अरमानों को पंख लगा
उड़ान भरती नारी ।
विश्वास-दीप जला,
जहां को रोशन करती नारी।
तम हरती वो जग का
और विश्वास भरे डग भरती,
लाज चुनरिया को खिसका,
सम्मान नयन से करती।
होड़ नहीं अपनी राहों पर,
हो निश्चिन्त वो आगे बढती,
कमजोर नहीं शक्तिस्वरूपा है
अधिकारों को वो लड़ती।
आज ये निखर गईं ,
परम्परावादी सोच खुद ही
बिखर गई।
अब बदल गया है हर नारी का
कोमल सा व्यक्तित्व,
लड़ जाती है ज़माने से
बचाने 'नारी'अपना अस्तित्व।
पंछियों सी उड़ान भरती हैं,
नर नहीं जहां में राज नारी करती हैं।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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