...! पंछी
हर हद से गुजर जा, ओ!हारे हुए पंछी..
मंजिल को ऐ पंछी तू, अपने कदमों में झुका ले,
हुँक्कार के प्रहार से ,सब तोड़ दे ताले ..
बंधन के ओ! पंछी ना पी तू विष के पियाले,
हर तोड़ के ताला ,आ... मुक्ति को गले से लगा ले।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर (राजस्थान )
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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