#भारत में सांस्कृतिक संक्रमण
मुद्दा बहुत गहन है श्रीमन्
संस्कृति झेल रही है संक्रमण।
मात्र संक्रमण नहीं...शायद ,
पाश्चत्य संस्कृति का आक्रमण।
या विश्व की पुरातन संस्कृति को
दबाने की बहुत बड़ी साजिश।
सिमटते परिवार,रिश्तों का व्यापार,
खान-पान,दैनिक क्रियाएँ
सभी कुछ तो हो गया है संक्रमित।
हर वर्ग पाश्चत्य की और हो रहा है आकर्षित।
त्योहारों की संख्या बढ़ गई
पश्चिम के त्योहारों की ,लिस्ट भी तो जुड़ गई।
भारतीय त्योंहार गिनती के मनते हैं,
लेकिन दिल नहीं अब दिखावे के फूल खिलते हैं।
सच कहा था बापू ने...
सांस्कृतिक अस्मिता नष्ट हो गई,
अधिकारों के नाम पर पोशाक थोड़ी कट गई है।
भूल गए पीले चावल,अब तो
शादी का निमंत्रण पत्र भी जरुरी नहीं,
डिजिटल दुनिया है साहब संस्कृति
के पीछे भागना अब शायद जरूरी नहीं???
शादी में मेहमानों का आना,रिश्ते निभाना,
औपचारिकता रह गई,भोजनोपरांत लिफाफा देना,
सांस्कृतिक जिम्मेदारी हो गई।
'यार' शब्द से तो सब को प्यार हो गया,
'मोम-डेड' कहना संस्कृति का पुरस्कार हो गया।
पैर छूना भी कोई आदत है,
हाथ मिलाना ही तो संस्कृति का संगम है
ठगी जा रही है भारतीय संस्कृति
संगम के नाम पर,
बच्चों बिन अकेले रहते बुजुर्गों को,
तभी तो खा रहा है सूना घर।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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