दोहे नारी, बेटी
चंदा की सी चाँदनी,मुस्काए मन मंद ।
नारी जलता दीप है,तम हरती क्षण चंद ।।
बिटिया बाबुल घर खिले, बनकर उजली धूप।
बाबुल को खुशियाँ मिली,देख सलोना रूप।।
नारी ने है तोड़ दी,बूढी -रूढी आज।
बिजली बन आगे बढ़ी,आँचल में भर लाज।।
कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार,
रूप कभी है कामिनी,समझो तेज कटार
चंचल चिड़िया बाग की,उड़ती खोले पाँख।
छोड़ नीड़ जब वो उसे,भीगे हर इक आँख।।
कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार।
रूप कभी है कामिनी,होती तेज कतार।।
है लक्ष्मी का रूप वो,काली का अवतार।
सहती लोगों के नहीं,खुद पर अत्याचार।।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
👌🌻
जवाब देंहटाएं🌹bahut khoob 🌹🙏👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
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