#भारत का बदलता परिवेश
भारत नहीं बदला...वही हिन्द,वही हिंदुस्तान की पवित्र माटी,वही लोग..किन्तु लग गया है सभी को भोग का रोग,और बदल गई है परिपाटी,सामाजिक मूल्य..सामाजिक सरोकार सभी कुछ तो समाप्त होते जा रहे हैं।
आज भी लोगों के हृदय में जोश है,जज्बा है,लगन है ....किन्तु देश के लिए नहीं वरन स्वयं के लिए। सच आत्म केन्द्रित हो गया है आज व्यक्ति।
कभी युवाओं ने देशहित प्राणों की बाजी लगाईं थी...अंग्रेजों के टकराए थे....स्वतंत्रता आन्दोलन रूपी हवन में स्वयं समिधाएँ बन कूद गए थे...किन्तु आज स्वार्थ सिद्धि हेतु देश को ही हवन कुण्ड में झोंका जा रहा है। कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी जाती धर्म के नाम पर तो कभी अपनी तुच्छ सी मांग के नाम पर देश में तबाही मचाई जाती है।जहाँ महिला को माँ के रूप में पूजा जाता है वहीं उसके नाक काटने तक की बात की जाती है।
कुछ लोग देश की सुंदर तस्वीर बना कर विश्व के सामने सुंदर भारत की छवि बनाने में लगे हैं....तो कुछ उस छवि को ख़राब करने में लगे हैं। युवाओं का एक वर्ग तो बात बात में अति उत्साह के कारण ऐसे कार्य कर जाता है कि देश विकास के मार्ग से अवरुद्ध होकर पुन:कुछ महीने पीछे आ जाता है। हिंसा,आगजनी,लूटमार,तोड़फोड़ ये तो हमारी संस्कृति नहीं थी...किन्तु ये बदलते परिवेश का ही परिणाम है कि विद्या के आलय भी आज राजनीति का अखाड़ा बनते जा रहे हैं।
छोटे बच्चे तो सबको प्रिय होते हैं..किन्तु आज कुछ लोगों द्वारा अपनी नफरत की आग में बच्चों को झोंकना कहाँ तक उचित है...ये बदली हवा...बदलती सोच का ही तो नतीजा है।
#सुनीता बिश्नोलिया
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें