# स्वामी विवेकानंद
आदर्श विश्व के अजर -अमर,
ज्ञान-ज्योति दी जग में भर।
थी तीक्ष्ण बुद्धि और ह्रदय विशाल,
विवेक भरा भारत का लाल।
नाम नरेन्द्र पा कर के सम कार्य किए थे उसने,
बुद्धि देख से चकरा जाते,गुरुजन भी थे जो उसके।
विश्व को धर्म का पाठ पढ़ाने,चला राही वो मतवाला,
लगातार वो चला बटोही और उसे मिला नहीं निवाला।
मुश्किल झेली पार समुंदर क्षीण हो गई काया,
लोभ-मोह में पड़ा नहीं,ना चाही इसने माया।
कर्म-धर्म का ज्ञान जहां को दिया,ओज के स्वर में,
दांतों तले दबा अँगुली,जन आन गिरे चरणों में।
कर्मठ ने कर्म निरंतर करके स्वास्थ्य गिराया अपना,
देह त्याग तरुणाई में,स्वप्न अधूरा छोड़ गया वि अपना।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
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