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#स्टेडियम की उदासी

चूं-चूं,चर-चर, कुहू -कुहू, गुटर-गूं, पिहू-पिहू,फड़-फड़,
फर-फर.. के स्वर के बीच, कुत्तों के भौंकने, लोगों के दौड़ने-हांफने और बातें करने की आवाजें सुबह चार बजे ही तो शुरू हो जाती है यहाँ। 
    ' आज स्टेडियम के चार चक्कर लगा लिए चलो शर्मा जी अब थोड़ी देर सुस्ता लेते हैं। '
' हाँ-हाँ चलिए सच कहा बातों ही बातों में आज कुछ ज्यादा ही सैर करली, चलिए वहाँ हमारी सारी मित्र मंडली बैठी है उधर ही चलते हैं। '
अरे ये बच्चे भी सुबह-सुबह बैट और बल्ला लेकर आ जाते हैं स्टेडियम के अंदर।' 
 'ठीक ही तो है बच्चे भी बिचारे कहाँ जाएं स्टेडियम के अंदर ये तो खेलेंगे ही। '
 'हाँ बस ध्यान ये से खेलें किसी को बॉल से चोट ना लग जाए।' 
  ' बेटा, देखो अभी यहाँ कितने लोग सैर कर रहे हैं,तुम्हारी बॉल से किसी को चोट लग जाएगी क्रिकेट खेलना हो तो थोड़ी देर से खेला करो। '
  ' अंकल फिर हमारे स्कूल का टाइम हो जाता है, हम ध्यान से खेलेंगे आप आप चिंता मत करो हमारी बॉल आपकी तरफ नहीं आएगी। '
    'बीना, थोड़ा जल्दी-जल्दी चलो, बच्चों के स्कूल का टाइम हो रहा है घर जाकर नाश्ता भी बनाना हैं। '
  हाँ शालिनी, कल से सैर करने के लिए थोड़ा जल्दी निकलना पड़ेगा वरना बच्चों का नाश्ता बनाने में देर हो जाती है।' 
'और जब तक नाश्ता बनता है तब तक स्कूल बस आ जाती है जिससे बच्चे नाश्ता भी नहीं कर पाते पता है चीनू तो दूध भी भागते-भागते पीता है इस कारण घर वाले और खास कर मेरी सास तो मुझे बहुत सुनाती हैं। '
' हाँ यार, मुझे भी तो मेरी सास बहुत सुनाती है-वो कहती हैं कि हम तो हमारे घर का काम खुद किया करते थे.. चाकी पीसना, पानी लाना...!'
' चलो यार बाहर दुकान से दूध भी लेना है.. 
 'हाँ चलो मुझे तो ब्रेड भी लेनी है।' 
      नन्ही परी भी ठुमक-ठुमक चलती हुई दादी-दादा की उंगली थामे स्टेडियम में आ गई, दादा-दादी सामने बेंच पर बैठ गए और परी अन्य छोटे-छोटे बच्चों के साथ खेलने लगी। बातें करते हुए भी दादा-दादी का पूरा ध्यान बच्चों पर ही है।' 
         सैर करते लोगों की हँसी-ठहाकों और खेलते कूदते बच्चों के साथ ना जाने कब धूप निकल जाती और सब 
अपने-अपने अपने घरों का रुख कर लेते हैं। बस कुछ बुजुर्ग बैठे रहते पेड़ों की ठंडी छांव में लगी बेंच और सीढियों पर। कुछ महिलाएं चींटियों को दाने भी डाल दिया करती थी। 
 काम करने वाले स्टेडियम में इधर - उधर कुछ काम करके पानी का छिड़काव किया करते और देखते ही देखते आठ-नौ बजे तक अलग-अलग स्कूलों की बसों में बैठकर खेलने आए बच्चों की आवाज़ों से फिर से पूरा स्टेडियम गूंजने लगता। 
   'ला-ला मुझे पास कर बॉल,अरे ! ये क्या कर रहे हो, इधर दो बॉल।' ये.. ये.. ये... तेज दौड़... हाँ.. हाँ बास्केट कर... 
ओफ्फो! ये क्या किया.... थोड़ा उछल नहीं सकता था।
 ' उछला तो था किसी ने धक्का मार दिया अब मैं क्या करूँ,देखना अबकी बार बॉल को बास्केट में डालकर ही दम लूँगा।' 
'बस बहुत हुआ अब तुम पीछे रहना, मैं आगे आता हूँ।' 
' अच्छा भाई ठीक है... ।'
          सुबह से शाम तक इसी तरह #चित्रकूट स्थित #प्रताप स्टेडियम के अंदर और बाहर की दुकानों में भी में लोग आते-जाते रहते थे....लेकिन #कोरोना के कारण आज अजीब सी खामोशी, अजीब सा सन्नाटा है यहाँ .. कब टूटेगा ये सन्नाटा... पक्षियों के साथ कब कलरव करेंगे बच्चे, अब   घर की छत से दिखते इस स्टेडियम की उदासी अब मुझसे देखी नहीं जाती। 
 सुनीता बिश्नोलिया 
  
   




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