नाजुक अंग कोमल काया,तिस पर बिन सिंगार,
बेल से नाजुक अंगों पर, बहती अमृत धार।
रूप तेरा ज्यों चटख चांदनी,'ओ' गर्वीली नार,
तड़ित हास् मुख से ना छुपा,बहने दे तू बयार।
ललाट तेरे की शोभा सिंदूरी,क्यों आँचल में छिपाए,
सूरज की लालिमा मुख पे गौरी,तेरे रूप को और बढाए।
अंजान बोल आते तुझ तक , तेरे रूप को मलिन बनाए।
तेरी आँखों का फैला काजल,खुद तेरा हाल सुनाए।
धरती सा तेरा धैर्य कहीं ,ना झरने सा बह जाए,
तेरा रूप दमकते हीरे सा,कहीं धुंधला ना पड़ जाए।
मैली चुनरिया ओढ़ कामिनी,बोझा मस्तक धारे,
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
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